नदी के मार्ग में जब किसी स्थान परतीव्र ढाल के कारण जल अधिक ऊँचाई से नीचे की ओर वेग से गिरता है, जलप्रपात कहलाता है। जब नदी के मार्ग में कठोर तथा कोमल शैलों की परतें क्षैतिज अवस्था में अथवा उद्गम की ओर झुकी हुई अथवा लम्बवत् रूप में स्थित होती हैं, कोमल शैल अपरदित हो जाती है किंतु कठोर (प्रतिरोधी) शैल नहीं कट पाती है और अवरोध के रूप में विद्यमान रहती है जिसके परिणामस्वरूप जल कठोर शैल के ऊपर से नीचे की ओर गिरने लगता है। जल प्रपात के लघु रूप को उच्छलिका या क्षिप्रिका (rapid) कहा जाता है। पठार के तीव्र ढाल वाले किनारे (भृगु) अथवा कगार भ्रंश पर ऊपर से नीचे गिरते हुए सरिता जल द्वारा प्रपात की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार निलम्बी घाटी में प्रवाहित होने वाली सरिता का जल मुख्य नदी में अधिक ऊँचाई से नीचे की ओर गिरता है जिससे प्रपात का निर्माण होता है।
जब प्रपात का निर्माण उद्गम की ओर झुकी हुई असमान प्रकृति वाली शैलों के ऊपर होता है, आगे निकला हुआ कठोर भाग आधारहीन होने के कारण टूटकर नीचे गिर जाता है जिसके फलस्वरूप जलप्रपात धीरे-धीरे पीछे हटता जाता है। सं. रा. अमेरिका का नियाग्रा प्रपात इसका उत्कृष्ट उदाहरण है जो प्रतिवर्ष लगभग 1 मीटर की दर से पीछे हटता जा रहा है। अब तक यह अपने मौलिक स्थल से 11 किमी. से भी अधिक पीछे हट चुका है।
जब प्रपात का निर्माण उद्गम की ओर झुकी हुई असमान प्रकृति वाली शैलों के ऊपर होता है, आगे निकला हुआ कठोर भाग आधारहीन होने के कारण टूटकर नीचे गिर जाता है जिसके फलस्वरूप जलप्रपात धीरे-धीरे पीछे हटता जाता है। सं. रा. अमेरिका का नियाग्रा प्रपात इसका उत्कृष्ट उदाहरण है जो प्रतिवर्ष लगभग 1 मीटर की दर से पीछे हटता जा रहा है। अब तक यह अपने मौलिक स्थल से 11 किमी. से भी अधिक पीछे हट चुका है।