पहाड़ों में कृषि पर पड़ रही है मौसम की मार

Submitted by editorial on Sat, 09/15/2018 - 18:52
Source
इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी)

हिमालय में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर कार्यशालाहिमालय में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर कार्यशालाउत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आ रहे मौसमी बदलाव का असर इन क्षेत्रों की कृषि व्यवस्था पर साफ-साफ दिखने लगा है। यह बात माउंटेन फोरम हिमालय (Mountain Forum Himalaya) द्वारा मध्यांचल फोरम (Madhyanchal Forum) नामक संस्था के सहयोग से उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बसे ग्रामीण इलाकों में किये गए सर्वे में सामने आई है।

इस सर्वे में शामिल संस्था के लोगों का कहना है कि मौसमी बदलाव ने उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में बसे कृषि क्षेत्रों के फसल की बुआई के पैटर्न को पूरी तरह बदल दिया है। इसी के परिणामस्वरूप ऐसे इलाकों के किसान अब पारम्परिक फसलों के बजाय नगदी फसल लगाने को मजबूर हो गए हैं।

इस सर्वे में उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के नौ ब्लॉक्स से आँकड़े इकट्ठे किये गए हैं जिनमें कुल 127 किसान परिवार के लोगों को शामिल किया गया है। इस सर्वे के आधार पर तैयार किये गए प्रजेंटेशन में यह बताया गया है कि सेब की खेती अब 2000 मीटर से ज्यादा ऊँचाई वाले इलाकों की तरफ शिफ्ट कर गई है जबकि पहले यह 1200 से 2000 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में उगाया जाने वाला सबसे प्रसिद्ध फसल था। इन इलाकों के लोग अब सेब की जगह मटर, शिमला मिर्च जैसे नगदी फसलों की खेती करने लगे हैं। गेहूँ, धान, अरहर आदि फसलों की खेती ने भी इन इलाकों का दामन छोड़ दिया है। इन पारम्परिक फसलों की खेती इन इलाकों में अब ना के बराबर हो रही है।

इस सर्वे के अनुसार लोगों ने खेती के तरीकों में आये इसकी वजह मौसमी परिवर्तन को बताया। लोगों का कहना था कि पहाड़ों में वर्षा के पैटर्न में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है। संवेदी संस्था के प्रतिनिधि किशोर नौटियाल ने इस सर्वे के आधार पर तैयार किये गए प्रजेंटेशन में बताया कि इन क्षेत्रों में पिछले कुछ सालों से बहुत ही कम समय में ज्यादा बारिश हो रही है जो खेती के लिये काफी नुकसानदेह साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि वर्षा के पैटर्न में आये इस बदलाव की वजह से जलस्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं क्योंकि पानी तेजी से बह जाता है और मिट्टी उसे रोक नहीं पाती है। उनका कहना था कि ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी के पैटर्न में भी काफी बदलाव आया है। “काफी कम समय में बहुत ज्यादा बर्फबारी हो जाती है या फिर होती ही नहीं है। यही वजह है कि मिट्टी नमी की मात्रा कम हो रही है और लोग पारम्परिक फसल लगाना छोड़ रहे हैं और नगदी फसल की ओर मुड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें उगाने के लिये कम पानी की जरूरत होती है” किशोर नौटियाल ने कहा।

इस मौके पर उपस्थित उत्तराखण्ड के प्रमुख वन संरक्षक जयराज सिंह ने गाँव के दूर-दराज से आये पंचायत प्रतिनिधियों और किसानों की समस्याओं को सुना और उन्हें वन विभाग द्वारा हर सम्भव सहायता करने का आश्वासन दिया। पहाड़ों में हो रहे मौसमी बदलाव की बात को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा “इस समस्या से सभी को एकसाथ मिलकर लड़ना होगा। इसका सबसे बड़ा असर जैवविविधिता पर पड़ रहा है। कई प्राणी विलुप्त होने के कगार पर आ गए हैं।” उन्होंने बताया कि उत्तराखण्ड सरकार ने मौसम में आ रहे बदलाव के प्रभाव को कम करने के लिये एक एक्शन प्लान तैयार किया है जिसे जल्द ही लागू किया जाएगा।

इसके अतिरिक्त इस मौके पर तापमान में हो रही वृद्धि और उसका कृषि पर प्रभाव, जंगल में आग लगने की घटनाओं से होने वाले नुकसान आदि पर चर्चा की गई। कृषि में आ रहे बदलाव से पहाड़ों से होने वाले लोगों के पलायन के विषय पर भी चर्चा की गई। यह बताया गया कि पिछले दस वर्षों में उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों से पाँच लाख से अधिक लोगों ने पलायन किया है।

 

 

 

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