बुंदेलखंड की पारंपरिक संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं ‘तालाब। आम बुंदेली गांव की बसावट एक पहाड़, उससे सटे तालाब के इर्द-गिर्द हुआ करती थी। यहां के टीकमगढ़ जिले के तालाब नौंवी से 12वी सदी के बीच वहां के शासक रहे चंदेल राजाओं की तकनीकी सूझबूझ के अद्वितीय उदाहरण है। कालांतर में टीकमगढ़ जिले में 1100 से अधिक चंदेलकालीन तालाब हुआ करते थे। कुछ को समय की गर्त लील गई और कुछ आधुनिकीकरण की आंधी में ओझल हो गए।
सरकारी रिकार्ड में यहां 995 ताल दर्ज हैं परंतु हकीकत में इनकी संख्या 400 के आसपास सिमट गई है। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक 995 में से नौ वन विभाग, 88 सिंचाई, 211 पंचायतों, 36 राजस्व विभाग, 55 आम निस्तारी और 26 निजी काश्तकारों के कब्जे में है। इन 421 तालाबों के अतिरिक्त बकाया बचे 564 तालाब लावारिस हालत में तकरीबन चैरस मैदान बन गए हैं।
ओरछा स्टेट के 1907 के गजट से जानकारी मिलती है कि उन दिनों जिले की कुल कृषि जोत 5.366 लाख एकड़ में से 1,48,500 एकड़ भूमि इन तालाबों से सींची जाती थी। 1947 में यह रकवा घटकर मात्र 19,299 एकड़ रह गया। ताजा आंकडे बताते हैं कि टीकमगढ़ जिले के 3,31,586 हेक्टेयर में खेती होती है। उसमें सिर्फ 811527 हेक्टेयर सिंचित है। जबकि तालाबों से महज 10.82 हजार हेक्टेयर ही सींचा जा रहा है। साफ जाहिर है कि साल दर साल यहां के तालाब और उनसे सिंचाई की परंपरा खत्म होती जा रही है।
इस क्षेत्र की तीन चैथाई आबादी के जीविकोपार्जनका जरिया खेती-किसानी है। पानी और साधन होने के बावजूद उनके खेत सूखे रहते हैं। हर साल हजारों लोग रोजगार और पानी की तलाश में दिल्ली, पंजाब की तरफ पलायन करते हैं। दूसरी और तालाबों के क्षरण की बेलगाम रफ्तार बुंदेलखंड की इस बेशकीमती पारंपरिक धरोहर का अस्तित्व मिटाने पर तुली है।
बुंदेलखंड में जलप्रबंध की कुछ कौतुहलपूर्ण बानगी टीकमगढ़ जिले के तालाबों से उजागर होती है। एक हजार वर्ष पूर्व ना तो आज के समान मशीनें-उपकरण थे ना भूगर्भ जलवायु, इंजीनियरिंग आदि के बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट। फिर भी एक हजार से अधिक गढ़े गए तालाबों में से हर एक को बनाने में यह ध्यान रखा गया कि पानी की एक-एक बूंद इसमें समा सके। इनमें कैचमेंट एरिया (जलग्रहण क्षेत्र) और कमांड (सिंचन क्षेत्र) का वो बेहतरीन अनुपात निर्धारित था कि आज के इंजीनियर भी उसे समझ नहीं पा रहे हैं।
पठारी इलाके का गणित बूझ कर तब के तालाब शिल्पियों ने उसमें आपसी ‘फीडर चेनल’ की भी व्यवस्था कर रखी थी। यानि थोड़ा सा भी पानी तालाबों से बाहर आ कर नदियों में व्यर्थ जाने की संभावना नही रहती थी। इन तालाबों की विशेषता थी कि सामान्य बारिश का आधा भी पानी बरसे तो ये तालाब भर जाएंगे। इन तालाबों को बांधने के लिए बगैर सीमेंट या चूना लगाए, बड़े-बड़े पत्थरों को सीढ़ी की डिजाइन में एक के ऊपर एक जमाया था।
यदि आजादी के बाद विभिन्न सिंचाई योजनाओं पर खर्च बजट व उससे हुई सिंचाई और हजार साल पुराने तालाबों को क्षमता की तुलना करें तो आधुनिक इंजीनियरिंग पर लानत ही जाएगी। यहां के तालाबों की उत्तम व्यवस्था देख कर अंग्रेज शासक भी चकित थे। उन दिनों कुंओं के अलावा सिर्फ तालाब ही पेयजल और सिंचाई के साधन हुआ करते थे।
1944 में गठित ‘फेमिन इनक्वायरी कमीशन’ ने साफ निर्देश दिए थे कि आने वाले सालों में संभावित पेयजल संकट से जूझने के लिए तालाब ही कारगर होंगे। कमीशन की रिर्पाट तो लाल बस्ते में कहीं दब गई। आजादी के बाद इन पुश्तैनी तालाबों की देखरेख तो दूर, उनकी दुर्दशा करना शुरू कर दिया। आइए, टीकमगढ़ जिले के तालाबों के प्रति बरती जा रही कोताही पर सरसरी नजर डालें।
