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राजस्थान पत्रिका, 31 जुलाई 2015
अहमदाबाद शहर में बुधवार से बेशक बारिश ने विराम लिया हो, लेकिन लगातार चार दिनों तक हुई भारी बारिश के चलते साबरमती आश्रम के समीप चंद्रभागा पुल के नीचे बसने वाले करीब डेढ से 2000 लोगों को आधी रात को ही अपने घर से बेघर होना पड़ा।अहमदाबाद शहर में बुधवार से बेशक बारिश ने विराम लिया हो, लेकिन लगातार चार दिनों तक हुई भारी बारिश के चलते साबरमती आश्रम के समीप चंद्रभागा पुल के नीचे बसने वाले करीब डेढ से 2000 लोगों को आधी रात को ही अपने घर से बेघर होना पड़ा। इसमें से अधिकांश लोगों को पूरी रात खुले आसमान के नीचे सड़क पर बितानी पड़ी। तो कइयों ने रात का आशियाना घर की छत को बनाया। प्रशासन की ओर से गुरुवार दोपहर बाद पीने के पानी और भोजन की व्यवस्था नहीं किए जाने से बच्चे बेहाल दिखाई दे रहे थे।
इन लोगों की यह स्थिति उत्तर गुजरात में हुई भारी बारिश के चलते धरोई बाँध से साबरमती नदी में में छोड़े गए दो लाख क्यूसेक पानी के शहर में पहुँचने के चलते हुई। इसके चलते साबरमती रिवरफ्रंट पानी में डूब भी गया, लेकिन साबरमती आश्रम के पास दांडी ब्रिज के समीप चंद्रभागा पुल के नीचे की आबादी, परीक्षित नगर, हनुमान टेकरा, बाडिया का खाडा गोडा कुम्हार वास, गिरनारी चाली, रमतूजी नी चाली के एक हजार से अधिक घरों में आधे से भी ज्यादा तक पानी भर गया। कई लोगों ने तो अपना सामान निकाल लिया लेकिन अधिकांश लोगों का सामान भींग कर खराब हो गया और कइयों के सामान बाढ़ के पानी में बह गया।
स्थानीय प्रशासन की ओर से अलर्ट की बुधवार रात को सिर्फ सूचना देने के अलावा और कोई मदद नहीं मिली। पीने के पानी और खाने की व्यवस्था नहीं करने के चलते लोगों में काफी रोष है।
चंद्रभागा रमतूजी की चाली में रहने वाले मनूभाई ईश्वरभाई बताते हैं कि रात 11 बजे से उनके घर में पानी घुसना शुरु हुआ और देखते ही देखते 11.30 बजे तक उनका आधे से भी ज्यादा मकान पानी में डूब गया। वो अपना पूरा सामान भी नहीं निकाल पाए। जिससे रोड पर रात बितानी पड़ी। दोपहर तक भी घर पानी में डूबा है।
मीनाबेन बचूभाई दंताणी ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं चला और अचानक घर में पानी घुस गया। इससे वे परेशान हो गए। जान बचाते हुए अपने बच्चों के साथ निकल कर सड़क पर आ गए। सामान को वैसे ही बह जाने दिया।
सुनील बताते हैं कि पूरा मकान पानी में डूबने से पूरी रात तो सड़क पर बिताई तरके से घर में जमा कीचर को निकालने में जुटे हैं। प्रशासन ने शिवाय बिजली लगाने के कुछ भी नहीं किया। सुबह से खाना तो दूर पीने के पानी तक का इंतजाम प्रशासन ने नहीं किया। गिरनारी नी चाली में रहने वाले मुकेश का कहना है कि बुधवार रात 12 बजे से गुरुवार शाम तक भी मकान पानी में डूबा है। घर के अंदर भींग जाने से सामान खराब हो चुका है। प्रशासन ने सिर्फ लाइट लगाई। सामान निकलवाने में मदद करना तो दूर दोबारा कोई देखने तक नहीं आया कि रात में लोग कैसे और कहाँ पर रह रहे हैं। इस इलाके में रहने वाले लोग ज्यादातर दिहारी मजदूर हैं। सुरेश दंताणी कहते हैं कि हर दिन मजदूरी कर पेट पालते हैं लेकिन घर में पानी आ जाने के कारण वे काम पर नहीं गए। रंग का काम करनेवाले रामहित ओझा के साथ भी यही स्थिति पाई गई। कई लोग रिवरफ्रंट को भी इसके लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। कनूलोहार के मुताबिक इस बार तो वे लोग मनपा (महानगर पालिका) चुनावों में मतदान का भी बहिष्कार करेंगे क्योंकि उनकी हालत पर किसी को भी चिन्ता नहीं है।
स्थानीय पार्षद नारणभाई पटेल बताते हैं कि वर्ष 2006 के बाद फिर से ऐसी स्थिति बनी है। इलाके में करीब दो हजार मकानों में करीब पाँच हजार लोग रहते हैं। फिलहाल इलाके के करीब एक हजार मकानों में साबरमती का पानी घुस गया है, जिसके चलते यहाँ रहने वाले लोगों को सड़क, खादी बोर्ड कार्यालय, रेड क्रॉस परिसर के पास और टेकरा स्थित महानगर पालिका (मनपा) स्कूल में रहने की व्यवस्था की गई है। पटेल के मुताबिक यह समस्या वर्ष 1973 में चंद्रभागा पुल बनने से पहले की है, लेकिन आज तक इसका हल नहीं हुआ। पुल के नीचे की बस्ती में ये हालत यहाँ से गुजरने वाले कच्चे नाले की वजह से है, जिसे ये लोग वर्षों से पक्का करने की माँग कर रहे हैं, लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं होता है। यही वजह है कि 2002, 2003 और 2006 के बाद इस वर्ष भी बस्ती में नदी का पानी घुस गया। पटेल ने कहा कि पीने के पानी और भोजन की व्यवस्था करने में वो एनजीओ और प्रशासन से सम्पर्क करके प्रयासरत हैं।
