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प्रजातन्त्र लाइव, 19 दिसम्बर 2014
‘ग्लोबल वार्मिंग’ दुनिया के लिए कितनी बड़ी समस्या है, यह बात एक आम आदमी समझ नहीं पाता है। उसे यह शब्द थोड़ा टेक्निकल लगता है इसलिए वह इसकी तह तक नहीं जाता। लिहाजा एक वैज्ञानिक परिभाषा मानकर छोड़ दिया जाता है। ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह एक दूर की कौड़ी है और फिलहाल संसार को इससे कोई खतरा नहीं है। कई लोग इस शब्द को पिछले दशक से ज्यादा सुन रहे हैं इसलिए उन्हें ये बासी लगने लगा है।
भारत में भी ग्लोबल वार्मिंग एक प्रचलित शब्द नहीं है और भाग दौड़ में लगे रहने वाले भारतीयों के लिए भी इसका अधिक मतलब नहीं है। लेकिन विज्ञान की दुनिया की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियाँ की जा रही है।
इसे 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (Asteroid) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है।
ये हुई कुछ ऊपरी बातें जो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर कही गई लेकिन अगर हम इसकी तह में जाएं तो हमें पता चलेगा कि वाकई यह विषय बहुत महत्वपूर्ण है। पूरी दुनिया इससे प्रभावित हो रही है। अगर इसे नहीं सम्भाला गया तो यह किसी विश्वयुद्ध से ज्यादा जानमाल की हानि कर सकता है। सबसे पहले हमें इसकी कुछ शुरुआती बाते समझनी होगी। माना जाता है कि पिछली शताब्दी में यानी सन् 1900 से 2000 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1 डिग्री फॉरेनहाइट बढ़ गया है। सन् 1970 के मुकाबले वर्तमान में पृथ्वी तीन गुना तेजी से गर्म हो रही है। इस बढ़ती वैश्विक गर्मी के पीछे मुख्य रूप से मानव ही है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, गाड़ियों से निकलने वाला धूँआ और जंगलों में लगने वाली आग इसकी मुख्य वजह हैं। इसके अलावा घरो में लग्जरी वस्तुएँ मसलन एयरकंडीशनर, रेफ्रीजरेटर, अवन आदि भी इस गर्मी को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ग्रीन हाउस गैस वे होती हैं जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश तो कर जाती हैं लेकिन फिर यहाँ से वापस स्पेस में नहीं जा पातीं और यहाँ का तापमान बढ़ाने में कारक बनती हैं वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 से 8 तक डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जाएगी, समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा। समुद्र के इस बर्ताव से दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो जाएँगे। भारी तबाही मचेगी। यह तबाही किसी विश्वयुद्ध या किसी एस्टेरॉइड के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी। हमारे ग्रह पृथ्वी के लिए वे दिन बहुत बुरे साबित होंगे।
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे मुख्य रूप से ग्रीन हाउस गैसों का होना है। तो सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि ये गैसें कॉन-सी हैं और कैसे पैदा होती हैं। ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओटू) मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें शामिल होती है। इनमें भी सबसे अधिक उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड का होता है। इस गैस का उत्सर्जन सबसे अधिक पावर प्लाण्ट से होता है। याद रखें की बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है। अगर हम सोचें कि एक अकेले हमारे सुधरने से क्या हो जाएगा तो इस बात को ध्यान रखें कि ‘हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा।’ सभी लोग अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें तो ग्लोबल वार्मिंग को भी परास्त किया जा सकता है।
इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 से 8 तक डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जाएगी, समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा। समुद्र के इस बर्ताव से दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो जाएँगे। भारी तबाही मचेगी। यह तबाही किसी विश्वयुद्ध या किसी एस्टेरॉइड के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी। हमारे ग्रह पृथ्वी के लिए वे दिन बहुत बुरे साबित होंगे। बिजली संयन्त्रों को बिजली पैदा करने के लिए भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन (मसलन कोयला) का उपयोग करना पड़ता है। इससे भी भारी मात्रा में सीओटू पैदा होती है। माना जाता है कि संसार में 20 प्रतिशत सीओटू गाड़ियों में लगे गैसोलीन इंजन की वजह से उत्सर्जित होती है। इसके अलावा विकसित देशों के घर में किसी भी कार्य या ट्रक से ज्यादा सीओटू उत्सर्जित होता है। इन्हें बनाने में सीओटू की बहुत मात्रा उत्सर्जित होती है। इसके अलावा इन घरों में लगने वाले उपकरण भी इन गैसों का उत्सर्जन करते है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि इसका असर सिर्फ समुद्र तटीय इलाकों पर ही नहीं बल्कि सभी जगह पड़ेगा
माना जा रहा है कि इसकी वजह से उष्णकटिबन्धीय रेगिस्तानों में नमी बढ़ेगी। मैदानी इलाकों में भी इतनी गर्मी पड़ेगी, जितनी कभी इतिहास में भी नहीं पड़ी। इस वजह से विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियाँ पैदा होंगी। वैज्ञानिकों के अनुसार आज के 15.5 डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान के मुकाबले भविष्य में 22 डिग्री सेण्टीग्रेड तक तापमान जा सकता है।
हमें ध्यान रखना होगा कि हम प्रकृति को इतना नाराज ना कर दें कि वह हमारे अस्तित्व को खत्म करने पर ही आमादा हो जाए। हमें उसे मना कर रखना पड़ेगा। हमें उसका ख्याल रखना पड़ेगा, तभी तो वह हमारा ख्याल रखेगी।
