दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केप टाउन बन्दरगाह, बाग-बगीचों व पर्वत शृंखलाओं के लिये मशहूर है।
यह एक खूबसूरत टूरिस्ट स्पॉट भी है, जो दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर खींचता है।
यहाँ पहले जनजातियाँ रहा करती थीं। इस क्षेत्र में यूरोपियनों की घुसपैठ 1652 में हुई। चूँकि यह जलमार्ग से भी जुड़ता था, इसलिये इसे व्यापारिक केन्द्र के रूप में भी विकसित किया जाने लगा और धीरे-धीरे यह शहर दुनिया के सबसे सुन्दर शहरों में शुमार हो गया।
पर्यटकों का यह पसन्दीदा स्पॉट इन दिनों भयावह जल संकट से जूझ रहा है और हालात ये हैं कि लोग वहाँ से पलायन तक करने लगे हैं। जो वहाँ पर हैं, वे लम्बी कतारों में लगकर पीने लायक पानी ले रहे हैं।
पानी की घोर किल्लत को देखते हुए स्थानीय प्रशासन वहाँ पानी की सप्लाई पूरी तरह बन्द करना चाहता है, जिससे संकट और विकराल रूप ले लेगा।
फिलहाल वहाँ रहने वाले लोग नहाते वक्त शरीर पर पड़ने वाले पानी को बचा लेते हैं और उसका शौचालय में इस्तेमाल कर रहे हैं। हाथ धोने के लिये पानी की जगह हैंड सेनिटाइजर प्रयोग में लाया जा रहा है।
प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे महज 90 सेकेंड में ही नहाने का कार्यक्रम खत्म करें और जितना हो सके पानी बचाएँ।
बताया जाता है कि पानी की किल्लत के मद्देनजर सरकार ने अप्रैल में पानी की सप्लाई बन्द कर देने की घोषणा की थी। लेकिन, लोगों में पानी के इस्तेमाल को लेकर जागरुकता बढ़ने के बाद अब जुलाई में पानी की सप्लाई रोकने का निर्णय लिया गया है।
पानी की सप्लाई रोकने के दिन को तकनीकी भाषा में डे जीरो कहा जाता है। ‘डे जीरो’ के दौरान नलों में पानी की सप्लाई पूरी तरह बन्द कर दी जाती है।
इमरजेंसी सेवाएँ देने वाले डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के फ्रेश वाटर मैनेजर क्रिस्टिन कोल्विन कहते हैं कि वह स्थिति भयावह होगी, जब लोग नल की टोटी खोलेंगे और उससे एक बूँद पानी नहीं गिरेगा।
पता चला है कि पाइप से पानी की सप्लाई करने की जगह केप टाउन प्रशासन शहर में पानी संग्रह के लिये 200 जल संग्रह केन्द्र बनाएगा और सुनिश्चित करेगा कि लोगों को कम-से-कम 25 लीटर पानी मिले।
मीडिया रपटों के अनुसार, फिलहाल केप टाउन का स्थानीय प्रशासन प्रति व्यक्ति रोज 50 लीटर पानी मुहैया करा रहा है। पानी के साथ ही कई तरह की हिदायतें भी दी जा रही हैं, ताकि पानी का बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाये।
प्रशासन की तरफ से जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि 50 लीटर पानी में से 10 लीटर कपड़े की सफाई के लिये 10 लीटर पानी नहाने के लिये, 9 लीटर बाथरूम में डालने के लिये, 2 लीटर मुँह व हाथ धोने के लिये, 1 लीटर घरेलू जानवरों के लिये, 5 लीटर घर की सफाई, 1 लीटर खाना बनाने के लिये, 3 लीटर पीने के लिये और बाकी पानी भोजन पकाने से पहले धोने के लिये इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
इस जल संकट ने कुछ लोगों को बचा-बचाकर पानी इस्तेमाल करने का हुनर सिखा दिया है।
सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, केप टाउन में छुट्टियाँ मना रहे यूके निवासी ए. कोय आलू उबालने के बाद बचे हुए पानी को सम्भालकर रखते हैं ताकि दूसरी जगह उसका इस्तेमाल किया जा सके। कई स्थानीय निवासी पानी का कई बार इस्तेमाल कर रहे हैं।
स्थानीय निवासी एनी वर्विस्त ने सीएनएन को बताया कि वह नल का पानी हाथ धोने में प्रयोग करती हैं और उसी पानी को पौधे में डालती हैं। नल का पानी बिल्कुल भी पीने लायक नहीं है। वर्विस्त बताती हैं, ‘हालांकि वे (प्रशासन) कहते हैं कि पानी ठीक है, लेकिन बच्चे पानी पीने के बाद पेट में दर्द की शिकायत करते हैं।’
