मेधा पाटकर

Submitted by admin on Thu, 12/05/2013 - 10:42
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काव्य संचय- (कविता नदी)
समुद्र है तो बादल है
बादल है तो पानी है
पानी है तो नदी है
नदी है तो बची हुई है मेधा पाटकर

नदी है तो घर हैं
उसके किनारे बसे हुए
घर हैं तो गांव है
गांव है मगर डूबान पर
डूबान में एक द्वीप है
स्वप्न का
झिलमिल
मेधा पाटकर

वह जंगल की हरियाली है
चिड़ियों का गीत
फूलों के रंग और गंध के लिए लड़ती
जड़ों की अदम्य इच्छा है वह

वह नर्मदा की आंख है
जल से भरी हुई
जहां अनेक किश्तियां डूबने से बची हुई हैं

सत्ता के सीने में तनी हुई बंदूक है
धरती की मांग का
दिप-दिप सिंदूर है मेधा पाटकर।