Source
भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित पुस्तक 'भारतेंदु समग्र'
नाव चढ़ि दोऊ इत उत डोलैं।
छिरकत कर सों जल जंत्रित करि गावत-हँसत कलौलैं।
करनधार ललिता अति सुंदर सखि सब खेवत नावैं।
नाव-हलनि मैं पिया-बाहु मैं प्यारी डरि लपटावैं
जेहि दिसि करि परिहास झुकावहिं
सबही मिलि जल-यानै।
तेही दिसि जुगुल सिमिट झुकि
परहिं सो छबि कौन बखाने।
ललिता कहत दाँ अब मेरी तू मों हाथन प्यारी।
मान करन की सौंह खाई तौ हम पहुंचावैं पारी।
हँसत हँसावत छींट उड़ावत बिहरत दोऊ सोहैं।
‘हरिचन्द’ जमुना-जल फूले जलज सरिस मन मोहैं।।
छिरकत कर सों जल जंत्रित करि गावत-हँसत कलौलैं।
करनधार ललिता अति सुंदर सखि सब खेवत नावैं।
नाव-हलनि मैं पिया-बाहु मैं प्यारी डरि लपटावैं
जेहि दिसि करि परिहास झुकावहिं
सबही मिलि जल-यानै।
तेही दिसि जुगुल सिमिट झुकि
परहिं सो छबि कौन बखाने।
ललिता कहत दाँ अब मेरी तू मों हाथन प्यारी।
मान करन की सौंह खाई तौ हम पहुंचावैं पारी।
हँसत हँसावत छींट उड़ावत बिहरत दोऊ सोहैं।
‘हरिचन्द’ जमुना-जल फूले जलज सरिस मन मोहैं।।