मालवा की जल समस्या के उपाय

Submitted by admin on Sun, 10/05/2008 - 09:03

गली नियंत्रण संरचना के लिये उपयुक्त स्थान का चुनाव


गली नियंत्रण संरचना के लिये उपयुक्त स्थान का चुनावडॉ. विनोद न. श्राफ
मालवा व अन्य स्थानों पर इस प्रकार की पारिस्थितिकीय बदलाव, भौतिक उथल-पुथल, भू-क्षरण, जैव कार्बन (आर्गेनिक कार्बन) की कमी से भूमि की जल संधारण क्षमता में कमी आने पर फसलों पर थोड़े से सूखे में अधिक विपरीत असर से फसल उत्पादन में गिरावट आ रही है। ऐसे में कुछ सुझावों पर जरूर अमल किया जाना चाहिए . . .

नाली/कुंडी बने हैं बरदान
खेत के आसपास मेड़ के स्थान पर नाली/कुंडिया - मेड़ के स्थान पर नाली/कुंडियों की श्रृंखला और दो आड़े रोक के मध्य रिसन गड्ढों को इंर्टों के टुकड़े व जीवांश के साथ बहकर इन लघु संरचनाओं में एकत्रित होता है, रुकता है, रिसता है तो भूजल भंडार में एकत्रित होता है। ऐसे में उथले कुएं और कम गहराई के ट्यूबवेल (70-100 फीट के) रबी की फसल को पर्याप्त पानी देते हैं। यह कार्य भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र इन्दौर पर वर्ष 1984 से व सोयाबीन अनुसंधान केन्द्र खंडवा रोड़ इन्दौर में वर्ष 2000 से अपनाया गया है। इन छोटी सी संरचनाओं के परिणाम विस्मयकारी हैं। पूरा प्रक्षेत्र सूखे वर्ष में भी रबी के मौसम में उथले कुएं व ट्यूबवेल से पर्याप्त पानी मिलने पर रबी फसलों का भरपूर उत्पादन प्राप्त कर रहा है। इस स्वयंसिद्ध तकनीक अपनाने का साग्रह प्रस्ताव है। मेड़ को नाली/कुंडी में परिणत करने का खर्च प्रति एकड़ रुपए एक हजार से भी कम बैठता है। नाली/कुंडियो की चौड़ाई व गहराई 3-4 फीट लम्बाई ढलान के अनुसार 15-25 फीट व बिना खुदा हुआ भाग 4-5 फीट रखा जाता है।

हर खेत में पोखर-तलैया-
एक किसान, एक खेत, एक पोखर बनाया जाए तो दो अतिरिक्त सिंचाई सुनिश्चित हो जाती है। पोखर को नाली से जोड़ें। पोखर कुएं-ट्यूबवेल के पास बनाए जाते हैं तो कुओं-ट्यूबवेल का जलस्तर उठाना संभव हो जाता है। पोखर के आकार के अनुसार खर्च रुपए एक हजार के आसपास आता है। गोल पोखर 12-15 फीट व्यास या चौकोर 15 गुणित 15 फीट, गहराई 8-10 फीट रखी जाती है। पोखर-तलैया बनाने का खर्च हजार-बारह सौ रुपये आता है।

परिणाम - खेत के आसपास नाली, खेत में पोखर होने पर खेत की मिट्टी व जीवाशं खेत व खेत के आसपास संग्रहीत रहती है, उसे गर्मी के मौसम में रखरखाव, खुदाई कर खेत में पुन: फैला दी जाती है। वर्षा के मौसम में इन संरचनाओं में पानी रुकने पर जलचर-मेंढक, केंकड़े, मछली इत्यादि पनपते हैं, वे कीट नियंत्रण में सहायक होते हैं। खेत में आर्द्रता व भूमि के कणों के मध्य जलप्रवाह सूक्ष्मवाहिनी/केपिलरी, खड़ी, आड़ी (वर्टिकल-होरिजंटल) के कारण फसलों को आवश्यक नमी मिलती रहती है, जिससे वह सूखे के प्रभाव से बच निकलने में सहायक होती है। इस तकनीक से खेत का पानी खेत में, खेत की मिट्टी खेत में व खेत के जीवाशं खेत व खेत के आसपास संग्रहीत रहेंगे तो सूखे से मुक्ति के साथ खरीफ व रबी की फसल भी लेना संभव होगा, साथ में उत्पादन में स्थायित्व से कृषक खुशहाल रहेंगे।

कुओं का वर्षा जल पुनर्भरण -
कुएं हमारे धन से बने राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं। शासकीय, अशासकीय, निजी सभी कुओं की सफाई, गहरीकरण व रखरखाव करें। कुओं को अधिक पानी देने में सक्षम बनाएं। वर्षा जल को कुओं में संग्रहीत करें। कुएं शहर, गांव की जलव्यवस्था का मुख्य अंग हैं। नए युग में भी उपयोगी हैं। मध्यप्रदेश के मालवा व निमाड़ क्षेत्र में सात लाख कुएं रिचार्ज किए जा चुके हैं। क्या आपने अपने खेत में वर्षाजल पुनर्भरण की विधि अपनाई है, यदि नहीं तो इस कार्य को यथाशीघ्र अपने हित में अपनाएं।

