जन, जल, जंगल, ज़मीन को समर्पित लखनऊ का संगठन लोकभारती

Submitted by Editorial Team on Sun, 12/11/2022 - 10:17
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022

कुकरैल नदी संरक्षण अभियान, फोटो साभार - लोकभारती

प्रकृति के एक चक्र के टूटने से अनेक चक्र टूटते हैं, जैसे परस्पर सहकार, स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता, मानवता और वसुधैव कुटुंबकम की श्रेष्ठ भावना। किसमें निहित है शोषण नहीं पोषण, भोग नहीं उपभोग, सहअस्तित्व, प्रकृति से जितना लेना, उतना लौटाना और सबसे महत्वपूर्ण है शाश्वतता का सिद्धांत, जिसे आधुनिक विकास ने पूर्णतः ध्वस्त किया, अब सस्टेनेबल की खोज में लगे हैं। 

लोकभारती से जुड़े कर्मयोगी बंधुओं! हमारा प्रत्येक पल, प्रत्येक क्षण संकल्पवान हो, दिव्य हो, समृद्ध व प्रेरणादायक हो, लोकभारती से जुड़े सभी बंधु इसी भाव से निरंतर कर्म योग की साधना में रत हैं। साधना में अपने लिए संकल्प अमृत स्मरण रखना आवश्यक है आता जानते हुए भी अपने ध्येय के प्रति समर्पित लोकभारती की गतिविधियों का पुनः स्मरण करना मुझे उपयुक्त लगता है।

लोकभारती की गतिविधियां 

1 - गौ आधारित प्राकृतिक कृषि -

हम सब जिसे शून्य लागत प्राकृतिक कृषि सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि या गौ आधारित प्राकृतिक कृषि के नाम से पुकारते हैं, जो पूर्णतः प्राकृतिक सिद्धांत पर आधारित है। हम चाहते हैं कि अन्नपूर्णा कृषि भूमि सदा उर्वरा बनी रहे, उसकी उत्पादकता, गुणवत्ता, पोषकता और आरोग्यवर्धन की क्षमता निरन्तर उपलब्ध होती रहे। इसके साथ ही भूजल स्तर, जैव विविधता और पर्यावरण के संरक्षण के अनुरूप कृषि कार्य और किसान समृद्धि हेतु गौ आधारित प्राकृतिक कृषि एक मात्र हमारा संकल्प है। इस पद्धति से उत्पादकता, गुणवत्ता के साथ ही प्रकृति प्रदत्त एक दूसरे की पूरकता के शाश्वत सिद्धांत का पोषण व संरक्षण निहित है, जैसे भूमि की उर्वरता और पशुधन तथा कृषि उत्पाद के अवशेष एक दूसरे के पूरक हैं। आधुनिक कृषि विज्ञान ने उस चक्र को तोड़ने का कार्य किया है। प्रकृति के एक चक्र के टूटने से अनेक चक्र टूटते हैं, जैसे परस्पर सहकार, स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता, मानवता और “वसुधैव कुटुम्बकम' की श्रेष्ठ भावना। जिसमें निहित है शोषण नहीं पोषण, भोग नहीं उपभोग, सहअस्तित्व, प्रकृति से जितना लेना उतना लौटाना और सबसे महत्वपूर्ण है शाश्वतता का सिद्धांत, जिसे आधुनिक विकास ने पहले पूर्णतः ध्वस्त किया और अब सस्टेनेबल की खोज में लगे हैं। गौ आधारित प्राकृतिक कृषि उपरोक्त व उनसे जुड़ें समस्त प्रश्नों का समाधान है।

गौ आधारित प्राकृतिक कृषि पद्धति के प्रमुख आधार बिन्दु-

सूक्ष्म जीवाणु - फसल को पोषण के लिए जो भी तत्व (16 तत्व) आवश्यक हैं वह सब भूमि, वायु और जल में सन्निहित हैं। प्रकृति ने उन तत्वों और फसल के मध्य परस्पर सहयोगी सूक्ष्म जीवाणु बनाये हैं, यदि वह हैं तो बाहर से किसी उर्वरक, खाद देने की आवश्यकता नहीं है। सूक्ष्म तत्व उपलब्ध होने पर भी इन सूक्ष्म जीवाणुओं (रसोइया) के बिना ग्रहण नहीं कर सकते। जैसे वायुमण्डल में 78 प्रतिशत से अधिक नाइट्रोजन विद्यमान है, परन्तु पौधा सीधे नहीं ले सकता। 

