जल ही जीवन है

Submitted by Hindi on Fri, 09/16/2011 - 11:35
Source
ईश मंजरी, अप्रैल-जून 2011
गगन समीर अनल जल धरनी,
यह सृष्टि इन तत्वों की करनी।
दो तिहाई तन में है जल,
इससे ही सब पातें है बल।

वैंकट जल से पृथ्वी लाए,
जिससे हम नवजीवन पाए।
जल मंथन से अमृत पाया,
इसको कहते हरि की माया।

जल का पूजन हम हैं करते,
सब पापों को जो हैं हरते।
जल ही जीवन का आधार,
जिस पर हो रहे अत्याचार।

उसकी रक्षा का हम पर भार,
तभी बचेगा यह संसार।
कालिया से श्री कृष्ण बचाए,
सागर राम से आदर पाए।

ऋतुओं में वर्षा प्रधान,
फिर भी हम नहीं सावधान।
वह सम्पदा हम खो रहे,
अपनी करनी पर रो रहे।

जब बरबाद हम करते हैं,
इस पर विचार नहीं करते हैं।
जल होता है हम पर रुष्ट,
फिर भी हम उसे कहते दुष्ट।

सुनामी वरुण देव का क्रोध
मानव को चाहिए अब बोध।