इन लोगों की यह स्थिति उत्तर गुजरात में हुई भारी बारिश के चलते धरोई बाँध से साबरमती नदी में में छोड़े गए दो लाख क्यूसेक पानी के शहर में पहुँचने के चलते हुई। इसके चलते साबरमती रिवरफ्रंट पानी में डूब भी गया, लेकिन साबरमती आश्रम के पास दांडी ब्रिज के समीप चंद्रभागा पुल के नीचे की आबादी, परीक्षित नगर, हनुमान टेकरा, बाडिया का खाडा गोडा कुम्हार वास, गिरनारी चाली, रमतूजी नी चाली के एक हजार से अधिक घरों में आधे से भी ज्यादा तक पानी भर गया। कई लोगों ने तो अपना सामान निकाल लिया लेकिन अधिकांश लोगों का सामान भींग कर खराब हो गया और कइयों के सामान बाढ़ के पानी में बह गया।
स्थानीय प्रशासन की ओर से अलर्ट की बुधवार रात को सिर्फ सूचना देने के अलावा और कोई मदद नहीं मिली। पीने के पानी और खाने की व्यवस्था नहीं करने के चलते लोगों में काफी रोष है।
चंद्रभागा रमतूजी की चाली में रहने वाले मनूभाई ईश्वरभाई बताते हैं कि रात 11 बजे से उनके घर में पानी घुसना शुरु हुआ और देखते ही देखते 11.30 बजे तक उनका आधे से भी ज्यादा मकान पानी में डूब गया। वो अपना पूरा सामान भी नहीं निकाल पाए। जिससे रोड पर रात बितानी पड़ी। दोपहर तक भी घर पानी में डूबा है।
मीनाबेन बचूभाई दंताणी ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं चला और अचानक घर में पानी घुस गया। इससे वे परेशान हो गए। जान बचाते हुए अपने बच्चों के साथ निकल कर सड़क पर आ गए। सामान को वैसे ही बह जाने दिया।
सुनील बताते हैं कि पूरा मकान पानी में डूबने से पूरी रात तो सड़क पर बिताई तरके से घर में जमा कीचर को निकालने में जुटे हैं। प्रशासन ने शिवाय बिजली लगाने के कुछ भी नहीं किया। सुबह से खाना तो दूर पीने के पानी तक का इंतजाम प्रशासन ने नहीं किया। गिरनारी नी चाली में रहने वाले मुकेश का कहना है कि बुधवार रात 12 बजे से गुरुवार शाम तक भी मकान पानी में डूबा है। घर के अंदर भींग जाने से सामान खराब हो चुका है। प्रशासन ने सिर्फ लाइट लगाई। सामान निकलवाने में मदद करना तो दूर दोबारा कोई देखने तक नहीं आया कि रात में लोग कैसे और कहाँ पर रह रहे हैं। इस इलाके में रहने वाले लोग ज्यादातर दिहारी मजदूर हैं। सुरेश दंताणी कहते हैं कि हर दिन मजदूरी कर पेट पालते हैं लेकिन घर में पानी आ जाने के कारण वे काम पर नहीं गए। रंग का काम करनेवाले रामहित ओझा के साथ भी यही स्थिति पाई गई। कई लोग रिवरफ्रंट को भी इसके लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। कनूलोहार के मुताबिक इस बार तो वे लोग मनपा (महानगर पालिका) चुनावों में मतदान का भी बहिष्कार करेंगे क्योंकि उनकी हालत पर किसी को भी चिन्ता नहीं है।
2006 के बाद हुई एेसी हालत
स्थानीय पार्षद नारणभाई पटेल बताते हैं कि वर्ष 2006 के बाद फिर से ऐसी स्थिति बनी है। इलाके में करीब दो हजार मकानों में करीब पाँच हजार लोग रहते हैं। फिलहाल इलाके के करीब एक हजार मकानों में साबरमती का पानी घुस गया है, जिसके चलते यहाँ रहने वाले लोगों को सड़क, खादी बोर्ड कार्यालय, रेड क्रॉस परिसर के पास और टेकरा स्थित महानगर पालिका (मनपा) स्कूल में रहने की व्यवस्था की गई है। पटेल के मुताबिक यह समस्या वर्ष 1973 में चंद्रभागा पुल बनने से पहले की है, लेकिन आज तक इसका हल नहीं हुआ। पुल के नीचे की बस्ती में ये हालत यहाँ से गुजरने वाले कच्चे नाले की वजह से है, जिसे ये लोग वर्षों से पक्का करने की माँग कर रहे हैं, लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं होता है। यही वजह है कि 2002, 2003 और 2006 के बाद इस वर्ष भी बस्ती में नदी का पानी घुस गया। पटेल ने कहा कि पीने के पानी और भोजन की व्यवस्था करने में वो एनजीओ और प्रशासन से सम्पर्क करके प्रयासरत हैं।