सूक्ष्म जीवाणु भारतीय गाय (गौवंश) के एक ग्राम गोबर में 3 से 5 हजार करोड़ तक सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं, जिन्हें वैज्ञानिक किण्वन (फर्मेंटेशन) पद्धति से अनंत गुना विकसित कर खेत में दिया जाता है।

जीवामृत-घन जीवामृत - देशी गाय के 10 किलो ताजे गोबर में 5 से 10 लीटर गोमूत्र (किसी भी प्रकार के विषाणु और दीमक के दुष्प्रभाव से बचाव हेतु), एक मुट्ठी किसी पीपल, बरगद की मिट्टी (अन्य उपयोगी सूक्ष्म जीवाणु हेतु), 1 से 2 किलो गुड़ (किण्वन हेतु), 1 से 2 किलो दलहन का आटा अर्थात्‌ बेसन (सूक्ष्म जीवाणु के अनंत गुना बढ़ने पर उनके पोषण हेतु), 200 लीटर के ड्रम में सभी उपरोक्त सामग्री मिलाकर पानी से भर कर, छाया में टाट की बोरी से ढ़क कर रखना और किसी डंडे से घड़ी की दिशा में सुबह शाम चलाना। गर्मी में 2-3 दिन और सर्दियों में एक सप्ताह में जीवामृत बन कर तैयार हो जाता है, जो एक एकड़ खेत में सिंचाई के साथ देना पर्याप्त होता है। इसके अतिरिक्त खेत तैयारी के समय प्रारम्भ में 5 से 10 कुंतल, बाद में मात्र एक कुंतल घन जीवामृत देना होता है।

आच्छादन (मल्चिंग)- कृषि अवशेषों को फसल के मध्य खाली स्थान पर 4 इंच मोटाई में ढकना, जिससे खेत में सूक्ष्म जीवाणु, मित्र कीट (केंचुए) आदि के अनुकूल सूक्ष्म वातावरण निर्मित होगा। नमी का उत्सर्जन कम होगा, वायुमण्डल से नमी खेत को मिलेगी जिससे 90 प्रतिशत तक सिंचाई के पानी की बचत होगी। खरपतवार से बचाव होगा, श्रम की बचत होगी, फसल को पूर्ण पोषण मिलेगा।

सह फसल - सह अस्तित्व के सिद्धांत के अनुसार एक दलीय और द्वि दलीय, गहरी जड़ और कम गहरी जड़, बड़े व छोटे पौधे, अधिक धूप वाले व कम धूप वाले कई प्रकार की एक साथ फसल लेने से वे एक दूसरे के सहायक भी होते हैं, उत्पादकता भी बढ़ती है और प्राकृतिक आपदा से भी बचाते हैं।

देशी बीजों का उपयोग - गौ आधारित प्राकृतिक खेती में देशी बीजों का प्रयोग व उनके संरक्षण, संवर्धन का भी कार्य करना है। यद्यपि इस विधि में कीट व रोगों का नियंत्रण प्राकृतिक विधि से होता रहता है। 

कीट और रोग नियंत्रण - यद्यपि इस विधि में कीट व रोगों का नियंत्रण प्राकृतिक विधि से होत रहता है। फिर भी आवश्यकता अनुसार पूर्व तैयारी हेतु दशपर्णि, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र आदि बनाकर रखने चाहिये।

बीज शोधन - बुवाई से पहले बीज के अनुपात में गोबर, गोमूत्र में बुझा चूना (50 ग्राम) मिलाकर बने लेप को बीज पर लगाकर बीज शोधन करना और कुछ घण्टे छाया में सुखाने के बाद बोना चाहिये। 

विस्तार और प्रभाव- लोकभारती द्वारा वर्ष 2010 से सुभाष पालेकर जी के साथ सम्पूर्ण हिन्दी भाषी क्षेत्रों में तथा स्थानीय आधार पर छोटे-बड़े कई सौ प्रशिक्षण शिविरों के आयोजनों के माध्यम से हजारों किसानों को प्रशिक्षित करने के साथ ही उनके साथ अनुवर्ती सहयोग करके मॉडल विकसित करना, प्रशिक्षक तैयार करने का कार्य भी निरन्तर किया जा रहा है। परिणाम स्वरूप भारत सरकार ने इस पद्धति को भारतीय कृषि नीति के साथ जोड़ा है। साथ ही कृषि विश्वविद्यालयों में इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है। सभी कृषि विश्वविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर प्रयोग प्रारम्भ हुए हैं।

