वैसे प्राकृतिक आपदाओं ने उत्तराखण्ड को अपना घर बना दिया है। थोड़ी सी बारिश के कारण भी प्राकृतिक आपदा घट जाती है। मगर जब हम प्राकृतिक संसाधनों पर हो रहे विकास कार्यों को मात्र उपभोग की दृष्टि से देखते हैं तो कुछ प्राकृतिक आपदाएं खुद के किये हुए का दंश माना जाना चाहिए। ऐसा राज्य के नीति-नियन्ता स्वीकार नहीं करते। वे प्राकृतिक संसाधनों पर हो रहे विकास कार्यों को अलग चस्में से देखते हैं।
बताते चलें कि ऋषीकेश से ऊपर गंगा पर आधा दर्जन से अधिक जल विद्युत परियोजनाएं निर्माणाधीन है। निर्माणाधीन इन जलविद्युत परियोजनाओं ने साल 2013 में जता दिया कि सर्वाधिक आपदा की घटनाएँ इन्हीं परियोजनाओं के निर्माण के कारण हुई है। यह एक वैज्ञानिक कमेटी की रिपोर्ट थी जिसे सर्वोच्च न्यायालय में भी प्रस्तुत किया गया था। परन्तु इधर अब निर्माण हो चुकी जल विद्युत परियोजनाओं के जलाशय भी अब लोगों को डरा रहे हैं कि कब उनके आशियाने बाँध के जलाशय में न समा जाये। ऐसा वाकया उत्तरकाशी मुख्यालय से सटे ज्ञानसू बस्ती का सामने आया है।
ज्ञात हो कि मनेरी भाली स्टेज टू जल विद्युत परियोजना के जोशियाड़ा बैराज जलाशय से ज्ञानसू बस्ती की ओर हो रहा रिसाव बड़े खतरे का संकेत दे रहा है। बस्ती के लोग घरों और खेतों में हो रहे पानी के रिसाव से भयभीत हैं। जलाशय के किनारे करीब 63 करोड़ रुपये लागत से मजबूत सुरक्षा दीवार बनाने के बाद भी रिसाव जारी रहने पर अब जल विद्युत निगम बस्ती की ओर गहरी नाली खुदवा कर रिस रहे पानी की निकासी के इंतजाम में जुटा है। दीवार बनने के बाद भी ज्ञानसू जलाशय के पानी का रिसाव अनवरत जारी है। इस कारण जलाशय के आस-पास की बसावट अब विस्थापन की मांग कर रहे हैं।
वर्ष 2008 में बनकर तैयार हुई 304 मेगावाट की मनेरी भाली स्टेज टू परियोजना के जोशियाड़ा बैराज जलाशय से ज्ञानसू बस्ती की ओर रिसाव की समस्या प्रारम्भ से बनी हुई है। शुरूआत में तो लोगों ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया, लेकिन वर्ष 2012 -13 की बाढ़ में बस्ती की ओर कटाव के साथ रिसाव बढ़ने पर लोग भयभीत हैं। जलविद्युत निगम द्वारा इस हिस्से में जलाशय के किनारे लगभग 63 करोड़ रुपये की लागत से बनायी जा रही सुरक्षा दीवार से लोगों को रिसाव रुकने की उम्मीद थी, लेकिन आजकल भी जलाशय को समुद्र सतह से 1104 मीटर लेवल से ऊपर भरे जाने पर रिसाव की समस्या आ रही है। बस्ती में हो रहे रिसाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चार फिट तक घरों की बुनियाद खोलने पर ही पानी भरता जा रहा है। घरों के सेप्टिक टैंक पानी से लबालब भर गए हैं। ऐसे में यहाँ धँसाव का खतरा पैदा हो गया है। बस्ती के लोगों की शिकायत को गम्भीरता से लेते हुए जलविद्युत निगम अब बस्ती की ओर लगभग दो मीटर गहरी नाली खुदवा रहा है। ताकि रिस रहा पानी इस नाली के रास्ते से बाहर निकाला जा सके। बस्ती के लोगों को डर है कि जलाशय को डिजाइन के अनुरूप 1108 मीटर लेवल तक भरने पर कहीं समस्या ज्यादा भयावह न हो जाए।
जलाशय भरने पर ही होता है रिसाव
रिसाव से जूझ रही निचली ज्ञानसू बस्ती के लक्ष्मण चौहान, अखिलानंद भट्ट, गोपेश्वर भट्ट, मोर सिंह रावत, अवतार बिष्ट, कुशलानंद नौटियाल, दिनेश भंडारी, बचन सिंह कैंतुरा आदि ने बताया कि जब जलाशय खाली रहता है तब रिसाव नहीं होता। जलाशय को 1104 मीटर से ज्यादा भरने पर रिसाव बढ़ने लगता है। यहाँ नए मकान तो लोग छह से सात फिट ऊँची बुनियाद पर बना रहे हैं, लेकिन शौचालय के सेप्टिक टैंक के गड्ढों में पानी भर रहा है। उन्होंने जल विद्युत निगम से शीघ्र रिसाव की समस्या से निजात दिलाने की मांग की है।
जलाशय से नहीं है पानी का रिसाव
नाम न छपवाने की शर्त पर जल विद्युत निगम के अधिकारी बताते हैं कि जलाशय से रिसाव की सम्भावना कम ही है। यह पानी बस्ती के घरों का ही है। जलाशय भरने पर इसकी निकासी न होने से यह पानी बस्ती में ही भर रहा है। फिलहाल बस्ती के किनारे करीब दो मीटर गहरी और दो सौ मीटर लंबी नाली का निर्माण कराया जा रहा है। इसके माध्यम से बस्ती में रिस रहे पानी की निकासी होने से समस्या हल हो जाएगी। इसके बाद भी यदि रिसाव नहीं रुका तो इसकी पड़ताल करायी जाएगी।