अगर आप वजन घटाने के लिए प्रेरणा की तलाश में हैं, तो इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इपिडेमियोलॉजी के नवीनतम अंक में प्रकाशित इस रिपोर्ट के परिणामों पर नजर डालना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है.
इसके मुताबिक अधिक वजन या मोटापे को एक पर्यावरणीय समस्या के रूप में देखना चाहिए क्योंकि इसके साथ अतिरिक्त भोजन और परिवहन उत्सर्जन की समस्या भी जुडी होती है. लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के फिल एडवर्ड्स और इयान रॉबर्ट्स ने पाया है कि एक दुबली-पतली आबादी वाला देश जैसे वियेतनामी 20 प्रतिशत कम खाते हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका के मुकाबले जहां करीब 40 प्रतिशत लोग मोटे हैं, तुलनात्मक रूप से कम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन करते हैं. लेखक ने यह भी पाया है कि दुबली आबादी वाले देशों में परिवहन उत्सर्जन भी कम होता है, क्योंकि उन्हें ढोने में कम ऊर्जा खर्च होती है.
बहुत से लोग पहले से ही जानते हैं कि एक एसयूवी ड्राइविंग या हवाई जहाज़ से यात्रा में नाटकीय रूप से अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन होता है, अध्ययन व्यक्तिगत जीवन शैली में बदलाव के साथ उत्सर्जन कम करने के कुछ सबसे प्रभावी तरीकों का समर्थन करता है.
दुनिया भर में सरकारें ऐसी गतिविधियों को कम करने के लिए इन पर कर लगाने की शुरुआत कर रहीं हैं ताकि जलवायु की रक्षा करने में मदद मिल सके. लेकिन परेशानी यह है कि ऐसे में लोगों के कमर के आकार पर ध्यान देने की प्रवृति बढेगी और इससे वजन के आधार पर भेदभाव का विवाद खडा हो सकता है.
( शरीर के वजन के आधार पर इस तरह के भेदभाव पिछले वर्षों में परिवहन के क्षेत्र में विवाद का विषय रहे हैं. आयरिश एयरलाइन राइन एयर ने घोषणा की, कि लगभग एक तिहाई उत्तरदाताओं ने एक कंपनी के तथाकथित मुटापा कर चुनाव के लिए के पक्ष में मतदान किया है. इस कर से प्राप्त राजस्व से आगे किराया कम करने में मदद मिलेगी.)
मानव जाति चाहे ऑस्ट्रेलियाई हो.