किसानों के मध्य गौ आधारित प्राकृतिक खेती के कलस्टर विकसित किए जा रहे हैं और समाज में इसके उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है।

अन्य करणीय कार्य - श्रम की लागत घटे, इस हेतु कृषि यंत्रों और उपकरणों पर कार्य। देशी बीज संरक्षण और संवर्धन पर कार्य। देशी, स्थानीय गौवंश के संवर्धन पर कार्य। मूल्य एवं गुण वृद्धि हेतु प्रशोधन पर कार्य। घरेलू डॉक्टर नहीं, घरेलू किसान बढ़ाने पर कार्य। अन्नदाता सम्मान पर कार्य। विविध फसलों के सघन संकुल (कलस्टर) विकसित करने पर कार्य। प्रशिक्षण केंद्र विकसित करने पर कार्य। गौ आधारित प्राकृतिक कृषि पर्यटन एवं खेत दर्शनार्थ को बढ़ावा देने पर कार्य। गौ आधारित प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा देने हेतु, रासायनिक कृषि के समतुल्य कृषि अवदानों में सरकारी पोषण बढ़ाने हेतु कार्य। गौ आधारित प्राकृतिक उत्पादों की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए मानकों के साथ ही उसके प्रमाणीकरण की भारतीय विधा (बाजारवाद से मुक्त) विकसित करने पर कार्य।

(2) पर्यावरण संरक्षण-

पर्यावरण एक व्यापक शब्द है। लोकभारती अपनी पहुँच और सामर्थ्य के अनुसार पर्यावरण सम्बन्धी निम्न विषयों पर कार्यरत है-

वृक्षारोपण- जीव जगत की सुरक्षा हेतु पृथ्वी के एक तिहाई भू भाग पर हरियाली अर्थात वृक्षावली वनावरण होना चाहिए। इस हेतु लोकभारती भी विभिन्न समाज सेवकों के साथ मिलकर 2005 से कार्यरत है। इस हेतु लोकभारती हरिशंकरी, मंगल वाटिका, औषधि व गृह वाटिका रोपण के साथ-साथ पंच स्तरीय बागवानी के लिए कार्य कर रही है।

हरियाली माह- भारतीय परम्परा में आषाढ़ पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) से रक्षाबंधन तक पूरा महीना वृक्षारोपण के लिए सर्वथा उपयुक्त है। इसी महीने में हरियाली तीज (हरियाली उत्सव) तथा नाग पंचमी (जैवविविधता दिवस) भी पड़ता है।

हरिशंकरी सप्ताह - अमृत महोत्सव काल में लोकभारती और उत्तर प्रदेश वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में 7 से 14 सितम्बर, 2022 के मध्य हरिशंकरी सप्ताह का आयोजन उत्तर प्रदेश के सभी 18 मॉडल केंद्रों पर आयोजित किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के सहभाग से 75-75 हरिशंकरी लक्ष्य को पूर्ण करते हुए कई गुना सुरक्षित व्यवस्था में हरिशंकरी रोपण सम्पन्न हुआ। मुरादाबाद, प्रयाग में सामाजिक संस्थाओं का सहभाग स्मरणीय एवं प्रेरक रहा। लखनऊ ने ग्यारह सौ हरिशंकर रोपण कर कीर्तिमान स्थापित किया।

सघन हरिशंकरी रोपण - सामुहिक सहभागिता से शाहजहांपुर जिले के पुवांया एवं बंडा विकास खंड के 156 ग्राम पंचायतों में एक दिन में 17 टोलियों में 75 से अधिक केंद्रीय, प्रांतीय प्रतिनिधियों द्वारा हरिशंकरी का रोपण सम्पन्न हुआ, जो अपने आप सामुदायिक वृक्षारोपण का अभूतपूर्व आयोजन सिद्ध हुआ। जो गांवों के लोग प्रत्येक कार्य के लिए सरकार की ओर देखते रहते हैं, उन्होंने ही अपने संसाधनों और श्रम से 196 ग्राम पंचायतों में हरिशंकरी रोपित कर सामाजिक जागरूकता एवं सहकार का परिचय दिया।