वर्विस्त समेत अन्य लोग न्यूलैंड्स स्प्रिंग से पानी लाते हैं। स्थानीय निवासी बताते हैं कि नल के पानी का स्वाद अजीब है, जिस कारण वह स्प्रिंग के पानी को तरजीह देते हैं।
चूँकि स्प्रिंग पानी का नया स्रोत बन गया है, इसलिये यहाँ भी लोगों की खूब भीड़ हो रही है। भीड़ को देखते हुए प्रशासन के पदाधिकारियों की वहाँ तैनाती की गई है, जो कतारों को व्यवस्थित कर रखते हैं ताकि झड़प की नौबत न आये।
केप टाउन प्रशासन अगले महीने तक स्प्रिंग की धार को स्वीमिंग पुल की तरफ मोड़ने की योजना बना रहा है, ताकि लोगों को तुरन्त पानी मिल जाये।
हालांकि, मीडिया रिपोर्ट यह भी बता रही है कि इस संकट की घड़ी में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पानी को बचाने के लिये कोई जतन नहीं कर रहे हैं।
केपटाउन के मेयर पैट्रिक डी लिली ने सीएनएन को बताया कि जलसंकट से जूझने के बावजूद यहाँ के निवासियों ने पानी का बेहताशा इस्तेमाल करना नहीं छोड़ा है। अभी भी यहाँ 86 मिलियन लीटर पानी का इस्तेमाल हो रहा है, जो लक्ष्य से अधिक है।
पैट्रिक डी लिली ने आगे कहा, ‘यह अविश्वसनीय है कि ज्यादातर लोग अब भी पानी को लेकर संजीदा नहीं हैं और वे हमें डे जीरो की ओर धकेल रहे हैं।
जल संकट की सम्भावित वजहें
विश्व के आकर्षक शहरों में एक केप टाउन इन दिनों जलसंकट से जूझ रहा है, तो सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि यह नौबत आ गई।
सीएनएन के अनुसार, सदी के सबसे प्रभावशाली सूखे ने केप टाउन को अपनी जद में ले लिया है, जिससे जलसंकट बढ़ गया है। वहीं, यहाँ की जनसंख्या 40 लाख पर पहुँच गई है और दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। इन दो वजहों के अलावा तीसरी बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है।
नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट में बताया गया है कि केप टाउन की जमीन पहाड़ी है जो गर्म समुद्री पानी से होकर आने वाली हवाओं को रोकती है। इससे बारिश होती है। बारिश ही नदियों को पानीदार बनाता है और भूजल स्तर को बरकरार रखता है।
यहाँ स्वीमिंग पूल और आलीशान होटल गुलजार हैं, जहाँ पानी का खूब इस्तेमाल होता है।
नेशनल जियोग्राफिक की उक्त रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशकों में केप टाउन में पानी बचाने के लिये कई सराहनीय कदम उठाए गए और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी सराहना भी की गई।
लेकिन, कुछ गलतियाँ भी हुईं। केप टाउन के प्रशासन को लगा कि यहाँ बारिश उसी तरह होगी, जिस तरह पूर्व में हुआ करती थी। प्रशासन ने पुरानी समस्याओं को सुलझा लिया, लेकिन आने वाली दिक्कतों पर ध्यान नहीं दिया, जिसका परिणाम आज देखने को मिल रहा है।
बारिश नहीं होने के कारण रिजर्वायर का जलस्तर तेजी से गिरने लगा, जिससे आज केप टाउन जलसंकट के चक्रव्यूह में बुरी तरह घिर चुका है।
द गार्जियन में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक दशक पहले केप टाउन को आगाह किया गया था कि बढ़ती आबादी व जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम गर्म होगा और सर्दियों में बारिश औसत से कम हो जाएगी। इससे जलस्रोतों में पानी की कमी हो जाएगी।
इस गम्भीर चेतावनी की पूरी तरह अनदेखी कर दी गई।
बताया जाता है कि केप टाउन में पानी की सप्लाई पास के रिजर्वायर से होती है। पिछले कुछ सालों में देखा जा रहा है कि रिजर्वायर का जलस्तर काफी नीचे चला गया है, लेकिन एहतियाती कदम नहीं उठाया गया।
पलायन शुरू, आर्थिक संकट बढ़ने का अन्देशा
केप टाउन में जलसंकट से लोगों में खौफ भी बढ़ गया है। लोगों को लग रहा है कि डे जीरो उन्हें बूँद-बूँद के लिये तरसने को विवश कर देगा, इसलिये मुश्किल भरे दिन आये, इससे पहले लोग केप टाउन छोड़ देना चाहते हैं। जिनके पास पैसा और संसाधन है, वे केप टाउन छोड़ भी रहे हैं।
