फिल्म रिव्यू
फिल्म का नाम – पैडमैन
निर्देशक- आर. बाल्की
लेखक – आर. बाल्की व स्वानंद किरकिरे (सह-लेखक)
कलाकार – अक्षय कुमार, सोनम कपूर व राधिका आप्टे
संगीत – अमित त्रिवेदी
समय सीमा – 140 मिनट
बहुत पहले की बात है। तब मैं गाँव के स्कूल में पढ़ता था। कच्ची सड़क से स्कूल जाने के रास्ते में कई जगह सड़क के किनारे गड्ढे होते थे। उन गड्ढों में खून से सने कपड़े फेंके रहते थे।
इन दिनों उतनी समझ विकसित नहीं हुई थी कि जान पाता कि ये महिलाओं को होने वाली माहवारी से जुड़ा है। अलबत्ता, इतना जरूर जानता था कि इसका राब्ता महिलाओं से है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए।
महिलाएँ भी इस पर बात करने की जगह इसे छिपाना चाहती थीं। वे सबसे छिपाकर खून से सने कपड़ों को फेंक आती थीं। ये 90 के दशक के मध्य बात होगी। उन दिनों गाँवों में सेनिटरी पैड किस चिड़िया का नाम है, कोई नहीं जानता था।
अभी हम वर्ष 2018 में हैं और अगर ईमानदारी से यह पूछा जाये कि इन दो-ढाई दशकों में गाँवों में माहवारी (मैन्स्ट्रुअल साइकल) को लेकर लोगों का नजरिया कितना बदला है, तो जवाब निराशाजनक ही होगा।
शहरों में तो फिर भी जागरुकता बढ़ी है, लेकिन गाँवों में अब भी हालात कमोबेश वैसे ही हैं, जैसे दो-ढाई दशक पहले थे।
सेनिटरी पैड पर हालिया रिलीज हुई हिन्दी फिल्म ‘पैडमैन’ देखकर तो कम-से-कम यही लगता है। अक्षय कुमार अभिनीत यह फिल्म तमिलनाडु में जन्में अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन पर आधारित है, जिसने कम लागत पर सेनिटरी पैड बनाने की मशीन का ईजाद किया है।
मौटे तौर पर तो यह फिल्म एक बायोपिक है, लेकिन एक शख्स के जीवन के बहाने में माहवारी को लेकर समाज में फैले अन्धविश्वास, महिला सशक्तिकरण जैसे संगीन मुद्दों पर भी बहस छेड़ती है। वह भी बिना किसी भाषणबाजी के।
चूँकि बॉलीवुड की फिल्मों का बड़ा दर्शक समूह उत्तर व पूर्वी भारत में बसता है इसलिये अरुणाचलम मुरुगनाथम की कहानी की पृष्ठभूमि मध्य प्रदेश के महेश्वर कस्बे में रखी गई है और उनका नाम भी बदलकर लक्ष्मीकांत चौहान रख दिया गया है।
चूँकि यह आधिकारिक बायोपिक नहीं है, इसलिये इसमें थोड़ा-बहुत बदलाव किया गया है, ताकि फिल्म रोचक बनाई जा सके। लेकिन, ऐसा करते हुए मूल कथनाक से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है।
मध्य प्रदेश के जिस कस्बे को पृष्ठभूमि बनाया गया है और वहाँ के लोगों की जो सोच है, वह देश के किसी भी कस्बे के लोगों में मिल जाएगी। दूसरे कस्बों की तरह इस कस्बे में भी महिलाएँ गन्दे-पुराने कपड़े, पत्ते व अखबार व अन्य माध्यमों का सहारा लेती हैं।
फिल्म की पृष्ठभूमि चूँकि मध्य प्रदेश का एक छोटा-सा कस्बा है, इसलिये वहाँ की प्राकृतिक छटा को कैमरे में बेहतरीन तरीके से कैद किया गया है।
पैडमैन की कहानी के बारे में कुछ और बताने से पहले आइए हम जानने की कोशिश करते हैं अरुणाचलम मुरुगनाथम के बारे में।
अरुणाचलम मुरुगनाथम का जन्म 1962 में तमिलनाडु के कोयम्बटूर में एक बुनकर परिवार में हुआ था। गरीबी में पले-बढ़े मुरुगनाथम ने 14 साल की उम्र में ही स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी व फैक्टरी वर्करों को खाना पहुँचाने, खेतों में मजदूरी, वेल्डिंग आदि का काम करके परिवार का भरण-पोषण करने लगे।