(3) जल, जलस्रोत एवं नदी संरक्षण-

जल ही जीवन है। इस जीवन रूपी जल का संरक्षण वर्तमान और भविष्य दोनों के लिये आवश्यक है। पश्चिम की भोगवादी विकास की अंधी दौड़ ने पर्यावरण के क्षरण के साथ ही भूगर्भ जल का दोहन नहीं अपितु इतना अधिक शोषण किया है कि भूजल पाताल की ओर जा रहा है। इस के कारण नदियों, झीलों, तालाबों में निकलने वाले सोते सूख गए हैं। इसके कारण अनेक हैंडपंप, कुएं सूख गए हैं। अनेक तालाब और अनेक छोटी नदियां या तो पूरी तरह सूख गई हैं या सूखने के कगार पर हैं। लखनऊ की जीवन रेखा एवं गंगा की सहायक नदी गोमती अपने उद्गम
से आगे अनेक स्थानों पर सूख गई है। इसके साथ ही गोमती की 22 सहायक नदियों में से एक तिहाई नदियां सूख चुकी हैं। यह भूजल दोहन ऐसे ही चलता रहा और वर्षा जल भंडारण पर कार्य नहीं हुआ तो भविष्य में जल की बहुत भयावह स्थिति बनेगी। लोकभारती ने इस स्थिति को 2010 से पूर्व ही समझ लिया था।

अतः उसी समय से लोकभारती ने इस दृष्टि से समाज जागरण, जागृत लोगों का संयोजन, समन्वय एवं अध्ययन के साथ प्रत्यक्ष कार्य प्रारम्भ कर दिया था, जिसका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है-

बुन्देलखण्ड जल संकट संगोष्ठी- लोकभारती ने जल संरक्षण के छोटे छोटे कार्यों के साथ ही सर्वप्रथम बुन्देलखण्ड के जल संकट और समाधान हेतु जागरूकता संगोष्ठी का आयोजन लखनऊ में 27 जनवरी, 2008 में आयोजित किया जिसमें जल पुरुष राजेंद्र सिंह, राष्ट्रीय सेवा विभाग के प्रमुख सीताराम केडिया सहित सिंचाई विभाग के अधिकारी एवं प्रदेश भर के 100 से अधिक सामाजिक संस्थाओं एवं कार्यकर्ताओं की सहभागिता रही। उसके बाद बुन्देलखण्ड में जल संरक्षण की दृष्टि से खेत तालाब पर अनेक संस्थाओ, सामजिक कार्यकर्ताओं एवं प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कार्य प्रारम्भ हुआ, जिसके व्यापक व सुखद परिणाम आए।

माँ गंगा चिन्तन संगोष्ठी- लखनऊ में 22-23 जनवरी, 2011 एवं 28 अप्रैल, 2013 में माँ गंगा चिंतन संगोष्ठी का आयोजन लोकभारती द्वारा किया गया जिसमें प्रख्यात लेखक भरत झुनझुनवाला, भारत सरकार के गंगा संरक्षण अभियान के तात्कालिक प्रमुख विनोद तारे, स्वामी चिदानन्द मुनि, संघ के केंद्रीय अधिकारी कुलकर्णी जी, प्रदेश सरकार के जल मंत्री ओम प्रकाश सिंह, एवं अनेक इंजीनियर सहित देश के 200 प्रमुख जल पर कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। जिसके परिणाम स्वरूप गंगा समग्र का कार्य प्रारम्भ हुआ, जिसमें लोकभारती के संगठन मंत्री बृजेंद्र पाल सिंह एवं उमा श्री भारती की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसी अभियान की प्रेरणा से भारत सरकार ने नमामि गंगे अभियान प्रारम्भ किया।

गोमती अध्ययन एवं अलख यात्रा- लोकभारती ने 28 मार्च-03 अप्रैल, 2011 एवं 10-16 अप्रैल, 2019 में क्रमश गोमती को जानने एवं गंगा, गोमती के साथ ही गोमती की सहायक नदी गैंसी, कठिना, सरायन, सई, रेठ एवं कल्याणी नदी के अतिरिक्त रामरज, रामरेखा, नीम एवं तमसा नदी के पुनर्जीवन हेतु लोकभारती एवं सहयोगी बंधुओं द्वारा कार्य किया जा रहा है।

