विश्व शौचालय दिवस, 19 नवम्बर 2015 पर विशेष
यह सच है कि जॉन स्नो इतने लोकप्रिय नहीं हैं कि उनके बारे में बगैर गूगल किये कोई बात की जाये लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जन स्वास्थ्य और सार्वजनिक साफ-सफाई (शौचालयों समेत) को लेकर होने वाली कोई भी बात बगैर जॉन स्नो के पूरी नहीं हो सकती।
सन् 1813 में जन्मे ब्रिटिश चिकित्सक जॉन स्नो ही वह पहले व्यक्ति थे जिनके अध्ययनों ने दुनिया भर में पानी की व्यवस्था, शौचालयों की साफ-सफाई और जलजनित बीमारियों के बारे में पारम्परिक समझ को पूरी तरह बदल दिया।
कॉलरा (ऐसा डायरिया जो कुछ घंटों में जान भी ले सकता है) से उनकी पहली मुठभेड़ सन् 1831 में हुई जब वह न्यू कैसल के सर्जन विलियम हार्डकैसल के यहाँ प्रशिक्षु के रूप में काम कर रहे थे। सन् 1937 तक वह अपनी पढ़ाई खत्म कर वेस्टमिंस्टर हॉस्पिटल में नौकरी शुरू कर चुके थे। इस बीच सन् 1849 और 1854 में लन्दन पर दो बार कॉलरा का कहर बरपा जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं।
उस वक्त आम समझ यही थी कि कॉलरा जैसी बीमारियाँ वायु प्रदूषण से होती हैं। इस बीमारी के फैलने में गन्दगी और पानी की भूमिका पर कोई बात नहीं करता था। सन् 1849 में अपने निबन्ध के जरिए डॉ. स्नो ने इस थ्योरी को खारिज कर दिया। उन्होंने सन् 1854 में एक नए आलेख के जरिए यह साबित ही कर दिया कि इस बीमारी का पानी और गन्दगी से सीधा सम्बन्ध है।
दरअसल स्थानीय लोगों से बात करके उन्होंने पाया कि बीमारी उन स्थानों पर अधिक गम्भीर है जहाँ सार्वजनिक पम्प से जलापूर्ति होती है। पूरे शोध के बाद उन्होंने स्थानीय प्रशासन को मजबूर किया वह ब्रॉड स्ट्रीट पर लगे उस पम्प को बन्द कर दे। ऐसा करते ही बीमारी के फैलाव और मरने वालों की संख्या में बहुत तेजी से कमी आई।
उन्होंने अपने अध्ययन में यह दिखाया कि शौच से निकली गन्दगी के पानी में मिल जाने के कारण शहर में बार-बार कॉलरा का हमला हो रहा था। उन्होंने बकायदा नक्शा बनाकर बताया कि कैसे थेम्स नदी में नाली की प्रदूषित गन्दगी मिल रही है और फिर वह पानी घरों में पहुँचाया जा रहा है। यह एक चौंकाने वाली जानकारी थी। इसके पहले इन बीमारियों को वायुजनित माना जाता इसलिये पानी की गन्दगी पर किसी का ध्यान ही नहीं था। स्नो के अध्ययन को जन स्वास्थ्य और महामारीविज्ञान की अब तक की यात्रा का प्रस्थान बिन्दु माना जाता है।
स्नो की रिपोर्ट का एक हिस्सा- 'घटनास्थल पर पहुँचकर मैंने पाया कि लगभग सभी मौतें ब्रॉड स्ट्रीट पम्प के एकदम करीब हुई हैं। कम-से-कम 5 मृतकों के परिवार ने मुझे बताया कि वे ब्रॉड स्ट्रीट पर लगे पम्प के पानी का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि वह करीब है। दूरदराज के मृतकों में ऐसे बच्चे थे जिनका स्कूल ब्रॉड वे पम्प के करीब था और वे उसका पानी पीते थे।
बाद में शोधकर्ताओं ने पाया कि पम्प बहुत गहरा नहीं था और शौच क्रिया के बाद की गन्दगी उस पानी को प्रदूषित कर रही थी। यही नहीं अधिकांश परिवारों में अपने घरों की गन्दगी को थेम्स नदी में बहाने का भी प्रचलन था। जिसे स्नो की जागरुकता के बाद रोका गया।
स्नो को 10 जून सन् 1858 को महज 45 वर्ष की उम्र में स्ट्रोक आया जिससे वह उबर नहीं सके और 16 जून 1858 को उनका देहान्त हो गया।
1. 1 अरब लोग दुनिया में आज भी खुले में शौच करते हैं।
2. 6 लीटर पानी लगता है शौचालय को एक बार फ्लश करने में
3. 20 लाख से अधिक लोग हर साल कॉलरा से पीड़ित होते हैं
4. 28 हजार से 1 लाख तक लोगों की इससे मौत हो जाती है
5. 80 फीसदी मामले ओरल रिहाइड्रेशन दवा से ठीक हो सकते हैं