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संडे नई दुनिया, 04-10 दिसम्बर 2011
गोमुख से उत्तरकाशी तक 125 किलोमीटर क्षेत्र को बांधों से मुक्त रखने की मांग को लेकर पर्यावरणविद् जी.डी. अग्रवाल भी 16 दिनों तक अनशन कर चुके हैं जबकि हर की पौड़ी के सुभाष घाट पर ही 2009 में 38 दिनों तक अनशन हो चुका है। निगमानंद की मौत के बाद राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की भी घोषणा की और इन दिनों सीबीआई निगमानंद की मौत की जांच कर रही है लेकिन अभी तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न सीबीआई किसी नतीजे पर ही पहुँची है।
राज्य सरकार द्वारा प्रदेश की नदियों को खनन के लिए खोलने के साथ गंगा में खनन का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है। मातृ सदन के संचालक स्वामी शिवानंद ने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर हरिद्वार में कहीं भी गंगा में खनन किया गया तो वे आमरण अनशन करेंगे। इस चेतावनी के बाद सरकार ने हरिद्वार में कुंभ मेला क्षेत्र में बालू और गिट्टी खनन पर रोक लगा दी। लेकिन सरकार ने इस आशय का कोई लिखित आदेश नहीं दिया है कि आगे भी हरिद्वार में गंगा में कोई खनन नहीं किया जाएगा। मतलब साफ है कि जब-जब गंगा प्रेमी गंगा में हो रहे खनन को लेकर आवाज उठाएंगे तब-तब आंदोलन करने वालों की ताकत के हिसाब से कुछ दिनों के लिए खनन बंद कर दिया जाएगा। सवाल यह है कि जिस गंगा को राज्य व केंद्र सरकारें दुनिया भर में देवतुल्य बताकर वाहवाही लूटती हैं उसी गंगा की छाती को चीरने की मंजूरी क्यों देती हैं?गंगा में हो रहे खनन का विरोध नया नहीं है। दो दशक पहले जब हरिद्वार सहित गंगा के किनारे बसे अनेक नगरों में निर्माण का सिलसिला तेज हुआ और खनन माफिया और बिल्डर लॉबी ने मिलकर काम करना शुरू किया तभी से गंगा की चिंता करने वाले भी सामने आ गए थे। हरिद्वार में गंगा को बचाने के लिए कई आंदोलन हुए हैं। गंगा में हो रहे खनन को बंद करने की मांग को लेकर 13 जून, 2011 को 68 दिनों के अनशन और महीने भर से अधिक समय तक कोमा में रहने के बाद हुई संत निगमानंद की मौत को कौन भूल सकता है। निगमानंद की मांग थी कि कुंभ क्षेत्र को खनन और प्रदूषण से मुक्त किया जाए। गंगा में बने प्राकृतिक द्वीप, जो कि अवैध खनन के कारण नष्ट हो रहे हैं की सुरक्षा के उपाय किए जाएं। गंगा के किनारे लगे क्रशरों को हटाने की मांग भी निगमानंद प्रमुखता से कर रहे थे। अनशन के बाद भले ही निगमानंद के आंदोलन की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी हो लेकिन सरकार ने उनके आंदोलन को अनदेखा ही किया। यहां तक कि एक संत की शहादत और अनेक आंदोलनों के बाद भी सरकार गंगा को खनन से मुक्त करने को राजी नहीं है लेकिन गंगा को खनन मुक्त करने की लड़ाई लड़ रहा मातृ सदन भी इससे पीछे हटने को राजी नहीं है।

यहां तक कि निगमानंद की मौत के बाद स्पर्श गंगा से लेकर क्लीन गंगा जैसे सरकारी अभियानों और गंगा को ओढ़ना-बिछौना मानने वाले नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की असलियत भी खुलकर सामने आई। क्या कोई कह सकता है कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने, कुंभ क्षेत्र में गंगा के किनारे तेजी से हो रहे अतिक्रमण को नियंत्रित करने, खनन से नष्ट हो रही गंगा की प्राकृतिक सुंदरता बचाने और कुंभ क्षेत्र में लगे स्टोन क्रशरों को हटाने के साथ ही गंगा में सीधे छोड़े जा रहे सीवरों को बंद करने की मांग करने वाले संत को सरकार ने यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया? निगमानंद चूंकि सीधे गंगा से करोड़ों की चांदी काट रहे खनन माफिया से लोहा ले रहे थे इसलिए गंगा के नाम पर दुनिया भर में यश कमाने वाले कथित पर्यावरणविद् भी निगमानंद के अनशन पर मौन ही रहे। गंगा में अवैध खनन के खिलाफ हरिद्वार के मातृ सदन में इस संत का अनशन 19 फरवरी को शुरू हुआ लेकिन 68 दिनों तक तो 'स्पर्श गंगा' अभियान चलाने वाली सरकार को इस गंगा पुत्र की याद ही नहीं आई लेकिन जैसे ही लगा कि अनशन स्थल पर निगमानंद की मौत हो सकती है सरकार ने 27 अप्रैल को निगमानंद को अनशन स्थल से गिरफ्तार कर जिला चिकित्सालय हरिद्वार में भर्ती करा दिया जहां वे 2 मई, 2011 तक कोमा में जाने से पहले तक भर्ती रहे। इसके बाद दून अस्पताल और जौलीग्रांट के हिमालयन अस्पताल में भी कोमा में रहने के बाद उनकी मौत हो गई थी।