अध्ययन के साथ ही समाज जागरण हेतु गोमती उद्गम माधो टांडा, पीलीभीत से गंगा मिलन स्थल कैथी घाट, वाराणसी तक दो बार उसके प्रवाह क्षेत्र के 13 जिलों के 33 स्थानों में रुकते हुए 660 किमी की यात्रा की जिसमें सभी 33 स्थानों पर गोमती मित्र मण्डलों का गठन किया गया। पहली यात्रा के एक सप्ताह में प्रदेश सरकार के सचिव स्तर के अधिकारियों की टोली माधो टांडा पहुंची और पीलीभीत जिले में 45 किमी गोमती संरक्षण का कार्य शासन द्वारा प्रारम्भ हुआ। तब से किसी न किसी रूप में सरकार, समाज और लोकभारती द्वारा गोमती संरक्षण का कार्य किया जा रहा है, जो गोमती की अविरल और निर्मलता के लक्ष्य प्राप्ति तक चलता रहेगा।

विविध नदियों पर कार्य- गंगा, गोमती के साथ ही गोमती की सहायक नदी भैंसी, कठिना, सरायन, सई, रेठ एवं कल्याणी नदी के अतिरिक्त रामरज, रामरेखा, नीम एवं तमसा नदी के पुनर्जीवन हेतु लोकभारती एवं सहयोगी
बन्धुओं द्वारा कार्य किया जा रहा है। इसके परिणाम स्वरूप विभिन्न अन्य संगठनों द्वारा इसके अतिरिक्त 2 दर्जन नदियों पर कार्य किया
जा रहा है।

जल एवं जलस्रोत संरक्षण अभियान- लोकभारती द्वारा 2022 के वैशाख मास में वर्ष प्रतिपदा से ज्येष्ठ मास की अक्षय तृतीया तक तालाब, झील, कुआं, नदी एवं अन्य जल स्रोतों के संरक्षण का व्यापक अभियान प्रारम्भ किया। इस अभियान का सुखद प्रतिफल भारत सरकार द्वारा अमृत सरोवर और अमृत वन के ख्प में सामने आया। यह अभियान लोकभारती के नियमित कार्य का हिस्सा है।

घाट स्वच्छता एवं व्यवस्था - लखनऊ में गोमती के गौ घाट को स्नान योग्य बनाने हेतु लिए संकल्पित अभियान को 25 सप्ताह हुए हैं। प्रत्येक रविवार को वर्तमान सर्दियों में प्रातः 7 से 8 बजे एक टोली निरन्तर घाट पर स्वच्छता और व्यवस्था हेतु संलग्न रहती है। इस टोली ने निश्चित किया था कि कार्तिक पूर्णिमा पर गौ घाट पर स्नान योग्य जल व घाट व्यवस्था होनी चाहिये। समाज, संगठन, समूह, शासन, प्रशासन सभी की सहभागी बनने से लक्ष्य के निकट पहुँचना सम्भव हुआ और इस वर्ष 8 नवंबर, 2022 को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पिछले 20 वर्षों में पहली बार लगभग दस हजार महिला-पुरुषों ने गोमती के इस घाट पर स्नान किया। लक्ष्य पूर्णता तक अभियान निरन्तर चल रहा है। इसी प्रकार सुल्तानपुर में सीता कुंड, पीलीभीत में गोमती उद्गम और घाटमपुर, शाहजहांपुर, पुवांया में पणन घाट तथा हापुड़ जिले में गंगा पर पूठ घाट सामाजिक जागरूकता के उदाहरण बने हैं।

(4) बंगो लोकभारती का गठन-

बंगाल से विषम परिस्थितियों में विस्थापित हुए परिवार कालोनियों के रूप में देश के लगभग 18 राज्यों में रह रहे हैं। लोकभारती ने इन्हें रचनात्मक, सकारात्मक, स्वाभिमानी और प्रेरक दिशा देने के लिए बंगो लोकभारती का गठन किया है। इस अभियान के संयोजक लखनऊ से डह देव ज्योति, सह संयोजक लखीमपुर से तपन विश्वास और दूसरे सह संयोजक उत्तराखंड से संजय मण्डल हैं। इस अभियान का केंद्रीय कार्यालय लखीमपुर जिले में मोहम्मदी तहसील के आदर्श गांव रवीन्द्र नगर को बनाया है, जहां पर इसी वर्ष पहला सम्मेलन सम्पन्न हुआ जिसमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं महाराष्ट्र के 50 चयनित प्रतिनिधियों की सहभागिता रही।

आगामी सम्मेलन उत्तराखंड के रुद्रपुर जिले के भगवानपुर में प्रस्तावित है। इस अभियान के द्वारा प्रतिमाओं का विकास, स्वच्छता, गहन हरियाली, पर्यावरण संरक्षण, गौ आधारित प्राकृतिक कृषि, प्रेरक व्यवस्थाएं और राष्ट्रभाव जागरण के प्रतिमान जागृत करना है।

