जल संरक्षण से तिहाड़ में पांच फुट बढ़ा भूजल स्तर

Submitted by Hindi on Mon, 08/01/2011 - 08:08
Source
नई दुनिया, 01 अगस्त 2011

कुल 40 जल संरक्षण क्षेत्र बनाए गए हैं


तिहाड़ जेल में जल संरक्षणतिहाड़ जेल में जल संरक्षणनई दिल्ली। वर्षा जल संरक्षण के लिए सालों भर माथापच्ची कर करोड़ों की योजना तैयार करने वाली सरकार और सरकारी संस्थाओं के लिए तिहाड़ जेल प्रशासन का सफल प्रयास करारा जवाब है। तिहाड़ जेल प्रशासन ने पिछले 10 सालों से जल संरक्षण की दिशा में बेहद उत्साहजनक प्रयास किया। इसी कोशिश का सकारात्मक नतीजा रहा कि जेल परिसर के अंदर भूजल स्तर में पांच फीट की वृद्धि हुई है। मजे की बात यह भी है कि जेल प्रशासन खेती की सिंचाई के लिए भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का पानी उपयोग करता है, वहीं प्लांट से निकले कचरे का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है।

करीब 400 एकड़ में फैले तिहाड़ जेल परिसर में वर्षा जल संरक्षण की योजना उस वक्त बनाई गई जब गिरते भूजल स्तर से पूरा देश चिंतित था। तिहाड़ प्रशासन ने अपने सभी 10 जेलों में वर्षा जल संरक्षण के लिए कुल 40 पीट्स बनाए। पीट्स का आकार जमीन की सतह से भले ही छह फीट ऊंचा है लेकिन पीट्स को इस तरह से तैयार किया गया है, जिससे बारिश का पानी सीधा पीट्स में गिरता ही है, पूरे जेल परिसर से बारिश का पानी बहकर इसमें जमा हो जाता है। जेल के अंदर वैसे तो 40 ट्यूबवेल हैं लेकिन 25 ट्यूबवेल चालू अवस्था में है। मजे की बात है कि इसमें से 15 ट्यूबवेल का उपयोग वर्षा जल संरक्षण के लिए किया जाता है। इसका परिणाम रहा कि कुछ साल पहले जेल परिसर का भूजल स्तर 70 फीट था, जो अब कम होकर मात्र 65 फीट पर आ गया है।

पीने का पानी तो दिल्ली जलबोर्ड से लिया जाता है लेकिन जलबोर्ड का पानी जेल में बंद कुल 12 हजार कैदियों की प्यास बुझाने के लिए ट्यूबवेल का पानी भी उपयोग में लाया जाता है। इस पानी को मशीन के माध्यम से स्वच्छ बनाकर पीने के उपयोग में लाया जाता है। दूसरी मजे की बात है कि पूरी दिल्ली भरे सीवर लाइन से जूझ रही है लेकिन इन सबसे निश्चिंत तिहाड़ जेल प्रशासन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के शोधित पानी से जेल में उगाए जा रहे अनेक प्रकार के फसलों की सिंचाई करता है और इससे निकले कचरे का उपयोग फसलों में खाद के रूप में कर रहा है।

इस संबंध में तिहाड़ जेल के प्रवक्ता सुनील गुप्ता कहते हैं हमारी कोशिश है कि बारिश का एक बुंद पानी भी बेकार न जाए। इससे न सिर्फ हमारी जरूरतों की पूर्ति होती है, बल्कि धरती के भूजल स्तर में भी वृद्धि होती है।