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अनुभूति, अक्टूबर 2013
जल ही जीवन का आधार है,
जल ही सृष्टि की शुरुआत है,
इसके बिना हमारा अस्तित्व नहीं
समझते हैं लोग।
क्यों नहीं समझते लोग।
जल न हो तो मच जाए त्राहि-त्राहि,
जल न होतो सूखे हरियाली,
जल न हो तो सर्वत्र उदासी,
समझते हैं लोग।
लेकिन इसका अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते लोग।
नदियां जीवनदायिनी हैं,
झीलें मनभाविनी हैं,
तालाब प्यास बुझाते हैं
समझते हैं लोग।
लेकिन इसका अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते लोग।
कहीं बाढ़ है, कहीं सूखा है,
कहीं ज्यादा है, कहीं थोड़ा है,
कहीं जरूरत है, कहीं व्यर्थ है,
समझते हैं लोग।
लेकिन इसका अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते लोग।
जहां ज्यादा है, उसे थोड़े से जोड़ना है,
जहां यूं ही सागर में बहे,
उसे बांध बनाकर रोक लें,
जहां अक्सर बाढ़ है,
उसका संग्रहण कर उपयोग करें,
समझते हैं लोग।
नदियों को जोड़ने की परियोजना
क्यों नहीं समझते लोग।
जल का अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते हैं लोग।
जल ही सृष्टि की शुरुआत है,
इसके बिना हमारा अस्तित्व नहीं
समझते हैं लोग।
क्यों नहीं समझते लोग।
जल न हो तो मच जाए त्राहि-त्राहि,
जल न होतो सूखे हरियाली,
जल न हो तो सर्वत्र उदासी,
समझते हैं लोग।
लेकिन इसका अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते लोग।
नदियां जीवनदायिनी हैं,
झीलें मनभाविनी हैं,
तालाब प्यास बुझाते हैं
समझते हैं लोग।
लेकिन इसका अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते लोग।
कहीं बाढ़ है, कहीं सूखा है,
कहीं ज्यादा है, कहीं थोड़ा है,
कहीं जरूरत है, कहीं व्यर्थ है,
समझते हैं लोग।
लेकिन इसका अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते लोग।
जहां ज्यादा है, उसे थोड़े से जोड़ना है,
जहां यूं ही सागर में बहे,
उसे बांध बनाकर रोक लें,
जहां अक्सर बाढ़ है,
उसका संग्रहण कर उपयोग करें,
समझते हैं लोग।
नदियों को जोड़ने की परियोजना
क्यों नहीं समझते लोग।
जल का अपव्यय रोकना है,
क्यों नहीं समझते हैं लोग।