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भारत में भी ग्लोबल वार्मिंग एक प्रचलित शब्द नहीं है और भाग दौड़ में लगे रहने वाले भारतीयों के लिए भी इसका अधिक मतलब नहीं है। लेकिन विज्ञान की दुनिया की बात करें तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भविष्यवाणियाँ की जा रही है।
इसे 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (Asteroid) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है।
ये हुई कुछ ऊपरी बातें जो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर कही गई लेकिन अगर हम इसकी तह में जाएं तो हमें पता चलेगा कि वाकई यह विषय बहुत महत्वपूर्ण है। पूरी दुनिया इससे प्रभावित हो रही है। अगर इसे नहीं सम्भाला गया तो यह किसी विश्वयुद्ध से ज्यादा जानमाल की हानि कर सकता है। सबसे पहले हमें इसकी कुछ शुरुआती बाते समझनी होगी। माना जाता है कि पिछली शताब्दी में यानी सन् 1900 से 2000 तक पृथ्वी का औसत तापमान 1 डिग्री फॉरेनहाइट बढ़ गया है। सन् 1970 के मुकाबले वर्तमान में पृथ्वी तीन गुना तेजी से गर्म हो रही है। इस बढ़ती वैश्विक गर्मी के पीछे मुख्य रूप से मानव ही है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, गाड़ियों से निकलने वाला धूँआ और जंगलों में लगने वाली आग इसकी मुख्य वजह हैं। इसके अलावा घरो में लग्जरी वस्तुएँ मसलन एयरकंडीशनर, रेफ्रीजरेटर, अवन आदि भी इस गर्मी को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार ग्रीन हाउस गैस वे होती हैं जो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश तो कर जाती हैं लेकिन फिर यहाँ से वापस स्पेस में नहीं जा पातीं और यहाँ का तापमान बढ़ाने में कारक बनती हैं वैज्ञानिकों के अनुसार इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 से 8 तक डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जाएगी, समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा। समुद्र के इस बर्ताव से दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो जाएँगे। भारी तबाही मचेगी। यह तबाही किसी विश्वयुद्ध या किसी एस्टेरॉइड के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी। हमारे ग्रह पृथ्वी के लिए वे दिन बहुत बुरे साबित होंगे।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारक
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के पीछे मुख्य रूप से ग्रीन हाउस गैसों का होना है। तो सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि ये गैसें कॉन-सी हैं और कैसे पैदा होती हैं। ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओटू) मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें शामिल होती है। इनमें भी सबसे अधिक उत्सर्जन कार्बन डाइऑक्साइड का होता है। इस गैस का उत्सर्जन सबसे अधिक पावर प्लाण्ट से होता है। याद रखें की बूँद-बूँद से ही घड़ा भरता है। अगर हम सोचें कि एक अकेले हमारे सुधरने से क्या हो जाएगा तो इस बात को ध्यान रखें कि ‘हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा।’ सभी लोग अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें तो ग्लोबल वार्मिंग को भी परास्त किया जा सकता है।
इन गैसों का उत्सर्जन अगर इसी प्रकार चलता रहा तो 21वीं शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 3 से 8 तक डिग्री तक बढ़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इसके परिणाम बहुत घातक होंगे। दुनिया के कई हिस्सों में बिछी बर्फ की चादरें पिघल जाएगी, समुद्र का जल स्तर कई फीट ऊपर तक बढ़ जाएगा। समुद्र के इस बर्ताव से दुनिया के कई हिस्से जलमग्न हो जाएँगे। भारी तबाही मचेगी। यह तबाही किसी विश्वयुद्ध या किसी एस्टेरॉइड के पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाली तबाही से भी बढ़कर होगी। हमारे ग्रह पृथ्वी के लिए वे दिन बहुत बुरे साबित होंगे। बिजली संयन्त्रों को बिजली पैदा करने के लिए भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन (मसलन कोयला) का उपयोग करना पड़ता है। इससे भी भारी मात्रा में सीओटू पैदा होती है। माना जाता है कि संसार में 20 प्रतिशत सीओटू गाड़ियों में लगे गैसोलीन इंजन की वजह से उत्सर्जित होती है। इसके अलावा विकसित देशों के घर में किसी भी कार्य या ट्रक से ज्यादा सीओटू उत्सर्जित होता है। इन्हें बनाने में सीओटू की बहुत मात्रा उत्सर्जित होती है। इसके अलावा इन घरों में लगने वाले उपकरण भी इन गैसों का उत्सर्जन करते है।
बढ़ रहा है खतरा
हमने टेलीविजन के माध्यम से संसार में ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बढ़ रहे खतरों को देखा है। आर्कटिक में पिघलती हुई बर्फ, चटकते ग्लेशियर, अमेरिका में भयंकर तूफानों की आमद बता रही है कि हम मौसम परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं।ध्यान देने वाली बात यह है कि इसका असर सिर्फ समुद्र तटीय इलाकों पर ही नहीं बल्कि सभी जगह पड़ेगा
माना जा रहा है कि इसकी वजह से उष्णकटिबन्धीय रेगिस्तानों में नमी बढ़ेगी। मैदानी इलाकों में भी इतनी गर्मी पड़ेगी, जितनी कभी इतिहास में भी नहीं पड़ी। इस वजह से विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियाँ पैदा होंगी। वैज्ञानिकों के अनुसार आज के 15.5 डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान के मुकाबले भविष्य में 22 डिग्री सेण्टीग्रेड तक तापमान जा सकता है।
हमें ध्यान रखना होगा कि हम प्रकृति को इतना नाराज ना कर दें कि वह हमारे अस्तित्व को खत्म करने पर ही आमादा हो जाए। हमें उसे मना कर रखना पड़ेगा। हमें उसका ख्याल रखना पड़ेगा, तभी तो वह हमारा ख्याल रखेगी।
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