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दोपहर का सामना, 18 सितम्बर, 2016

जल का यह जलजला इतना भारी है कि कर्नाटक में हिंसक आंदोलन शुरू हो गया। बंगलुरु में आंदोलनकारियों ने कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। वहीं तमिलनाडु में कावेरी नदी के जल पर जंग के मद्देनजर एक दिन की हड़ताल की गई। सड़क पर गाड़ियों को तो रेल पटरियों पर रेलगाड़ियों को रोकते समय कई नेताओं ने गिरफ्तारी भी दी। किसान, व्यापारी से लेकर हर वर्ग के लोगों ने तमिलनाडु बंद कराने के लिये सहयोग दिया। जल का यह जलजला देखने में जितना सामान्य लग रहा है उतना है नहीं। क्योंकि जिस जल को लेकर आज तमिलनाडु व कर्नाटक में हिंसक आंदोलन शुरू है। उसी तरह का आंदोलन भविष्य में जल के लिये वैश्विक रूप से भी देखने को मिलने वाला है। जल वह प्राकृतिक संसाधन है जिसका दोहन हर व्यक्ति कर रहा है लेकिन जल की एक बूँद को बचाने की जहमत मात्र कोई भी नहीं उठाता है। जल की हर बूँद कीमती है ऐसे में कावेरी जल विवाद की जड़ से तो 12 हजार क्यूसेक लीटर पानी का मामला जुड़ा हुआ है। कर्नाटक को अदालत ने निर्देश दिया है कि वह तमिलनाडु को 12 हजार क्यूसेक लीटर पानी कावेरी नदी से दे।
लगभग साढ़े सात सौ किलोमीटर लम्बी कावेरी नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक का कोडागु है। यह नदी कुशाल नगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, तिरूचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु की खाड़ी में गिरती है। इसके बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किमी तथा तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किमी का क्षेत्र शामिल है। दोनों ही राज्यों का दावा है कि सिंचाई के लिये उन्हें कावेरी नदी के जल की जरूरत है। 19वीं सदी में मद्रास प्रेसिडेंसी तथा मैसूर राज्य के बीच जारी यह विवाद अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। 1924 में इस जल पर केरल व पुदुच्चेरी की दावेदारी भी शुरू हो गई। एक नदी के जल के लिये चार दावेदारों के बीच जारी जंग को हल करने के लिये 1972 में एक समिति बनाई गई थी। चारों दावेदारों के बीच कुछ समझौता भी हुआ। 1986 में तमिलनाडु ने अन्तरराज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत जल विवाद को हल करने के लिये केन्द्र सरकार का ट्रिब्यूनल गठित करने का निवेदन दिया।

सवाल सिर्फ कावेरी जल विवाद का नहीं है बल्कि कई नदियों का है। ऐसा इसलिये है क्योंकि नदियों में बहने वाली जलधारा का स्तर एक ओर घट रहा है तो दूसरी ओर मानसून का पानी भी कम हो रहा है। हिंदुस्तान तथा चीन के बीच ब्रह्मपुत्र नदी विवाद पहले से ही है। तिब्बत से निकलने वाली यह नदी अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए बांग्लादेश में गंगा में मिल जाती है। मध्य पूर्व में जॉर्डन नदी का बेसिन इसराइल और अन्य प्रदेशों के बीच सियासत का महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। ग्रांड रेनेसॉ बाँध और नील नदी भी विवाद का मुद्दा है। सूडान की सीमा के पास ब्लू नील पर इथियोपिया बाँध बना रहा है, सूडान इसका विरोध कर रहा है। दक्षिण पूर्व एशियाई देश लाओस मेकॉन्ग नदी पर शायाबुरी बाँध बना रहा है जिसका उसके पड़ोसी देश व पर्यावरणविद विरोध कर रहे हैं। बाँध से मछली भंडारण पर असर होगा और लाखों लोगों की जिंदगियाँ प्रभावित होने वाली हैं, अकेले कावेरी नदी का विवाद नहीं चल रहा है बल्कि देश व दुनिया में कई ऐसी नदियाँ हैं जिनके पानी को लेकर पड़ोसी राज्यों में तू-तू, मैं-मैं जारी है। जल का यह जलजला कल पूरी दुनिया को अपनी जद में ले सकता है।