सरकार ने कृषि मूल्य श्रृंखला इकाइयों की पर्याप्त वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए हैं, ताकि फसल के पूर्व और कटाई के बाद के नुकसान को कम किया जा सके, रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सके और किसानों एवं खेत उद्यमियों की आय का स्तर बढ़ाया जा सके।
केन्द्र सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के अपने वायदे पर जोर दिया है। इससे देश के कृषि क्षेत्र में आने वाले किसानों के संकट को सही ढंग से समझा गया है और उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उत्पादन लागत को कम करने और कृषि उपज के मूल्यों को बढ़ाने के महत्व को रेखाकिंत किया गया है। कृषि उत्पादन, उत्पादकता, कृषि लाभ और आय बढ़ाने के कई उपाय सुझाए गए हैं और अमल में लाए गए हैं। इस दिशा में प्रमुख निर्देश दिए गए हैः (क) कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना बढ़ाया (ख) राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना के माध्यम से अधिक मंडियों को जोड़ा जाना (ग) ग्रामीण कृषि बाजारों में ग्रामीण डाट को विकसित किया जाना (घ) कृषि बाजार अवसंरचना कोष का निर्माण और उपयोग (च) प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़कों के माध्यम से ग्रामीण बाजारों को जोड़ना (छ) समेकित आधार पर कृषि उत्पादों को विकसित करना (ज) जैविक खेती को बढ़ावा देना (झ) इसके अलावा 10,000 किसान उत्पादक संगठनों, कृषि संसाधनों, प्रसंस्करण सुविधाओं तथा पेशेवर प्रबन्धन को बढ़ावा देने के लिए एक और हरितक्रान्ति लाना (ट) मत्स्य-पालन और पशुपालन करने वाले किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड सुविधा प्रदान कराना (ठ) मत्स्य और जलीय कृषि तथा पशुपालन के लिए समर्पित कोष की स्थापना (ड़) वाणिज्यिक, निजी, विदेशी और सहकारी बैंकिंग चैनलों के माध्यम से अधिक ऋण मुहैया कराना। हालांकि, ये नीति निर्देश उल्लेखनीय हैं, वास्तविक चुनौती जमीनी-स्तर पर विभिन्न योजनाबद्ध हस्तक्षेपों को प्रभावी ढंग से और कुशलतापूर्वक लागू करने के लिए उचित बुनियादी ढांचा स्थापित करना है।
सरकार ने कृषि में उत्पादन जोखिम और मूल्य जोखिमों के शमन को लक्षित करके कृषि उपलब्धता में कमी, बाजार उपलब्धता, बाजार मूल्य में उतार-चढ़ाव और कृषि उपज की माँग में वृद्धि पर नवम्बर 2016 के विमुद्रीकरण के विभिन्न प्रतिकूल-स्तर के प्रभावों को दूर करने का प्रयास किया है। कृषि में अनिश्चितताओं और जोखिमों को ध्यान में रखते हुए, सरकार की नीतिगत दिशाओं में अब फसल और पशुधन बीमा योजनाओं जैसे जोखिम को समाप्त करने के उपायों में सुधार, बेहतर कृषि-रसद के आधुनिकीकरण और कृषि बाजारों के निकट, पर्याप्त भंडारण सुविधाओं के प्रावधान के साथ विपणन उपायों के लिए प्रभावी सरकारी हस्तक्षेप सुनिश्चित करने पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर दिया है। यद्यपि न्यूनतम समर्थन मूल्य 50 प्रतिशत से अधिक लागत पर कृषि नुकसान के जोखिम को कम करने की आवश्यक क्षमता है। यदि सरकार माँग पर ध्यान नहीं देती है और कृषि आधारभूत संरचना के दृष्टिकोण से कठिनाइयों को दूर करती है तो बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
कृषि में क्रान्तिकारी बदलाव की आवश्यकता क्यों