टीकमगढ़ जिले में 49 तालाब 100 एकड़ से अधिक साइज के हैं। इनमें से 16 से लगभग ना के बराबर सिंचाई होती है। इंजीनियर बताते है कि मामूली मरम्मत के बाद इन तालाबों से 9777 हेक्टेयर खेतों को सींचा जा सकता है। जबकि आज मात्र 462 हेक्टेयर सिंचाई ही हो पाती है।
जिले के नौ तालाब राजशाही काल से ही जंगल महकमे के अधीन हैं। जिनसे विकासखंड की आलपुरा पंचायत में आलपुरा ताल, मांचीगांव में माचीगढ़ तालाब, रायपुर गांव का तालाब ओर महेबा गांव का रानीताल, पलेरा विकासखंड में पलेरा कस्बे का सुरेन तालाब और झिझारिया ताल, रामनगर गांव का चरोताल बड़ागांव ब्लाक के नारायणपुर में सुकौरा ताल भी वन विभाग के कब्जे में है।
इन सभी तालाबों तक अच्छा खासा पहुंज मार्ग भी है। वन विभाग के तालाबों की मरम्मत पर ढाई से तीन लाख रू. प्रति तालाब खर्च होने के बाद हजारों लोगों के लाभान्वित होने की बात, सिंचाई विभाग के अफसर स्वीकारते हैं। जिले के दस तालाबों पर कृषि विभाग का हक है लेकिन इनसे भी कोई सिंचाई ही नहीं होती है।
पलेरा ब्लाक के गांव टपरियन में चोर रांगना ताल, निवारी गांव के दो तालाब इनमें से है। बलदेवगढ़ विकासखंड में पटौरी, बालमऊ और जुहर्रा गांव के तालाब भी बेकार पडे़ सिकुड़ते जा रहे हैं। जतारा ब्लाक में बाजीतपुरा गांव का तालाब और गौरगांव में गांव अबेरा का जटेरा ताल, निवाड़ी ब्लाक में लथेसरा का विशाल तालाब पक्की सड़कों के किनारे होने के बावजूद अनुपयोगी पड़े हुए हैं। जनपद पंचायतों के अधीन तालाबों से भी मौजूद क्षमता की एक चैथाई भी सिंचाई नहीं होती है।
टीकमगढ़ जनपद के माड़वार गांव के गिरोरा ताल से 45 एकड़, महाराजपुरा तालाब से 40 एकड़, मजना ताल से 30 एकड़, बम्हेरीनकीबन ताल से 20 एकड़ और पुरनैया (रामनगर) तालाब से सिर्फ 20 एकड़ खेत ही सींचे जाते हैं।
बलदेवगढ़ जनपद के अधिकार में 14 तालाब हैं। जिनमें तुहर्रा ताल से 50 एकड़ वेसा ताल से 35 एकड़, सुजानपुरा से 75 एकड़ जटेरा ताल से 70 एकड़, तालमऊ से 60 एकड़, गुखरई से 60 एकड़, बृषभानपुर से 70 एकड़, हटा ताल से 50 एकड़ सूरजपुर से 30 एकड़, हीरापुरा से 65 एकड़ बवर तालाब 40 एकड़ रामसगरा से 45 एकड़, गैसी ताल धरंगवां 35 एकड़ और गुना तालाब से 55 एकड़ खेतों को पानी मिलता है।
जनपद पंचायत जतारा के पास 33 तालाब हैं, लेकिन इनमें से मात्र पांच से कोई डेढ़ सौ एकड़ में सिंचाई होती है। ये हैं जतारा का मीठा तालाब, गौरताल, बनगांय का टौरिया तालाब, जस्बा का रघुनाथ तालाब और भरगुवां तालाब। शेष 28 तालाब गाद भरे गड्ढों के रूप में वातावरण को दूषित कर रहे हैं। इनका कुल क्षेत्रफल 200 एकड़ से अधिक है।
निवाड़ी जनपद के अधीन सभी 14 तालाबों से थोड़ी सी ही सिंचाई होती है। ये हंै लड़वारी 20 एकड़, कुलुवा 10 एकड़, नीमखेरा 20 एकड़, अस्तारी एकड़ कुठार पुरैलिया लड़वारी 20 एकड़ सादिकपुरा 10 एकड़ सकूली के दो तालाब 20 एकड़ धुधनी 10 एकड़ लाडपुर 15 एकड़, पठारी का लेठसरा और पठारी ताल 10 एकड़ व 20 एकड़ महाराजपुरा 20 एकड़ और जनौली तालाब 10 एकड़। इस विकासखंड के उमरी गांव के पास स्थित उमरी जलाशय के बांध का ऊपरी हिस्सा क्षतिग्रस्त है। बांध में रिसन भी है।
फुटैरा के विशाल तालाब का भराव क्षेत्र वन विभाग के अधीन है। गिदरानी गांव के तालाब का जलग्रहण क्षेत्र कोई पौन वर्ग मील है। इसका बांध टूटा है। इसके भराव क्षेत्र में लोग खेती करने लगे हैं। निवाड़ी-सेंदरी मार्ग पर तरीचर कला के तालाब का कैचमेंट एरिया एक वर्ग किलोमीटर अधिक है। पर वो पूरी तरह बेकार पड़ा है।