कुंभ क्षेत्र को खनन मुक्त करने और अतिक्रमण के खिलाफ लड़ाई के चलते मातृ सदन और स्वामी निगमानंद पहले प्रशासन के लिए सिरदर्द बने और फिर माफियाओं की आंखों में खटकने लगे। लेकिन निगमानंद की मौत के बाद राज्य में जमकर सियासत हुई। गंगा की लड़ाई लड़ रहे निगमानंद के पीछे न तो गंगा के नाम पर सियासत करने वाले नेता खड़े दिखाई दिए और न ही गंगा के लिए चलाए गए आंदोलनों के अगुवा मठाधीश। गंगा को बचाने के नाम पर हाल के सालों में गंगा रक्षा मंच, गंगा सेवा मिशन, गंगा बचाओ आंदोलन और समग्र गंगा जैसे गैर सरकारी अभियानों के साथ ही केंद्र सरकार के गंगा एक्शन प्लान और गंगा क्लीन प्लान चलाए गए हैं। इनके अलावा केंद्र सरकार ने गंगा की बेहतरी के लिए गंगा रीवर बेसिन अथॉरिटी का गठन भी किया है। इतना ही नहीं, दो वर्ष पूर्व केंद्र सरकार गंगा को राष्ट्रीय नदी भी घोषित कर चुकी है। गंगा की स्वच्छता के लिए 1990 में शुरू किए गए गंगा एक्शन प्लान के तहत दो दशकों में लगभग 960 करोड़ रुपए खर्च किए गए जबकि 2010 से शुरू किए गए गंगा क्लीन प्लान के तहत अगले दस साल में 2000 करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं।

गंगा की बेहतरी के नाम पर आंदोलनों की राजनीति भी सालों से चलती रही है। 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने से पहले बाबा रामदेव के नेतृत्व में जहां गंगा रक्षा मंच का गठन हुआ था। वहीं स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नेतृत्व में गंगा बचा आंदोलन चलाया गया। इस दौरान विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जागरण मंच जैसे संगठन भी गंगा के नाम से उद्वेलित नजर आए थे लेकिन कुछ भी इसलिए नहीं हो पाया कि गंगा कि किनारे बसे शहरों में सबसे अधिक मल-जल इन्हीं के आश्रमों से निकलकर सीधे गंगा में बहता है। उमा भारती भी गंगा को सियासत का जरिया बना चुकी हैं। समग्र गंगा के नाम से आठ दिनों तक हरिद्वार के दिव्य प्रेम सेवा मिशन में अनशन कर चुकीं उमा भारती ने सरकार से गंगा नदी पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं को बंद करने और जलविद्युत परियोजनाओं से स्थानीय जनमानस पर हुए प्रभावों का अध्ययन करने की मांग की है। वर्तमान में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर 540 छोटी-बड़ी परियोजनाएं प्रस्तावित, निर्माणाधीन और कार्यरत हैं। जून 2009 में गोमुख से उत्तरकाशी तक 125 किलोमीटर क्षेत्र को बांधों से मुक्त रखने की मांग को लेकर पर्यावरणविद् जी.डी. अग्रवाल भी 16 दिनों तक अनशन कर चुके हैं जबकि हर की पौड़ी के सुभाष घाट पर ही 2009 में 38 दिनों तक अनशन हो चुका है। निगमानंद की मौत के बाद राज्य सरकार ने सीबीआई जांच की भी घोषणा की और इन दिनों सीबीआई निगमानंद की मौत की जांच कर रही है लेकिन अभी तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न सीबीआई किसी नतीजे पर ही पहुँची है।

समर्पित भाव से सफाई
गंगा के सवाल को लेकर मौन होकर काम करने वालों की भी कमी नहीं है। परमार्थ निकेतन ऐसे ही प्रयास गंगा के लिए हमेशा ही करता रहा है। इस बार 11.11.11 के मौके पर परमार्थ निकेतन से जुड़े 11 देशों के 1,111 साधकों ने 11 नवंबर के दिन ठीक 11 बजे दोपहर से गंगा में सफाई का अभियान चलाया। इस अभियान में शामिल विदेशी न सिर्फ उत्साहित थे बल्कि समर्पित भाव से गंगा की सफाई में जुटे थे।
गंगा में खनन बर्दाश्त नहीं : स्वामी शिवानंद

आपने कुंभ क्षेत्र के आसपास गंगा में खनन का विरोध किया था जिसके बाद जिलाधिकारी ने फिलहाल इस पर रोक लगा दी है। आगे की रणनीति क्या है?
पहली बात तो यह है कि गंगा में खनन से इतना नुकसान पहले ही हो चुका है जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं है। खनन के कारण गंगा के अनेक द्वीप पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। 30-४0 क्रशर सालों से गंगा को खोद रहे हैं जिस पर अब पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए।
क्या इस बारे में आपको कोई लिखित आश्वासन भी मिला है?
हम जिलाधिकारी से लिखित आश्वासन की मांग कर रहे हैं कि आगे से गंगा में खनन पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा।
गंगा में खनन से और क्या-क्या नुकसान हुए हैं?
गंगा में खनन से द्वीप नष्ट होने के साथ जलीय पर्यावरण को भी भयंकर नुकसान हुआ है। जलीय जीव इसका खामियाजा भुगत रहे हैं लेकिन सरकार इसका अंदाजा भी अभी नहीं लगा पाई है। हम खनन से होने वाले इस प्रकार के नुकसान के आकलन की भी मांग कर रहे हैं।
Email:- mahesh.pandey@naidunia.com