भारतीय कृषि ने निर्वाह कृषि की अवधि से लेकर अधिशेष कृषि उत्पादन को बढ़ाने तक का लम्बा सफर तय किया है। यह स्थिति पूरी तरह से कृषि आधारभूत ढाँचे के पारिस्थितिकी-तंत्र के विकास की दिशा में एक क्रान्तिकारी बदलाव का आह्वान करती है। भले ही भारत ने पाँच साल की योजनाओं के दौरान गरीबी में कमी लाने की विभिन्न रणनीतियों और किसान-उत्पादन केन्द्रित दृष्टिकोणों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य हासिल किया है, लेकिन असली चुनौती, जो अभी भी बनी हुई है, वह यह है कि किसानों के प्रयासों का लाभ कैसे उठाया जाए और ग्रामीण और असंगठित आर्थिक सेटअप में उनकी भलाई कैसे सुनिश्चित की जाए ? यह निश्चित है कि कृषि, किसी भी अन्य आर्थिक उद्यम की तरह, तभी कायम रह सकती है जब इससे किसानों को सकारात्मक आर्थिक लाभ मिले। कटाई के बाद की फसल की पर्याप्त पैदावार और विपणन बुनियादी ढाँचे के साथ विश्वसनीय, कुशल, प्रतिस्पर्धी और सुलभ बाजार में किसान उत्पादक को शुद्ध सकारात्मक लाभ देने की क्षमता है।
बेहतर कृषि बाजार के बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता
कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) द्वारा विनियमित बाजारों में कृषि उत्पादों के नेटवर्क के माध्यम से कृषि उपज का विपणन परम्परागत रूप से किया जाता है। वर्तमान में 2,284 एपीएमसी हैं जो 2,339 प्रमुख बाजारों का संचालन करते हैं। इन प्रमुख बाजारों ने अपना विस्तार करके कुल 4,276 उप-बाजार यार्डों में कदम जमाया है। देश में बड़े और विविध कृषि विपणन बुनियादी ढाँचे के विकास और उन्नयन के माध्यम से बेहतर किसान बाजार सम्पर्क स्थापित करना समय की जरूरत है। देश में कृषि विपणन के समक्ष समस्याएँ और चुनौतियाँ इस प्रकार है:
- बाजार में आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करके और बाजार के बुनियादी ढाँचे को विकसित करके बागवानी, पशुधन, मुर्गीपालन, मत्स्य, बांस, लघु वन उपज सहित कृषि और सम्बद्ध उपज के विपणन योग्य अधिशेष को प्रभावी ढंग से सम्भालना और प्रबन्धित करना।
- कटाई और कृषि के बाद नवीन और नवीनतम तकनीकों को विकसित करना।
- कृषि और सम्बद्ध उत्पादों के लिए प्रतिस्पर्धी विपणन चैनल विकसित करना।
- उत्पादन के लिए निजी और सहकारी क्षेत्रों को प्रोत्साहित कर उनके माध्यम से यहाँ निवेश करना।
- किसानों को व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से लाभान्वित करने के लिए कृषक उत्पादक संगठनों सहकारी समितियों का गठन करने के लिए किसानों को संगठित कर उन्हें एकजुट करना।
- प्रसंस्करण और प्रसंस्कृत उपज के विपणन के बारे में जागरुकता पैदा करना।
- फसल कटाई और हैंडलिंग घाटे को कम करने के लिए कृषि उपज, प्रसंस्कृत कृषि उपज और कृषि आदानों आदि के भंडारण के लिए वैज्ञानिक भंडारण क्षमता के निर्माण को बढ़ावा देना।
- प्रतिबद्ध वित्तपोषण और बाजार पहुँच को बढ़ावा देना।
कृषि अधिशेष का अनुचित विमुद्रीकरण नजदीक के विनियमित और अनियमित ग्रामीण और कृषि बाजारों में माँग की कमी के कारण हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मौजूदा स्थानीय बाजार प्रणाली, जब उत्पादन-स्तर और किसानों के हाथों में विपणन योग्य अधिशेष बहुत अधिक हैं, ऐसे समय में कृषि व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए संरेखित नहीं हुई है। इस प्रकार, बाजारों को एकीकृत करने की आवश्यकता है, एक श्रृंखला के माध्यम से मध्यस्थ व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए। यह उपज को अन्य माँग केन्द्रों से जोड़ता है और उचित और इष्टतम मूल्य दिलाने में कारगर होता है।
