महाकाल

Submitted by Hindi on Mon, 06/13/2011 - 09:38
डमरू में नाचता है सुर
और शून्य में सबद भरता है
त्रिशूल बेधे हुए है खल-परिहास
नाग का पहरा है

जलहरी में
जल में बह रहा है जल
दूध अपनी उजास में
डूबा हुआ है किसी सन्त की तरह
महाकाल को अपनी हरियाली से
नहला रही है बेलपत्री

कोई ढार गया है मधुपर्क
मंदार अपनी टहनी के सुख से
अभी भी दिख रहा है तरो-ताज़ा

मंदिर में हर शब्द मंत्र है
हम जो कामनाएँ बुदबुदाते हैं
वह कुछ देर बाद घण्टियों में बजती हैं

भाँग-धतूरा में तलब सो रही है
फूल शांति की तरह महक रहे हैं
जीवन-जगत के शिवत्व के लिए

प्रार्थनारत्
ध्वनि से लगा
महाकवि कालिदास का कोई श्लोक
महाकाल का दर्शन कर लौट रहा है

महाकाल को समय का नशा है
चिलम चढ़ा गया है कोई नशेड़ी
हुई होगी मनौती उसकी पूरी
फक्कड़ रहा होगा इसीलिए चिलम चढ़ाने की
की होगी मानता
सेठ होता तो चढ़ाता सोना-चाँदी या हीरे-जवाहरात!

मौन में महाकाल का महात्म्य बहता है
उच्चारण में प्रशस्ति

दिए की लौ में पुराण के शब्द जगमगाते हैं
वाक् और अर्थ के बीच
क्षिप्रा बह रही है!