सीएनएन ने एक स्थानीय व्यक्ति के हवाले से लिखा है कि जो लोग समर्थ हैं, वे केप टाउन से बाहर जा रहे हैं। असल में ऐसा करने के पीछे एक विचार यह भी है कि इससे शहर पर बोझ कुछ कम हो जाएगा। हाँ, जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे यहीं रहने को विवश हैं।
बताया जा रहा है कि केप टाउन में अब बोतलबन्द पानी की भी किल्लत होने लगी है। जिन स्टोरों में बोतलबन्द पानी मिलता है, उनका स्टॉक तुरन्त खत्म हो जा रहा है।
लोग स्टोर खुलने से पहले ही कतारों में लग जाते हैं ताकि बोतलबन्द पानी खरीदकर पी सकें।
स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसी स्थिति केप टाउन में पहले कभी नहीं देखी गई और यह आने वाली भयावहता का मजबूत संकेत है।
मीडिया रपटों में प्रशासन के हवाले से कहा जा रहा है कि डे जीरो के कारण आर्थिक बोझ बढ़ सकता है। द गार्जियन ने डिप्टी मेयर के हवाले से लिखा है कि शहर का बजट 40 बिलियन रियाद है। ऐसे में डे जीरो लागू करने से आर्थिक मोर्चे पर दिक्कत आ सकती है।
डिप्टी मेयर ने द गार्जियन को बताया है कि उनके लिये बड़ी चिन्ता यह है कि कहीं यहाँ की अर्थव्यवस्था औंधे मुँह न गिर जाये।
डिप्टी मेयर के अनुसार अर्थव्यवस्था पर असर का संकेत दिख रहा है, लेकिन यह किस पैमाने पर असर डालेगा, वह इस पर निर्भर है कि संकट कब तक जारी रहता है।
दूसरे शहरों में भी हो सकती है पानी की किल्लत
केपटाउन में गहराया जल संकट केवल वहीं तक महदूद रहेगा, ऐसा मानना बेवकूफी है। केप टाउन के अलावा भी कई ऐसे शहर हैं, जहाँ आज नहीं तो कल पानी की किल्लत बढ़ेगी।
कई शहरों में इसके संकेत दिखने भी लगे हैं। करीब दो करोड़ की आबादी वाले मैक्सिको शहर में दिन में एक नीयत वक्त पर ही पानी आता है। वहीं जिनके घरों में नल लगा है, उनके नलों में हफ्ते में कुछ घंटों लिये ही पानी की सप्लाई होती है।
मेलबॉर्न प्रशासन ने पिछले साल कहा था कि एक दशक के बाद शहर में पानी की कमी हो जाएगी।
जकार्ता भी जलसंकट से जूझ रहा है।
नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट बताती है कि केप टाउन की तरह ही ब्राजील के साओ पालो में भी रिजर्वायर का जलस्तर नीचे जा रहा है।
वर्ष 2015 में साओ पालो के रिजर्वायर का जलस्तर इतना नीचे चला गया था कि पाइप से मिट्टी निकलने लगी थी।
पानी की किल्लत के मद्देनजर पानी का ट्रक भेजा गया था जिसकी लूट हो गई थी। वहाँ स्थिति भयावहता की ओर जा रही थी, लेकिन गनीमत थी कि अचानक बारिश हो गई।
इन शहरों के अलावा लॉस एंजेलिस (अमेरिका), कराची (पाकिस्तान), नैरोबी (केन्या), ब्रिसबेन (ऑस्ट्रेलिया) समेत करीब दो दर्जन शहरों में जलसंकट का खतरा मँडरा रहा है।
क्या है समाधान
हालांकि मौजूदा संकट का समाधान तो बचा-बचाकर पानी के इस्तेमाल में ही है, लेकिन भविष्य में इस तरह की समस्याओं से दो-चार न होना पड़े, इसके लिये कुछ कदम जरूर उठाए जाने चाहिए।
सबसे पहले तो पानी के बेतहाशा इस्तेमाल को रोकने की जरूरत है, ताकि पानी की बर्बादी न हो। दीर्घावधि समाधान के लिये समुद्री जल से नमक हटाने वाले प्लांट लगाने होंगे।
हालांकि, प्लांट लगाने में अच्छी खासी पूँजी लगेगी और सम्भवतः इसी वजह से केप टाउन में अब तक ऐसा प्लांट स्थापित नहीं हो सका।
दूसरी बात यह है कि प्रशासन के लोग यह भी मानते हैं कि बारिश अगर सामान्य होने लगी, तो यह प्लांट की कोई उपयोगिता नहीं रहेगी और उल्टे रख-रखाव पर लाखों रुपए खर्च हो जाएँगे।
लेकिन, मौसम की अनिश्चितता को देखते हुए इस तरह की व्यवस्था जरूरी हो गई है। इसके अलावा भूजल स्तर को बरकरार रखने के लिये भी पहलकदमी करनी होगी।
केप टाउन का जलसंकट भारत के लिये भी सबक है, क्योंकि यहाँ भी कई क्षेत्रों में हाल के वर्षों में सूखे का कहर बरपा है।
यहाँ भी पानी की बेतहाशा बर्बादी हो रही है। अगर इसी तरह पानी की बर्बादी होती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी कई केप टाउन तैयार हो जाएँगे।