सामुदायिक भागीदारी से कृषि आधारभूत संरचना
आजादी के 72 वर्षों बाद भी, कृषि वस्तुओं की कीमत के लगातार बढ़ते अन्तर से उत्पादक के साथ-साथ उपभोक्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसका कारण कृषि बाजारों में शोषण की निरन्तर मौजूदगी है। कृषि बाजार न तो कृषि उपज के लिए बेहतर कीमत मिलना सुनिश्चित करने में सक्षम थे और न ही उन्होंने किसानों की मोल-भाव करने की शक्ति को बढ़ाया। कृषि बाजारों में कुरीतियों और गाँव के व्यापारियों-साहूकारों तथा गाँव के व्यापारियों, आढ़तियों, कमीशन एजेंटों, प्रसंस्करण उद्यमों के एजेंटों आदि जैसे अन्य बिचैलियों का शोषणात्मक रवैया किसानों को औने-पौने दामों में बेचने के लिए मजबूर करता रहा। इस प्रकार, कृषि में मौजूदा सहकारी विपणन प्रणाली के सुदृढ़ीकरण और पुनरुद्धार से न केवल संगठित थोक बाजारों (एपीएमसी मंडियों) और असंगठित ग्रामीण आवधिक बाजारों ( ग्राम कृषि बाजार) में एजेंटों और बिचैलियों पर अत्यधिक निर्भरता समाप्त हो जाएगी, बल्कि प्रभावी सूचना प्रसार के मुद्दों, विपणन के डिजिटाइज्ड साधनों के उपयोग, वस्तुओं के संयुक्त परिवहन द्वारा परिवहन लागत के प्रबन्धन तथा शीघ्र नाशवान अर्थ-नाशवान वस्तुओं के प्रभावी और समय भंडारण के लिए गोदामों के नेटवर्क की स्थापना के मुद्दों को हल करके उचित मूल्य भी सुनिश्चित किया जा सकता है।
कृषि में मौसम पर निर्भरता को देखते हुए सक्रिय व्यापार अवधि के दौरान बड़े पैमाने पर अत्यधिक मात्रा में व्यापार शुरू करने के लिए सामुदायिक-स्तर के एफपीओ, सहकारी विपणन के बुनियादी ढाँचे को उन्नत और मजबूत करना समय की जरूरत है। एफपीओ/सहकारी विपणन इकाइयों को कृषि वस्तुओं की जाँच करने, पूर्वानुकूलन, ग्रेडिंग, मानकीकरण, पैकेजिंग और उत्पादों के भंडारण, एकत्रीकरण व परिवहन के लिए संगठित सुविधा केन्द्रों की स्थापना जैसी गतिविधियाँ करनी चाहिए। इस तरह से कृषि विपणन संरचना को कृषि उत्पादन के एकत्रीकरण और आगे की आपूर्ति की सुविधा के लिए गाँव, तालुका और जिला-स्तरों पर कार्यात्मक संभारतंत्र (लॉजिस्टिक्स) केन्द्रों की स्थापना पर विचार करने की आवश्यकता है। इस तरह से उत्तर भारत में संगठित डेयरी विपणन की तरह सहकारी विपणन समितियों के सदस्य किसानों के स्वामित्व के तहत आगे बढ़ सकते हैं।
किसानों को उत्पादन बिन्दुओं से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने में शामिल लागत को कम करके कृषि उपज के विपणन को पूरी तरह से प्रबन्धित करने के लिए संवेदनशील और प्रशिक्षित किया जाना है। एफपीओ/ सहकारी बिक्री कम्पनियों/समितियों और सहकारी गोदामों की स्थापना किसानों को सामुदायिक-स्तर पर अपने उत्पादन पर सही लाभ प्राप्त करने में मदद का सबसे अच्छा समाधान हो सकता है। वस्तुओं के वास्तविक माँग आंकड़ों एवं प्रभावी तथा समय पर बाजार आसूचना के प्रसार द्वारा एक मजबूत और जीवंत कृषि विपणन बुनियादी ढाँचे में कृषि और ग्रामीण बाजारों तथा सम्बन्धित विपणन प्रणालियों को कुशल बनाने की बड़ी क्षमता है। वर्ष 2019-20 तक सही मायने में एकीकृत राष्ट्रीय कृषि बाजार को प्राप्त करने के लिए, ग्रामीण कृषि विपणन संरचना की समीक्षा, पुनः प्रचारित करने, बढ़ावा देने और राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जोड़े जाने की आवश्यकता है।