(5) ग्रामोदय अभियान-

ग्राम तथा ग्राम समूह को जाग्रत कर लोकभारती द्वारा लिए गए विभिन्न कार्यों को विकसित कर प्रेरणा क्षेत्र के रूप में स्थापित करना है। इस दिशा में शाहजहांपुर के पुवांया और बंडा विकास खण्ड, बहराइच तथा वाराणसी के सेवापुरी विकास खण्ड को लिया गया है।

(7) मेरा गांव मेरा तीर्थ-

नगरों, महानगरों में अनेकों गांवों के बंधु रहते हैं। उनमे से अनेक अपने गांव से नियमित जुड़े रहते हैं, जिनमें से अनेक अपने गांव के विकास के लिए कुछ अच्छा कर रहे हैं, कुछ अच्छा करना चाहते हैं। लोकभारती नगरों में ऐसे लोगों को खोज कर, उन्हें जोड़ने और उनके द्वारा अपने गांव के लिए कुछ अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करने का कार्य किया जाता है। उनको कुछ कार्यों के लिए परामर्श भी दिया जाता है- गांव जाने पर गांव के स्कूल में मित्रवत जाएं। अध्यापकों से परिचय करें। उनकी अनुमति से किसी न किसी कक्षा में जा कर जो विषय आता हो, पढ़ायें। स्कूल में शैक्षणिक प्रतियोगिताओं का आयोजन कराएं। चयनित को सम्मानित करें। स्कूल में वार्षिक उत्सव का आयोजनों कराएं और उस अवसर पर गांव के जो बंधु कहीं बाहर रहते तो उन्हें भी आमंत्रित किया जाए। उनके अंदर की भावना को जाग्रत कर अपने गांव के लिए कुछ करने हेतु प्रेरित किया जाये। कुछ श्रेष्ठ करने वालों को सम्मानित किया जाए।

(7) मंगल परिवार-

व्यक्ति से परिवार, परिवार से गांव, मोहल्ला, कालोनी अर्थात्‌ समूह और समूह से संकुल। संकुल से क्रमशः देश बदलता है। इसलिए लोकभारती से जुड़े परिवारों में वह सब विशेषताएं जीवन में आयें, जिनके लिए लोकभारती कार्य करती है-

परिवार भाव, स्वच्छता एवं व्यवस्था, हरियाली (रसोई वाटिका), जल प्रबंधन, पर्यावरण के अनुरूप समस्त कार्य, स्वदेशी, आत्मनिर्भरता, मितव्ययिता, सहभागिता, सेवा, श्रम, एवं सहकार, पारिवारिक संस्कार, आदर भाव, व्यवस्थित दिनचर्या, योग-व्यायाम, समर्थ और समृद्ध परिवार आदि। प्रस्तुत विषयों में से अनेक गुण पहले से अनेक परिवारों में रहते हैं। स्मरण होने पर क्रमशः अन्य गुण भी धीरे-धीरे विकसित होते हैं। ऐसे परिवार दूसरों के लिए भी प्रेरणा बनाते हैं। लोकभारती इनके संयोजन, विस्तार और प्रसार के लिए कार्य करती है। 

इसमें से कुछ कार्यो के लिए अभियान के कार्यक्रम भी संचालित करती है। वह इस प्रकार हैं- हरित कचरा निस्तारण एवं रसोई वाटिका- लखनऊ, गाजियाबाद, शाहजहांपुर जैसे नगरों के हजारों परिवारों में हरित वानस्पतिक रसोई, घरेलू कचरा (फल, सब्जी के छिलके, पत्ते और पूजा के फूल) एक नियोजित डिब्बे में डालते हैं, उनके गलन के लिए एक कल्वर का प्रयोग प्रारम्भिक अवस्था में कुछ दिन करते हैं, जिससे डिब्बे में डाले गए कररे में दुर्गन्‍्ध नहीं होती और वह तरल खाद के रूप में नीचे टोटी में लगाए किसी पात्र, बोतल में एकत्र होता है। उस तरल खाद को 15-20 गुना पानी मिलाकर अपनी रसोई वाटिका की सिंचाई करते हैं। इस प्रयोग से घर पर हरियाली, घर का तापमान 2-3 डिग्री कम, नगर पालिका के कचरे में 30-40 प्रतिशत की कमी, स्वच्छता का वातावरण बनने के साथ परिवार स्वाभिमान से कह सकता है कि सड़क पर कहीं प्रदूषण की दुर्गन्‍ध है तो उसमें हमारी हिस्सेदारी नहीं है।

