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नई दुनिया, 12 जून 2011
एक ओर केंद्र सरकार गंगा पर बांध बनाने के लिए योजना दर योजना मंजूरी दे रही है, वहीं गंगा की अविरलता के लिए आंदोलन भी हो रहे हैं। जल विद्युत परियोजनाओं के पीड़ित दर-दर भटकने को मजबूर हैं। ज्यादातर परियोजनाओं की सुरंगों से रिसाव होने के साथी ही, इनसे लगे क्षेत्रों में भू-धसाव का भयंकर संकट है।
उमा भारती के समग्र गंगा आंदोलन का पहला चरण हरिद्वार में पूरा हो गया है। अब वह दिल्ली में प्रधानमंत्री से मिलकर अपने मांग पत्र पर बातचीत करेंगी। मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री पखवाड़े भर से हरिद्वार के दिव्य प्रेम सेवा मिशन में अपनी छह सूत्रीय मांग पत्र को लेकर आंदोलन कर रही थीं। वह श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के कारण अपने मूल स्थान से हटाए जा रहे 52 शक्तिपीठों में से एक धारी देवी मंदिर को यथास्थान बरकरार रखने, हिमालय में बन रही जल विद्युत परियोजनाओं की पुनर्समीक्षा करने, गंगा की अविरलता को बनाए रखने, गंगा की स्वच्छता के लिए कानून बनाने, गंगा नदी प्राधिकरण को सक्रिय करने व जल विद्युत परियोजनाओं से उत्तराखंड के लोगों को हो रहे लाभ व हानी की समीक्षा करने की मांग कर रही हैं। पहले उपवास अनशन और फिर निर्जला अनशन तक पहुँचे उमा के आंदोलन को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने जूस पिलाकर एक अर्द्धविराम लगाया है। उमा गंगा के अविरल प्रवाह के लिए आगे की रणनीति बना रही हैं।वैसे केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उन्हें बताया है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का एक तकनीकी दल श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की साइट का दौरा करेगा और धारी देवी मंदिर के पुनर्स्थापन के संबंध में जांच-पड़ताल करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि अलकनंदा और भागीरथी बेसिनों में जल विद्युत परियोजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन अध्ययन पूरा हो चुका है और जल्दी ही उसे सार्वजनिक किया जाएगा। बहरहाल, उमा भारती से पहले भी गंगा की बेहतरी के लिए कई आंदोलन हो चुके हैं। जून, 2008 में गंगा की अविरल धारा के लिए उत्तरकाशी में प्रो. जी.डी. अग्रवाल ने 16 दिनों तक अविरल प्रवाह की मांग को लेकर अनशन किया था। इसी दौरान गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा की निर्मलता और अविरलता को लेकर आंदोलन हुए। इसके लिए संतों ने गंगा रक्षा मंच, गंगा सेवा समिति जैसे अनेक संगठन बनाए। सितंबर-अक्टूबर 2008 में जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद के दो चेलों ने हर की पौड़ी स्थित सुभाष घाट पर 39 दिनों तक अनशन किया था। इन आंदोलनों के मद्देनजर केंद्र सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ ही, नवंबर 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन किया।
विडंबना यह है कि हरिद्वार के जिस दिव्य प्रेम सेवा मिशन आश्रम में उमा भारती पखवाड़े भर से आंदोलन चला रही थीं उसके दस किलोमीटर के दायरे में छह बड़े और एक दर्जन से अधिक छोटे नाले सीधे गंगा में डाले जा रहे हैं। हरिद्वार में प्रतिदिन 20 टन जीवांश, 37.5 टन ठोस अपशिष्ट सहित और 24,000 ट्रिलियन लीटर मलीय अपशिष्ट सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। हर की पौड़ी के पचास मीटर के दायरे में सुभाष घाट के निकट गिरने वाला एस-1 नाला प्रतिदिन 2.4 मिलियन लीटर कचरा लाता है। लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून की रिपोर्ट के मुताबिक हरिद्वार के सिर्फ दो बड़े नाले ललता राव पुल और ज्वालापुर मिलकर 140 लाख लीटर से भी अधिक मलजल सीधे गंगा में छोड़ते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा संशोधित अपशिष्ट जल में तय मानकों से छह गुना अधिक प्रदूषण रहता है।

गंगा नदी और इसकी सहायक नदियों में इस समय 540 छोटी-बड़ी परियोजनाएं प्रस्तावित, निर्माणाधीन व कार्यरत हैं। इन परियोजनाओं के जरिए लाभ कमाने वालों का कुचक्र हिमालय के सीने को छेद डालने का है जबकि गंगा को लेकर आंदोलन चलाने वालों के पास इसे बचाने की कोई समग्र नीति नहीं है। जहां जीडी अग्रवाल गौमुख से लेकर उत्तरकाशी तक 125 किलोमीटर क्षेत्र को बांधों से मुक्त रखने की मांग को लेकर जून 2009 में उत्तरकाशी में 16 दिनों तक आमरण अनशन कर चुके हैं। वर्तमान में गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक 12 छोटी-बड़ी परियोजनाओं में काम चल रहा है जिनमें से पाला मनेरी और लोहारी नाग पाला फिलहाल स्थगित हैं जबकि टिहरी और मनेरी भाली परियोजनाओं से विद्युत उत्पादन हो रहा है। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना इन दिनों विवादों में है जबकि कई योजनाएं मंजूरी के लिए केंद्र के पास लंबित हैं। एक ओर केंद्र सरकार गंगा पर बांध बनाने के लिए योजना दर योजना मंजूरी दे रही है, वहीं गंगा की अविरलता के लिए आंदोलन भी हो रहे हैं। जल विद्युत परियोजनाओं के पीड़ित दर-दर भटकने को मजबूर हैं। ज्यादातर परियोजनाओं की सुरंगों से रिसाव होने के साथी ही, इनसे लगे क्षेत्रों में भू-धसाव का भयंकर संकट है। टिहरी बांध के जलाशय से लगे गांवों में तो भूस्खलन के चलते घर भी रहने लायक नहीं रहे हैं। यहां सुरंगों में होने वाले विस्फोटों का असर घरों में बड़ी-बड़ी दरारों के रूप में दिखता है। स्थानीय पारिस्थितिकी प्रभावित हो रही है और लोगों के चरागाह, घाट, जंगल सभी कुछ छिन गए हैं। गंगा के भीतर की पारिस्थितिकी की स्थिति यह है कि गंगा में पाई जाने वाली दुर्लभ डॉल्फिन अब विलुप्ति के कगार पर है।

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