किसानों को संगठित करके ई-नाम को समझने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है जिसमें विभिन्न महत्त्वपूर्ण मुद्दों के तहत पुनर्विचार किया जा रहा है जैसे कि ग्रेड और मानकों का सामंजस्य, यथा उत्पादन के बाद मूल्य श्रृंखलाओं के साथ विपणन श्रृंखलाओं-भंडारण, परिवहन संसाधन, बाजार के रुझान आदि में विषमता की जानकारी के बीच समेकित नेटवर्क की कमी। एफपीओ/सहकारी समितियाँ एक गुणवत्ता वाले विपणन पारिस्थितिकी-तंत्र को सुनिश्चित करने के लिए लाभप्रद स्थिति में हैं, जिसमें उत्पादन, बाजार चैनल, रिटेलर और उपभोक्ताओं की मूल्य श्रृंखलाएँ शामिल हैं।
गोदाम का बुनियादी ढाँचा
भंडारण, कोल्ड स्टोरेज और गोदाम का बुनियादी ढाँचा, फसल तैयार होने के मौसम मूल्य में अत्यधिक उतार-चढ़ाव के दौरान उत्पन्न स्थिति को सम्भालने और उत्पादन अवधि से लेकर खपत अवधि तक कृषि उपज पर किसानों को पारिश्रमिक मूल्य सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। पर्याप्त वैज्ञानिक भंडारण सुविधाओं की कमी से किसानों को भारी नुकसान होता है। भले ही केन्द्रीय और राज्य भंडारण निगमों ने विभिन्न राज्यों में गोदामों का निर्माण किया है, फिर भी यह मात्रा पर्याप्त नहीं है। किसानों के सग्रह के रूप में एफपीओ/सहकारी समितियाँ कृषि उत्पादन के लिए भंडारण और भंडारण की क्षमता का विस्तार करने में योगदान कर सकती हैं। ये इकाइयाँ बाजारों में वृद्धि और प्रत्यक्ष पहुँच सुनिश्चित कर सकती हैं, बाजार को आकर्षित करने के लिए गुणवत्ता के साथ थोक में उत्पादन का एकत्रीकरण, उत्पादों को बेहतर कीमत के लिए सौदेबाजी को बढ़ाने के लिए एक पारिस्थितिकी-तंत्र को बढ़ावा देने के साथ-साथ भंडारण सुविधाओं तक पहुँच में सुधार कर सकती हैं।
कृषि-मूल्य श्रृंखला के बुनियादी ढाँचे को प्रभावी और कुशल बनाना
सरकार ने कृषि-मूल्य श्रृंखला इकाइयों की पर्याप्त वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कई उपायों को शुरू किया है, ताकि फसल के पूर्व और कटाई के बाद के नुकसान को कम किया जा सके, रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सके और किसानों और खेत उद्यमियों की आय का स्तर बढ़ाया जा सके। हालांकि, कृषि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कृषि-मूल्य श्रृंखला इकाइयों की समग्र उन्नति और विकास प्रभावशाली नहीं रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि व्यवसाय इकाइयों के लिए ऋण प्रवाह में निहित समस्याओं और मुद्दों के कारण उपयुक्त कृषि उद्यमी संस्कृति का अभाव कई आर्थिक और अतिरिक्त आर्थिक समस्याओं को जन्म देता है। यदि लोग जीवन की इन बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, तो वे आर्थिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पाएँगे और अपने स्वयं के कल्याण और अपने समाज के कल्याण में सकारात्मक योगदान देने में विफल रहेंगे।