कुएं में वर्षा जल भरने की इंदौर विधि -
कुएं में वर्षा जल भरने की इंदौर विधि, कम खर्च अधिक लाभ - तीन मीटर लम्बी नाली, 75 से.मी. चौड़ी व उतनी गहरी नाली से बरसात का पानी कुएं तक ले जाकर, उसकी दीवार में छेदकर, 30 से.मी. व्यास का एक मीटर लम्बा सीमेंट पाइप लगाकर, नाली से पानी कुएं में उतारें। पाइप के भीतरी मुहाने पर एक से.मी. छिद्रवाली जाली लगाकर, उसके सामने 75 से 100 से.मी. तक 4 से 5 से.मी. मोटी मिट्टी, बाद में 75 से 100 से.मी. तक 2 से 3 से.मी. आकार की गिट्टी और एक मीटर लम्बाई तक बजरी रेत भरें। खेत से बहने वाला बरसात का पानी जल, सिल्ट ट्रेप टैंक 5 गुणित 4 गुणित 1.5 मी. व फिल्टर नाली से होकर कुएं में पाइप से गिरेगा। पानी, रेत-गिट्टी से बह कर जाने से जल का कचरा भी बाहर रहता है।
इस प्रकार कुएं का जलस्तर बढ़ेगा। भूमि में पानी रिसेगा। आसपास के कुंए और ट्यूबवेल जीवित होंगे। इस विधि से कुओं में भूजल पुनर्भरण का खर्च ५०० से १००० रुपये आता है।

नालों में डोह बनाएं -
नालों में डोह ( डोह यानी नाले के अन्दर एक गड्ढा) बनाएं-नालों को गहरा करें। पानी रोकें। नाले गांव की जीवनरेखा हैं। गांव का पानी नालों में बहकर नदी में आता है। नाले उथले हो गए हैं, उनको गहरा कर नालों में डोह, कुंड, डबरों की शृंखला बनाएं। अधिक बहाव हो तो गेबियन संरचना बनाएं। नालों के गहरीकरण से उनमें पानी रुकेगा, थमेगा तो भूमि की गहरी परतों में रिसेगा। नालों से खोदी गई मिट्टी को खेत में फैलाएं। जमीन के अन्दर जल पहुंचेगा। किनारों के पेड़-पौधे बढ़ेंगे, पनपेंगे। नालों के ढलान के अनुसार ४०-५० मीटर के अन्तर पर दो-तीन मीटर की पट्टी बिना खोदी हुई रहने दें। ऊपर बोल्डर बिछाएं। नाला गहरीकरण से बने कुंड, डोह में पानी रुका रहेगा। इंदौर में नैनोद, सीहोर जिले के आमलावदन, झालकी, उज्जैन व रतलाम जिलों में इसे अपनाया गया है। परिणाम उत्साहवर्धक हैं। नालों के गंदे पानी को साफ रखने, मध्य की पटि्टयों पर प्रेगमेटिश, टाइफा, रीड, खस लगाकर बायोजिकल फिल्टर बनाएं।

जल का किफायती इस्तेमाल -
जल का किफायती इस्तेमाल - जल संरक्षण व भूजल पुनर्भरण की विभिन्न विधियों के उपयोग से प्रत्येक किसान के खेत के लिए दो सिंचाई उपलब्ध हो सकती हैं सोयाबीन, कपास व अन्य खरीफ फसलों को क्रांतिक अवस्था में सीमित जल नाली, स्प्रिंकलर या टपक सिंचाई पद्धति से दी जाए जिसमें कम समय लगता है तो डेढ़ गुना उत्पादन प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ में रबी फसलों जैसे गेहूं, चना, सरसों, सब्जियों के लिए व पूरे वर्ष पेयजल उपलब्ध हो सकेगा।

जल बूंदों का बजट -
भविष्य में जल की उपलब्धता व प्रत्येक बूंद से अधिक उत्पादन मिले, ऐसे प्रयास करने की आवश्यकता से सभी सहमत हैं। जल की प्रत्येक बूंद अनमोल है, बूंद-बूंद से तालाब भरता है, विवाद रहित उज्ज्वल भविष्य हेतु जल की प्रत्येक बूंद का सक्षम उपयोग समय की मांग है। ऐसा अनुमान है कि यदि जल व्यवस्था को सुधारा नहीं गया तो वर्ष २०२५ तक तीन व्यक्ति में से एक व्यक्ति की (यानी १/३ जनसंख्या) आजीविका उपार्जन के लाले पड़ जाएंगे।

जल रक्षति रक्षितम:- जल की रक्षा में हमारी रक्षा निहित है। यह आखिरी अवसर है जल को बचाकर रखने का। जल होगा तो कल होगा। आइए, जल की प्रत्येक बूंद, जमीन, मृदा का प्रत्येक कण, जीव जगत का, प्रत्येक जीव, जीवांश जिनमें संग्रहीत जल व ऊर्जा है, जंगल को नए सिरे से संवारेंगे तो पर्यावरण संतुलित रहेगा व भविष्य में हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा।


साभार - पर्यावरण डाइजेस्ट