कैसे स्वच्छ होगी गंगा

Submitted by Hindi on Tue, 10/12/2010 - 15:32


करोड़ों भारतीयों की आस्था की प्रतीक गंगा का जल आज पीने लायक तक नहीं रह गया है।

देश में गंगा की सफाई का विषय दशकों से बहस का मुद्दा बना हुआ है। गंगा को स्वच्छ करने के इसी उद्देश्य से बीते एक अक्टूबर से सामाजिक कार्यकर्ता और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र सिंह ने नई दिल्ली में राजघाट से 21 साथियों के साथ गंगा सागर तक समाज को जगाने की खातिर 35 दिनी गंगा लोक यात्रा शुरू की है। यह यात्रा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर आखिर में गोमुख जाकर समाप्त होगी। इस बीच राजेन्द्र सिंह जगह-जगह लोगों से सीधे संवाद कर गंगा पंचायत का गठन करेंगे ताकि वह समाज में जागरूकता पैदा कर सकें। उनका यह प्रयास प्रशंसनीय है लेकिन इसे कहां तक सफलता मिलेगी, इसमें संदेह है।

राजेंद्र सिंह इसकी खातिर बीते महीनों में आईआईटी कानपुर सहित उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में कार्यशालाएं-सभाएं सम्बोधित कर चुके हैं। दरअसल वह चाहे गंगा को निर्मल और अविरल बनाने की योजना हो, जिसका जिम्मा आईआईटी को सौंपा गया है या फिर राजेन्द्र सिंह की गंगा लोक यात्रा का सवाल हो, यह निश्चित रूप से जन सहभागिता पर ही निर्भर है। जिसका अब तक सर्वथा अभाव रहा है।

गौरतलब यह है कि 2510 किलोमीटर लंबे गंगा के तटों पर तकरीब 29 बड़े, 23 मंझोले और 48 महानगर, नगर और कस्बे पड़ते हैं। वहां स्थापित कारखानों का विषैला रसायनयुक्त कचरा और नगरों का सीवेज गंगा में गिरता है। इसके अलावा गंगा के निकास से उसके किनारे बसे तीर्थ, आश्रम व होटलों का मल-मूत्र, कचरा भी गंगा में जाता है। दुख इस बात का है कि संत-महात्मा-मठाधीश इस सवाल पर मौन रहते हैं। जिस तरह उत्तराखंड में गंगा पर बन रहे बांधों के खिलाफ वह खुलकर सामने आये थे और उनका आक्रोश इस बाबत देखने लायक था लेकिन गंगा की सफाई के लिए उनका आक्रोश ठंडा क्यों पड़ जाता है समझ नहीं आता।

यदि पर्यावरण मंत्रालय के हालिया अध्ययनों पर दृष्टि डालें तो खुलासा होता है कि कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और पटना सहित कई जगहों पर पानी नहाने लायक भी नहीं रहा है। वैसे बीते 25 सालों में गंगा एक्शन प्लान में घपले-घोटाले के बहुतेरे मामलों पर उंगलियां उठती रही हैं, इसे नकारा भी नहीं जा सकता। गंगा आज भी मैली है, यह उसका सबूत है।

अब भले केन्द्र सरकार यह कहें कि इससे निपटने हेतु उसने कमर कस ली है और वह आने वाले 5 सालों में सीवेज शोधन संयंत्र लगाने और उसके रख-रखाव का पूरा खर्च वहन करेगी। लेकिन उसके इतना भर कहने मात्र से तो भरोसा नहीं होता कि आगामी वर्षों में गंगा साफ हो जायेगी। आखिर मशीनरी तो वही है, उससे बदलाव की उम्मीद बेमानी है। उसे तो केवल पैसा कमाने से काम है।

केंद्र सरकार ने फरवरी माह में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ ही इसे प्रदूषण मुक्त करने की घोषणा की थी। इसके तहत राज्यों में सीवेज सिस्टम तथा ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना की योजनाएं तैयार की गईं। बिहार में पटना, हाजीपुर, बेगूसराय और बक्सर में भी प्रदूषण मुक्ति का खाका खींचा गया। विश्व बैंक की टीम ने दो बार योजना का प्रारूप तैयार किया पर काम शुरू नहीं हो सका। इसमें गंगा किनारे बसे शहरों के नालों के पानी को शुद्ध कर नदी में बहाने की योजना है। लेकिन इस बाबत बनी करोड़ों की योजनाएं फाइलों में धूल चाट रही हैं। इसमें देरी की वजह योजना की राशि का 70 फीसदी केंद्र और 30 फीसदी राज्य के कोटे से खर्च होना है। परियोजना से जुड़ी विभिन्न एजेंसियों में समन्वय न होने से इसमें देरी हो रही है।

यह हाल अकेले बिहार का नहीं है। अन्य राज्यों की भी स्थिति कोई अच्छी नहीं है। यदि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों की बात करें तो यूपी सरकार अभी तक गंगा किनारे से टेनरियां हटाने में नाकाम रही है। यदि सरकारें इसी तरह हकीकत से मुंह फेरती रहीं तो शायद ही कभी गंगा स्वच्छ हो पाये। इन हालात में एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब गंगा का सरस्वती की तरह केवल नाम ही रह जाये। पर्यावरणविदों और भूजल विज्ञानियों की चिंता का यही सबसे बड़ा कारण है। यही वजह है कि राजेन्द्र सिंह ने गंगा सफाई का बीड़ा उठाया है। उनका मानना है कि राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण को ठीक दिशा प्रदान करने के लिए एक सामुदायिक विकेन्द्रित लोकतांत्रिक निर्णय करने वाली व्यवस्था की जरूरत है जो गंगा पंचायत के माध्यम से ही पूरी हो सकती है।

इसमें उन्हें कहां तक सफलता मिलती है यह तो पता नहीं लेकिन उनके इस प्रयास से सरकार सहमत नहीं दिखती। फिर सरकार के बूते गंगा सफाई का लक्ष्य कैसे पूरा होगा, सरकार बेतहाशा बढ़ते नगरीकरण को कैसे रोकेगी? लगातार बढ़ती सीवर की धाराओं से जो गंगा में जाकर गिरती हैं, पर सरकार कैसे अंकुश लगायेगी और गंगा सफाई अभियान में जनता की कितनी भागीदारी होगी आदि कुछ एैसे अनसुलझे सवाल हैं जिनका सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। ऐसे में गंगा शुद्धि के लक्ष्य प्राप्ति का सपना अधूरा ही रहने की आशंका है।