नए उद्यमों में मुनाफा कमाने की दिशा में अवसर या प्रोजेक्ट व्यवहार्यता का सही विकल्प अभियान का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्र में, अवसरों और संसाधनों के सफल दोहन (भौतिक और मानव दोनों) के लिए सक्षम प्रणालियों को लागू करने की आवश्यकता होती है। स्वयंसहायता समूह, सहकारिता और कृषक उत्पादक संगठन इकाइयाँ इंटर-लोनिंग और बैंक क्रेडिट लिंकेज गतिविधियों के माध्यम से अपनी आर्थिक इकाइयों के संचालन के लिए संसाधन पैदा कर रही हैं। हालाकि, उनकी व्यावसायिक पसन्द अक्सर उनकी गतिविधियों के प्रबन्धन, संचालन और उनको बनाए रखने की क्षमता के अनुरूप नहीं होती है। ख्याति-प्राप्त अर्थशास्त्रियों द्वारा उद्यमशीलता के रूप में मुख्य रूप से तीन केन्द्रीय पहलुओं की पहचान की गई है: (अ) अनिश्चितता और जोखिम (ख) प्रबन्धकीय क्षमता और (स) रचनात्मक अवसरवाद या नवाचार।
कृषि मूल्य श्रृंखला में उत्पादन प्रणाली में लगे सभी हितधारकों को लाने का प्रयास करना चाहिए। इनपुट आपूर्तिकर्ता, प्रौद्योगिकी पहुँचाने वाली एजेंसियाँ, उपयुक्त प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने वाले वैज्ञानिक और विस्तार अधिकारी जो क्षमता निर्माण से जुड़े हैं और किसानों को एक साझा मंच और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक साझा मंच पर विभिन्न सेवाएँ प्रदान करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में यह समुदाय-आधारित वित्तीय बिचैलिए हैं जो उत्पादन के बाद व्यावसायिक गतिविधियों में जैसे उत्पादन के संग्रह, छंटाई, ग्रेडिंग, भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और विपणन की योजना में शामिल होने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। स्वयं सहायता समूह, सहकारी समितियों और कृषक उत्पादन संगठनों जैसे सामुदायिक वित्तीय संस्थान आपके द्वार पर क्रेडिट देने के अलावा बाजार सूचना केन्द्रों की भूमिका निभा सकते हैं और कृषि-मूल्य श्रृंखला में प्रमुख हितधारक बन सकते हैं। इन सामुदायिक-स्तर की वित्तीय संस्थाओं को उत्पादन, मूल्य की खोज और प्राप्ति और लाभप्रदत्ता में सुधार के लिए कृषि मूल्य श्रृंखला के विभिन्न हितधारकों के साथ कुशल सम्बन्ध सुनिश्चित करने के लिए क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।
कृषि स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का विकास
भारतीय कृषि परिदृश्य को देश की डिजिटल क्रान्ति से सकारात्मक रिटर्न की उम्मीदें लगाई जा रही हैं। डिजिटल नवाचारों और समाधानों से कृषि हेतु बुनियादी ढाँचे के विकास, आपूर्ति श्रृंखला प्रबन्धन और प्रौद्योगिकी सुविधा की गुणवत्ता, रसद और कृषि मूल्य श्रृंखला के वितरण में जबर्दस्त प्रयोज्यता है। देश के युवाओं को कृषि व्यवसाय को सफल बनाने के लिए नवीन विचारों के साथ आगे आना होगा। अधिक-से-अधिक कृषि से सम्बन्धित ऊष्मायन इकाइयाँ (इंक्यूबेशन यूनिट) और स्टार्टअप भारतीय कृषि के लिए अपने तरीके तलाश रहे हैं। समय की आवश्यकता है कि इस तरह के स्टार्टअप के लिए जमानत से मुक्त ऋण की सुविधा, विकास पूँजी उपलब्ध कराना, निवेश पर कराधान में छूट आदि की सुविधा प्रदान करना सुनिश्चित किया जाए।
मूल्य संवर्धन संसाधन केन्द्रों की स्थापना