डिब्बा 2 से 3 वर्ष में भरता है तब अवशेष निकल कर सूखी खाद बन जाती है। इस विधि का प्रयोग मन्दिरों में भी किया जा सकता है। पारिवारिक कार्यक्रम पर्यावरण अनुरूप- उत्सव, दावतों में पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली किसी भी व्यवस्था में परिवर्तन, जैसे- दोने, पत्तल, गिलास प्लास्टिक, थर्माकोल के प्रयोग नहीं करना। कूड़ेदान और स्वच्छता की व्यवस्था
का संस्कार सुनिश्चित करना। 

सहभोज एवं सहकार - परिवार के सदस्यों द्वारा दैनिक एक समय भोजन/जलपान साथ-साथ करना। महिने दो महिने में परिवार के अलग-अलग रहने वाले सदस्यों का एक परिवार में परिवार समागम। इससे अपनत्व, रिश्तों की पहचान, समादर और छोटे-छोटे घरेलू कार्य करने का स्वभाव विकसित होगा जिसका समाज में भी प्रकटीकरण होगा, आदि।

उत्तम नगर अभियान- नगरों में पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता, हरियाली, पार्क, आस्था स्थल सुव्यवस्था, जल स्रोतों, तालाबों का रखरखाव, पारिवारिक भाव का जागरण, सामाजिक उत्तरदायित्व बोध का विकास सहित सामुदायिक कार्य प्रवृत्ति के विकास के विविध आयोजनों के माध्यम से प्रेरणा दीप स्थापित करना। जैसे- अभी देव दीपावली के अवसर पर अनेक नगरों में सामूहिक रूप से तालाबों, नदियों पर स्वच्छता एवं पर्यावरण के अनुरूप दीपदान, संकल्प एवं मानव श्रृंखला का निर्माण घरों में हरित कचरा निस्तारण डिब्बों को लगाने का अभियान, घरेलू वाटिका, पर्यावरण के अनुरूप उत्सव, श्रमदान आदि कार्यों के साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों को संयोजित का
कार्यकर्ता टोली का विकास। इस दिशा में लखनऊ के अतिरिक्त लखीमपुर जिले के मोहम्मदी नगर, शाहजहांपुर जिले के पुवायां नगर, हमीरपुर, मुरादाबाद और मेरठ नगर में प्रारम्भिक गतिविधियां प्रारम्भ हुई हैं।

बुन्देली प्राकृतिक पर्यटन अभियान - लोकभारती द्वारा बीते चार माह से बुन्देलखण्ड के सातों जिलों (उत्तर प्रदेश) में बुन्देलखण्ड के गौरव और स्वाभिमान को जागृत करने वाली प्राकृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक व धार्मिक समृद्धि को चिन्हित करने, सूचीबद्ध करने और लेखबद्ध करने के साथ ही उत्तर प्रदेश और भारत सहकर के पर्यटन मानचित्र में लाने के उद्देश्य से एक व्यापक अभियान प्रारम्भ किया है, जिसमें सभी जिलों, विषय विशेषज्ञों, सामाजिक प्रभाव वाले संगठनों एवं व्यक्तियों को संयोजित करके 60 कार्यकर्ताओं की टोली विकसित हुई है जो सम्पूर्ण बुन्देलखण्ड को इस दृष्टि से जानते समझने लगे हैं। इस टोली की प्रतिमाह क्रमश जिलों में सामान्यतः दिवसीय संगोष्ठी और चिन्हित स्थलों का भ्रमण, स्थानीय प्रशासन और मीडिया को जोड़ने का कार्य किया जाता है। अभी तक कालपी, ललितपुर, चरखारी और हमीरपुर में आयोजन हो चुके हैं। 26, नवंबर, 30 व 1 स्थलों के साथ एग्री टूरिज्म (गौ आधारित प्राकृतिक कृषि दर्शन) को भी जोड़ा जाए। इस हेतु लोकभारती से ऐसे स्थलों और गांवों की सूची बनाकर पर्यटन विभाग को उपलब्ध कराने का आग्रह किया।