जतारा ब्लाक के बरमा ताल से 10 साल पहले तक 15-20 एकड़ सिंचाई हो जाती थी। यदि इसमें मात्र 70 हजार रू. खर्च किया जाऐ तो 50 हेक्टर खेतों को आराम से पानी मिल सकता था। गा्रम पड़वार के पास जंगल में स्थित बमरा तालाब की नहर टूट चुकी है। यह गांव गौर के तहत है। अनुमान है कि मात्र 50 हजार रू. खर्च कर इससे 40 हेक्टर पर खेती की सिंचाई हो सकती है। मोहनगढ़-दिगौड़ा रोड पर बनगांय तालाब से भारी रिसन हो रही है। यहां जमीन धंसने की आंशका भी है।
पृथ्वीपुर जनपद पंचायत का 18 तालाबों पर अधिकार है, जिनका मौजूदा सिंचाई रकबा शून्य है। इनमें से पाराखेरा गांव में चमरा ताल, मने बतलैया और छुरिया ताल, ककावनी का तालाब, मंडला गांव के अमछरूमाता व पुरैनिया तालाब काफी बड़े-बडे़ हैं। यहां के सकेरा गांव में दो विशाल ताल हैं जिनका जलग्रहण क्षेत्र एक वर्ग किलोमीटर है। इनके बांध और सलूस(स्थानीय भाषा में इसे ‘औना’ कहते हैं) पूरी तरह टूट गए हैं। अतः यहां पानी भर नही पाता है।
बरूआ सागर रेलवे स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर स्थित दुलावनी ग्राम का कंधारी तालाब भी लगभग बिखर गया है। इससे 50 हेक्टर में सिंचाई हुआ करती थी। विकासखंड पलेरा के तहत 18 तालाब है। इनमें से 13 तालाबों से कुल मिलाकर 50 एकड़ से भी कम सिंचाई होती है। जबकि कुडवाला तालाब से 130 बन्ने पुरवा के गजाधर ताल से 120 एकड़ और सुम्मेरा तालाब से 110 एकड़ खेतों को पानी मिलता है।
जंगपाली गांव के मझगुवां ताल से 120 एकड़ और महेन्द्र कहेबा के लिधौरा तालाब से 100 एकड़ सिंचाई के आंकड़े दर्ज हैं। पलेरा ब्लाक के हिरनी सागरताल का जलग्रहण क्षेत्र एक वर्ग किमी है। इस 450 मीटर लंबा और 4.30 मीटर ऊंचा बांध है। जो पूरी तरह से फूट चुका है।
ग्राम मुर्राहा बाब के करीब गजाधर ताल का जलग्रहण क्षमता 8.7 वर्ग किमी है। इस पर 330 मीटर लंबा और छह मीटर ऊंचा बांध है। इसकी मरम्मत न होने से इसका लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। जतारा पलेरा रोड पर कुडयाला के पास गुरेरा तालाब की एक वर्ग किमी जलग्रहण की क्षमता है। इसका 120 मीटर लंबा व साढे़ छह मीटर ऊंचाई का बांध पूरी तरह नष्ट हो चुका है। लिधौरा ताल का जलग्रहण क्षेत्र 1.90 वर्ग मीटर है। इसकी भी दुर्गति है।
पृथ्वीपुर तहसील का नदरवारा तालाब से इस इलाके के चुनावों का अहम मुद्दा बन गया है। इस तालाब से सटाकर गौरा पत्थर नामक कीमती खनिज का भंडार है। इसके अंधाधुंध खनन से तालाब का किसी भी दिन टूट जाना तय है। इस तालाब की जलग्रहण क्षमता 945.36 लाख वर्गफुट है। इससे 4495 एकड़ खेतों की सिंचाई होती है।
इसके चारों ओर केसरगंज (जनसंख्या 700) बदर खरबम्हेरी (500) खाखरोन (1600) ककावनी (4500) लुहरगवां (5000) हथेरी (4642) केशवगढ़ (5600) भगौरा (5800) गांव बसे हुए हैं। इस तालाब से सट कर हर रोज करीब 100 से 150 डायनामाइट विस्फोट होते हैं। जिससे पूरे ताल की संरचना जर्जर हो गई है।
यहां खनिज खनन का ठेका ऐसे रुतबेदार के पास है जो हर राजनैतिक दल को चुनावों में चंदा देता है। पिछले सालों जनता के आंदोलन करने पर जिला प्रशासन ने जब वहां खनन पर रोक लगाई तो ठेकेदार हाईकोर्ट से स्टे ले आए और आज भी खनन जोरो पर है। जिस रोज यह तालाब फूटेगा उस दिन आस-पास बसे एक दर्जन गांव, हजारों एकड़ फसल का जडमूल से चैपट हो जाना तय है।
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