किसानों/किसान समूह को लक्षित कृषि वस्तुओं के उत्पादन के बिन्दु पर सही मूल्य संवर्धन संसाधन केन्द्र स्थापित करने के लिए संवेदनशील और सशक्त बनाया जाना चाहिए। इनपुट आपूर्ति के अलावा, ये केन्द्र गुणवत्ता उत्पादन के लिए अग्रणी प्रक्रियाओं पर सख्त निगरानी के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। मूल्य संवर्धन संसाधन केन्द्र (वीएआरसी) एग्री-इनपुट प्रबन्धन, विस्तार सेवाओं के प्रबन्धन, गाँवों में बुनियादी कृषि और सम्बद्ध बुनियादी ढाँचे के निर्माण और रख-रखाव के लिए भी जिम्मेदार हो सकता है और किसान सदस्यों को उनके शीघ्र नाशवान उत्पादन अथवा अर्ध-नाशवान कृषि-वस्तुओं की जरुरतों और मूल्य संवर्धन के लाभों के बारे में बुनियादी प्रशिक्षण/उन्मुखीकरण प्रदान कर सकता है।
प्रसंस्करण के माध्यम से मूल्यवर्धन
प्रसंस्करण के साथ सहकारी ऋण, विपणन, उपभोक्ता सहकारी समितियों के एकीकृत विकास को सुनिश्चित करने की सख्त आवश्यकता है। सहकारी समितियाँ कृषि-प्रसंस्करण और अन्य मूल्यवर्धन गतिविधियों में निवेश के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकती हैं। सहकारी समितियाँ गाँव/ब्लॉक-स्तर पर प्रसंस्करण, ग्रेडिंग, पैकेजिंग सुविधाओं की स्थापना के लिए आसान और परेशानीमुक्त वित्त सुनिश्चित कराने के लिए सबसे उपयुक्त जमीनी इकाईयाँ हैं। इससे लाखों छोटे धारक किसान सदस्य अपने खराब होने वाले उत्पाद का मूल्य जोड़ सकते हैं, मूल्यवान कृषि उत्पादों के अपव्यय को कम कर सकते हैं और अपनी उपज के बेहतर रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं। इसीलिए तत्कालिक कदम उठाने की आवश्यकता है। इस प्रकार समय की आवश्यकता है -
- ग्रामीण और शहरी विकास केन्द्रों में रणनीतिक-स्तर पर सामुदायिक-स्तर के सहकारी प्रसंस्करण और मूल्य-संवर्धन केन्द्र स्थापित करना,
- बैंकिंग बुनियादी सुविधा के लिए या पर्याप्त और कुशल सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से इस तरह के सहकारी प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन इकाइयों को वित्त सुनिश्चित करना
- उचित नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से ऐसे नवीन कृषि प्रसंस्करण स्टार्टअप्स में निवेश के लिए सहकारी प्रसंस्करण स्टार्टअप्स की सुविधा और उद्यम पूँजीपतियों को प्रोत्साहित करना
- सुविधाजनक और रणनीतिक स्थानों पर पर्याप्त मान्यता प्राप्त खाद्य गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना
- किसानों को प्रसंस्करण तथा शीघ्र नाशवान व कम नाशवान कृषि उत्पादों के संरक्षण के बारे में कौशल विकास और क्षमता निर्माण के लिए बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराना
- सहकारी विपणन समितियों के सदस्यों को कृषि जिंसों की ग्रेडिंग, परख, छंटाई और मानकीकरण पर प्रशिक्षण और बुनियादी उन्मुखीकरण प्रदान करना
कृषक समूहों के माध्यम से अनुबंध कृषि को मजबूत बनाना
