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नेशनल दुनिया, 04 मई 2012
सिर्फ मनरेगा ही नहीं, जो ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में आकंठ डुबी हुई है बल्कि ऐसी कई योजनाएं भी भ्रष्टाचार के कारण समय से पहले दम तोड़ चुकी हैं। उन योजनाओं में से भारत निर्माण योजना का नाम लिया जा सकता है जिससे गरीबों का भला तो नहीं हुआ, अमीरों की दुकान अवश्य चमक गई। प्रधानमंत्री ने पिछले स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह घोषणा की कि मनरेगा में अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने के लिए और सुधार किया जाएगा।
मनरेगा योजना अपने जन्म के छह वर्ष पूरे कर सातवें वर्ष में चल रही है- कहीं खुशी और कहीं गम के साथ। पर गांवों में एक तबका ऐसा भी है जो रात में भूखे पेट ही सोता है। मनरेगा जैसे बहुआयामी योजना का गठन इन्हीं भूखे पेटों को भरने के लिए हुआ था। पर सच्चाई कुछ और ही है, इस योजना में काफी खामियां दिखती नजर आती हैं जिन पर खुद प्रधानमंत्री कई बार चिंता जता चुके हैं। मनरेगा यूपीए सरकार की महत्वपूर्ण (फ्लैगशिप) योजनाओं में से एक है जिसे आध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले से 2 फरवरी, 2006 को शुरू किया गया था। फिलहाल देश के 614 जिलों में इस योजना का विस्तार किया गया है। इस कानून का उद्देश्य एक वर्ष के दौरान हर ग्रामीण परिवार को कम से कम एक सौ दिन के रोजगार की गारंटी देना है। इस योजना से गांव के प्रधान एवं ब्लॉक स्तर के अधिकारी मालामाल हो रहे हैं।रोजगार के लिए बनाए गए जॉबकार्ड पर जहां गरीब का नाम अंकित होना चाहिए वहां प्रधान और मुखियाओं के सगे-संबंधियों के नाम दर्ज होते हैं। ये लोग कभी काम पर नहीं आते पर वेतन घर बैठे पहुंच जाता है। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी कानून गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले हर ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने पर जोर देता है। उत्तरप्रदेश के 16 गांवों के प्रधानों के खिलाफ इसी तरह के घपलेबाजी का मामला दर्ज हुआ है। जब जांच हुई तब सामने आया कि एक प्रधान ने पांच साल के अपने पोते का नाम भी दर्ज कर रखा था। उसे बकायदा दिन के हिसाब से वेतन भी मिल रहा था।
दुर्भाग्य है हमारा जो हम ऐसे प्रथा में जी रहे, जो रोटी गरीब के लिए बनाई जाती उसे अमीर लोग बीच में ही हड़प लेते हैं। खैर सरकार ने अब मनरेगा के लिए एक जांच कमेटी गठित की है जो इस तरह के घपलेबाजी पर निगरानी करेगी। उम्मीद करनी चाहिए जो रिपोर्ट इस जांच एजेंसी से दिल्ली की सियासत तक आएगी, वह सच्ची होगी। सिर्फ मनरेगा ही नहीं, जो ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में आकंठ डुबी हुई है बल्कि ऐसी कई योजनाएं भी भ्रष्टाचार के कारण समय से पहले दम तोड़ चुकी हैं। उन योजनाओं में से भारत निर्माण योजना का नाम लिया जा सकता है जिससे गरीबों का भला तो नहीं हुआ, अमीरों की दुकान अवश्य चमक गई।