दिसंबर को बांदा, दिसंबर माह मे चित्रकूट, जनवरी में झांसी आयोजन के बाद फरवरी, मार्च माह में पूरे बुन्देलखण्ड की सामूहिक यात्रा रहेगी जिसमें स्थान-स्थान पर उन सभी प्रमुखों को जोड़ने की योजना है, जिनका इस अभियान को मूर्त रूप देकर बुन्देलखण्ड की प्रगति वह समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा। इस हेतु प्रदेश के पर्यटन मंत्री, वन मंत्री, सिंचाई मंत्री, उपमुख्यमंत्री एवं प्रशासनिक अधिकारियों को इस अभियान से अवगत कराया जा चुका है। 

25 नवंबर को उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव पर्यटन श्री मुकेश मेश्राम के साथ “बुन्देली प्रकृति पर्यटन अभियान' के सम्बन्ध में लोकभारती की केंद्रीय टोली की बैठक हुई, जिसमें उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर श्री मेश्राम ने लोकभारती के बुन्देली प्रकृति पर्यटन अभियान में प्रदेश के पर्यटन विभाग की पूर्ण सहभागिता पर बल देते हुए यह भी कहा कि इस अभियान में प्राकृतिक, ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों के साथ एग्रो टूरिज्म (गोआधारित प्राकृतिक कृषि दर्शन) को भी जोड़ा जाए। इस हेतु लोकभारती से ऐसे स्थलों और गावों की सूची बनाकर पर्यटन विभाग को उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। 

तीर्थ विकास - उत्तर प्रदेश के पुरातन तीर्थ स्थलों में गोमती तटवर्ती नैमिषारण्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यहीं मनु शतरूपा तपस्थली, महर्षि वेदव्यास स्थल, पवित्र चक्र तीर्थ, 84 कोसी परिक्रमा पथ पर देश भर के स्थापित तीर्थ और महर्षि दधीचि ऋषि तीर्थ स्थापित है। इस क्षेत्र के पुनर्जागरण हेतु 2008 में तीर्थ पुरोहित, स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं धर्माचार्य समुदाय की बैठकें आयोजित कर तीर्थ भाव जागरण, स्वच्छता, हरियाली एवं संस्कार के लिए अध्ययन एवं व्यवहारिक स्वरूप विकास पर जोर दिया। इसी क्रम में 2011 में लोकभारती ने गोमती यात्रा के बाद नैमिषारण्य तीर्थ के पुनर्जीवन हेतु चौरासी कोसी 28 दिवसीय देव वृक्ष यात्रा का आयोजन किया गया, जिसके अन्तर्गत 88 हजार ऋषियों की स्मृति में सघन वृक्षारोपण सम्भव हुआ। इस क्षेत्र में प्रकृति पर्यटन, गौ आधारित प्राकृतिक कृषि पर्यटन विकसित हो इस दिशा में भी लोकभारती निरंतर कार्यरत है। प्रदेश सरकार ने भी इस दिशा में विकास परिषद का गठन कर महत्वपूर्ण पहल की है जिसमें लोकभारती उचित परामर्श के साथ सहयोग करेगी।

सरयू नदी उद्गम यात्रा - भारतीय संस्कृति में भगवान राम और अयोध्या का बहुत महत्व है। लेकिन सरयू के बिना अयोध्या अधूरी है। वर्तमान में सरयू उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले तक अपने उद्गम स्थल से सरयू कहलाती है और चम्पावत जिले में काली नदी मिलते ही शारदा कहा जाने लगा है। लखीमपुर जिले में घाघरा के मिलने पर घाघरा और अयोध्या प्रवेश से अयोध्या तक सरयू नाम रह कर पुनः घाघरा कही जाने लगती है। यह पिछले कालखंड में अयोध्या को न्यून करने की सोची समझी नीति का हिस्सा लगता है। जैसे अयोध्या से ऊपर फैजाबाद हो गया था, वैसे ही सरयू के ऊपर घाघरा और शारदा नाम राजस्व में जोड़ कर प्रभावी बना दिए गए। अतः लोकभारती ने इस वर्ष के प्रारम्भ में रुद्रप्रयाग से सरयू उद्गम तक यात्रा आयोजित की और सरयू उद्गम का जल लाकर अयोध्या धाम, पवित्र सरयू में महंत वेदांती जी महाराज द्वारा समर्पित किया और राम जन्मभूमि के न्यासी चम्पत राय को सरयू उद्गम जल कलश एवं सरयू नदी का मानचित्र भेंट किया। इस मुहिम को आगे बढ़ाने के एक कदम के रूप में बलिया-बिहार के सरयू-गंगा संगम पर सरयू जल समर्पण का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

(लेखक लोकभारती के राष्ट्रीय संगठन मंत्री हैं)