स्वयं सहायता समूह, सहकारिता, कृषक उत्पादन संगठनों आदि जैसे स्थानीय किसान संग्राहकों में अनुबंध कृषि और भूमि पट्टे की व्यवस्था के माध्यम से सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यक शक्ति है जो कि कृषि उपज के लिए त्वरित प्रोद्योगिकी हस्तांतरण, पूँजी प्रवाह और सुनिश्चित बाजारों की सुविधा प्रदान कर सकता है। चूँकि कृषि बाजार बड़े पैमाने पर खरीदार-चालित और ऊध्र्वाधर रूप से एकीकृत हैं, इसलिए समुदाय-आधारित किसान सहकारी समितियों के माध्यम से अनुबंध खेती किसानों को श्रम सम्बन्धित लेन-देन लागत, अन्य आदानों की लागत, प्रौद्योगिकी और नवाचार को कम करके किसानों को सर्वोत्तम सम्भव आय का स्रोत प्रदान करेगी। व्यक्तिगत किसानों की तुलना में, सहकारी और स्थानीय किसान उत्पादक संगठन कम इनपुट लागत, स्थिरता और अनुबंध कृषि व्यवस्था के दीर्घकालिक लाभों को प्राप्त कर सकते हैं और सदस्य किसानों के बीच लाभ का एक उचित और स्थाई वितरण कर सकते हैं। इसके अलावा, सामुदायिक उत्पादक संगठनों के पास सामूहिक सौदेबाजी, निविष्ट वस्तुओं के विक्रेताओं और संभारतंत्र (लॉजिस्टिक्स) सहायता उपलब्ध कराने वालों के साथ दीर्घकालिक सम्बन्धों के निर्माण तथा रख-रखाव और किसानों द्वारा सामना किए जाने वाले जोखिम और अनिश्चितताओं के माध्यम से फर्मों और किसानों के बीच जटिल गतिशीलता को संतुलित करने की वांछित क्षमता है।
निष्कर्ष
भारतीय कृषि काफी हद तक प्रबन्धन के मुद्दों से त्रस्त हैं, जिसमें विभिन्न कृषि-बुनियादी ढाँचे जैसे की मृदा स्वास्थ्य मानचित्रण और प्रबन्धन, जल संसाधन संरक्षण, समय पर और पर्याप्त कृषि-आदानों की आपूर्ति-क्रेडिट, बीज, उर्वरक, कीटनाशक, कृषि उपकरण, बिजली आदि के प्रबन्धन और विकास के लिए सामुदायिक-स्तर के संगठनों को सशक्त बनाकर शीघ्र एक एकीकृत और उपयुक्त नीति तैयार किए जाने की जरूरत है। कृषि-आधारित विपणन में अन्त-से-अन्त समाधान सुनिश्चित करना समय की मांग है ताकि कृषि क्षेत्र में परिणामोन्मुख सुधार लाया जा सके। सामुदायिक-स्तर का किसान संगठन सरकार के कृषि विकास मिशन को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सक्षम माहौल बना सकता है। सहकारिता/कृषक उत्पादन संगठनों स्वयं सहायता समूह में विभिन्न महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचों जैसे इनपुट सेवाओं, सिंचाई, विपणन, आपूर्ति श्रृंखला, प्रसंस्करण, भंडारण और भंडारण इत्यादि। और सम्बद्ध गतिविधियों जैसे कि मुर्गीपालन, बागवानी डेयरी, आदि में भी समकालिक, पर्याप्त और डोरस्टेप क्रेडिट समर्थन के प्रवाह को बढ़ाने के लिए समान और ठोस प्रयास सुनिश्चित करने की क्षमता है।
इसके अलावा, सामुदायिक-स्तर की विपणन इकाइयों को कृषि वस्तुओं, उत्पादों, परीक्षण, प्री-कंडीशनिंग, ग्रेडिंग, मानकीकरण, पैकेजिंग और कृषि के भंडारण के परिवहन के लिए संगठित सुविधा केन्द्रों की स्थापना जैसी गतिविधियों को लेने के लिए बहुउद्देशीय समितियों में बदलना होगा। इसके अलावा, सामुदायिक गोदामों और सहकारी ग्रामीण और शहरी गोदामों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और उन्हें मजबूत किया जाना चाहिए तथा विपणन गतिविधियों से जोड़ा जाना चाहिए ताकि कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन और गुणवत्ता मूल्य की खोज के सही लाभ सुनिश्चित किए जा सकें। सहकारी समितियों के रूप में सामुदायिक सामूहिकता संचार, कार्य आवंटन, भुगतान/लेनदेन, बाजार प्रणाली, आपूर्ति श्रृंखला आदि पर उन्मुख और मजबूत किया जाना चाहिए।
(लेखक बैकुंठ मेहता राष्ट्रीय सहकारी प्रबंध संस्थान (वैमनीकॉम) पुणे, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के निदेशक हैं।)
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