जल संचय पर सरकारो की संवेदनशून्यता

Submitted by Hindi on Wed, 02/23/2011 - 09:41
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हस्तक्षेप, 31 जनवरी 2011

बाराबंकी। एक ओर जहां अपने व्यक्तिगत खर्चे से आई.जी.मानवाधिकार महेन्द्र मोदी जल संचय की नयी तकनीक एवं अविष्कार करने में जुटे हुए हैं तो वहीं अरबो रुपये इस मद पर लुटाने वाली केन्द्र व राज्य की सरकारें संवेदन शून्य बनी हुई है। चाहिए तो यह था कि अपने सरकारी उपक्रम के इस पुर्जे को जो अपने सीमित संसाधनो से मानवजीवन के लिए अतिउपयोगी जल की आपूर्ति तथा उसके संचय में अपना तन मन धन लगाए हुए को सम्मानित करते हुए उसे हाथो हाथ लेकर उसका भरपूर उपयोग सरकारें करती परन्तु शायद उन्होंने ऐसा इस लिए नहीं किया कि उन्हें मानव उपकार से अधिक अपना धन संचय अधिक प्रिय है।

पत्रकारो ने आज टाउन हाल में हुए श्री मोदी के व्याख्यान के पश्चात उनसे प्रश्न पूछते हुए कहा कि इतने दिनो से वह अपना व्यक्तिगत प्रयास जल संचय के लिए कर रहे हैं क्या कभी उनसे सरकार की ओर से इस बाबत अपना हाथ बढाकर मदद का ऑफर दिया गया तो श्री मोदी ने उत्तर दिया कि नहीं परन्तु उन्होंने अभी सरकार से कुछ मांगा भी नहीं।

परन्तु कुछ न कहते हुए भी आई.जी.मोदी बंद शब्दो में सरकार द्वारा ग्रामीण अंचलो में तालाबो की खुदाई कराने की योजना पर टिप्पणी कर ही बैठे। उन्होंने कहा कि आज मनरेगा व अन्य योजना अंतर्गत बड़े-बड़े भीमकाय तालाब गांवो मे खुदाए जा रहे है लाखों रुपये इसका खर्चा आ रहा है परन्तु जितना जल संचय होना चाहिए वह नहीं हो पाता और वर्षा ऋतु के चंद माह पश्चात तालाब सूख जाते हैं। एक ओर यह तालाब जहाँ अपने लक्ष्य को भी प्राप्त नहीं कर पाते वहीं दूसरी ओर आवश्यकता से अधिक गांव की भूमि इन तालाबो के हिस्से मे चली जाती है। जिस पर खेती करके उपज बढायी जा सकती थी। उन्होंने अपनी सलाह देते हुए कहा कि होना यह चाहिए कि तालाबो का दायरा बजाय बढाने के उसका एक चैथाई कर दिया जाए और गहरान बढा दी जाए तथा तालाब को ऊपर से वर्षा ऋतु के बाद ढक दिया जाए कोई जरुरी नहीं कि तालाब को ढकने के लिए कंकरीट या सीमेन्ट का प्रयोग किया जाए गांव में उपलब्ध फूस इत्यादि से भी इसे ढका जा सकता है ताकि जल के वाष्पीकरण से इसे सुरक्षित किया जा सके।
 

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