22 मार्च को विश्व जल दिवस है। कोरोनो वायरस बीमारी हमारी अर्थव्यवस्था को दीमक कि तरह नुकसान पहुचा रही है. ऐसे में,हमे यह सोचने की जरूरत है कि हम सब के लिए स्वच्छ और साफ तरीके से पानी की उपलब्धता कितनी महत्वपूर्ण है।
इस महामारी से बचने का एकमात्र अचूक तरीका यही है कि हम लगातार अपने हाथों को हर बार 20 सेकंड तक कम से कम धोएं यानी, साफ पानी रोगों के रोकथाम के लिए दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण उपाय है और डॉक्टर्स ने भी यही सलाह पूरे विश्व को दी है ऐसे में,कोरोनो वायरस जैसे वैश्विक दुश्मन को हराने में पानी की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण कदम है
हममें से अधिकांश लोग इस बात से निश्चिंत हो सकते है कि हम अपने नल से पानी लेते हैं और वो साफ और स्वच्छ है फिर वही कुछ लोग ऐसे भी है जो ये सोच सकते है कि अगर पानी साफ नहीं है, तो हम बोतलबंद पानी का विकल्प चुन ले लेकिन हम दो चीजें भूल जाते हैं
पहली, जो पानी हम खरीदते हैं, वह भी सार्वजनिक स्रोतों से ही आता है, यानी ज्यादातर वे भूजल होते है और मिनरल्स की तादाद भी उसमे अछि खासी होती है दूसरा, हम ये सोच कर बोतलबंद पानी खरीदते है कि ये “सुरक्षित” है, और पानी को टॉयलेट के रूप में उत्सर्जित करते हैं। यानी, जितना अधिक पानी हम उपयोग करते हैं, उतना अधिक गन्दा पानी हम generate करते हैं।
यदि इस सीवेज का उपचार नहीं होता है, तो यह प्रदूषण और जलजमाव की समस्या पैदा करेगा जो कि आमतौर पर होता भी है गंगा को स्वच्छ करने का कारण भी यही था कि उसमें सीवेज गिरता था यानी, हम एक बार फिर गंदे पानी की ओर लौट रहे है ।
जल संकट एक स्वास्थ्य संकट है। कोरोना वायरस का उदाहरण देखे तो 20 सेकंड हाथ धो कर वायरस को मारने की सलाह दी जाती है। इसका अर्थ होगा हर बार हाथ धोने पर लगभग 1.5-2 लीटर पानी खर्च करना। इस तरह, बार-बार हाथ धोने का मतलब होगा कि हमें प्रति व्यक्ति 15-20 लीटर पानी की आवश्यकता है। यानी, पांच सदस्य वाले घर को केवल हाथ धोने के लिए 100 लीटर पानी की आवश्यकता होगी और यदि आप हाथ को साबुन से धोते वक्त नल बन्द रखते है, तब भी पानी की खपत अधिक होगी। हमारे सामने ये चुनौती है कि भारत समेत उभरती हुई दुनिया के बड़ी जनसंख्या की पानी तक पहुंच नहीं है। फिर वे इस वायरस से कैसे मुक्त होंगे
महामारी हमें सिखाती है कि हम इस श्रृंखला में उतने ही कमजोर है, जितने दुनिया के सबसे कमजोर लोग. यानी, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हर किसी के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य तक पहुंच हो, ताकि कोई भी इस वायरस का शिकार न बन सके। पानी के साथ भी ऐसा ही है। यदि लोगों के पास साफ पानी नहीं है, तो वे बीमारी को फैलने से नहीं रोक पाएंगे।
अच्छी खबर यह है कि हमें पता है कि क्या किया जाना चाहिए। हम जानते है कि पानी का फिर से उपयोग किया जा सकता है। हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम वर्षा जल के हर बूंद को सहेजे, स्थानीय जल भंडारण प्रणालियों का निर्माण करें, कम पानी की जरूरत वाली फसलें उगाएं और अपशिष्ट जल की हर बूंद को रीसायकल कर इस्तेमाल करें।
वर्तमान प्रणाली इतनी महंगी है कि साफ पानी कुछ घरों तक ही पहुंचाया जा सकता है। अधिक दूर से पानी लाने के लिए जितनी लंबी पाइप लाइन होगी, आपूर्ति की लागत उतनी ही अधिक होगी। हमारे शहरों में बड़ी संख्या में लोगों को पाइप से जलापूर्ति की सुविधा नहीं मिलती है। वे टैंकरों से पानी लेते हैं या पीने के पानी और अन्य जरूरतों के लिए गंदे और अविश्वसनीय जल स्रोतों पर निर्भर करते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है।
पानी की आपूर्ति की लागत जितनी अधिक होगी, पानी को सीवेज से वापस ला कर उसका उपचार करने पर खर्च कम होता जाएगा। ज्यादा पानी या ज्यादा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की योजना बनाना हमारे लिए पर्याप्त नहीं है। हमें आपूर्ति प्रणाली को फिर से डिजाइन करने की आवश्यकता है, ताकि हम स्थानीय जल संचयन प्रणालियों में निवेश करके पाइपलाइन लंबाई में कटौती कर सकें। हमें पानी के उपयोग को कम करके मांग को फिर से डिजाइन करना होगा, ताकि हम पानी की बर्बादी कम कर सकें। हमें सीवेज प्रबंधन को फिर से डिजाइन करने की जरूरत है।कुल मिला कर बात ये है कि साफ पानी सभी के लिए सस्ती और सुलभ होनी चाहिए वर्ना यह किसी के लिए भी लंबे समय तक उपलब्ध नहीं रहेगी।