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काव्य संचय- (कविता नदी)
कोई पार नदी के गाता।
भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता।
कोई पार नदी के गाता।
होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता।
कोई पार नदी के गाता।
आज न जाने क्यों होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता, सदा इसे यह गाता जाता।
कोई पार नदी के गाता।
भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता।
कोई पार नदी के गाता।
होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता।
कोई पार नदी के गाता।
आज न जाने क्यों होता मन
सुनकर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता, सदा इसे यह गाता जाता।
कोई पार नदी के गाता।