सन 1998 में उनकी शादी हुई। शादी के बाद उन्होंने गौर किया कि माहवारी के लिये उनकी पत्नी गन्दे कपड़े व अखबार इकट्ठा कर रही है। उन दिनों कुछेक मल्टीनेशनल ब्रांड ही सेनिटरी पैड बनाते थे जो बहुत महंगे थे।
मुरुगनाथम ने तय किया कि वह खुद सस्ते पैड बनाएँगे। उन्होंने पत्नी व बहनों को यह बात बताई, तो उनकी तरफ से दुत्कार मिली। उन्होंने कुछ महिला स्वयंसेवियों को इस अभियान से जोड़ने की कोशिश की, लेकिन वहाँ भी उन्हें निराशा ही मिली।
पैड बनाने के बाद उसे प्रयोग कर देखने के लिये उन्होंने खुद उनका इस्तेमाल शुरू किया। शुरू में लोग उनका खूब मजाक उड़ाते, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लम्बे संघर्ष के बाद एक ऐसी मशीन बनाई जिसकी मदद से बेहद कम खर्च में पैड तैयार करना सम्भव हो सका।
जिस मुद्दे को ‘पुरुषों के लिये वर्जित क्षेत्र’ माना जाता हो, उस मुद्दे को सैल्यूलॉयड पर उतरना बहुत मुश्किल काम होता है, लेकिन सरोकारी मुद्दों पर फिल्में बनाने के लिये मशहूर आर. बाल्की ने खूबसूरत तरीके से फिल्म की कहानी का तानाबाना बुना है।
गौरतलब हो कि इसी मुद्दे पर जून 2017 में भी एक फिल्म आई थी। इसका नाम था फुल्लू। फिल्म का निर्देशन अभिषेक सक्सेना ने किया था और मुख्य भूमिका शरीब हाशमी व ज्योति सेठी ने निभाई थी।
चूकि, फिल्म में कोई बड़ा स्टार नहीं था और इसका प्रचार भी उतना नहीं हुआ था, इसलिये ज्यादातर लोगों को फिल्म के बारे में पता ही नहीं चला और फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुँह गिर पड़ी।
पैडमैन के निर्देशक आर. बाल्की हैं, जो पूर्व में वह ‘चीनी कम’, ‘पा’, ‘शमिताभ’, ‘की एंड का’ जैसी फिल्में लीक से हटकर फिल्में बना चुके हैं। साथ ही ‘पैडमैन’ से अक्षय कुमार जुड़े हुए हैं, इसलिये भी फिल्म की खूब चर्चा हुई है।
फिल्म की कहानी आर. बाल्की व स्वानंद किरकिरे ने संयुक्त रूप से लिखी है और यह इतनी कसी हुई है कि फिल्म आखिर तक दर्शकों को बाँधे रखती है। हाँ, फिल्म थोड़ी लम्बी खिंच गई है, लेकिन यह ऊब पैदा नहीं करती।
फिल्म के कई दृश्यों को देखकर आपको सिर धुनने की इच्छा होगी। इसलिये नहीं कि ये दृश्य अच्छे नहीं बने हैं बल्कि इसलिये कि इन दृश्यों से पता चलता है कि भारत में ‘मेंस्ट्रुअल साइकल’ जैसे मुद्दे अब भी ‘गुप्त’ बातें हैं जिन पर सार्वजनिक तौर पर बात करना बहुत बुरा माना जाता है।
मिसाल के तौर पर दो दृश्यों का जिक्र यहाँ कर रहा हूँ।
एक दृश्य वह है जब लक्ष्मीकांत अपनी बहनों के लिये सेनिटरी पैड बनाकर लाता है और उसे सौंपता है। सेनिटरी पैड देखकर लक्ष्मीकांत की बहनें व पत्नी भड़क जाती हैं।
पत्नी कहती है - बहन को कोई ये सब देता है क्या?
लक्ष्मीकांत - नहीं देता है ना, लेकिन देना चाहिए। राखी बाँधी थी न, इसलिये रक्षाबन्धन का वचन निभा रहा था।
एक दूसरे दृश्य में जब लक्ष्मीकांत अपनी पत्नी को सेनिटरी पैड इस्तेमाल करने की सलाह देता है, तो लोकलाज के दलदल में धँसी उसकी पत्नी कहती है -
हम औरतों के लिये बीमारी के साथ मरना, शर्म के साथ जीने से बेहतर है।
इस जवाब से बेतरह झल्लाया लक्ष्मीकांत कहता है –
शर्म को पकड़कर बीमारी के नाले में गिर जाओ सब!
इस तरह के और भी तमाम दृश्य हैं जो हमारे समाज की सच्चाई को सामने रखते हैं। फिल्म मे बहुत वजनदार डायलॉग की जगह हल्के-फुल्के अन्दाज में बातें कही गई हैं, जिस कारण आम लोग आसानी से इससे जुड़ सकते हैं। यह इस फिल्म की खूबसूरती है।
जहाँ तक एक्टिंग की बात करें, तो अक्षय कुमार ने फिर एक बार यह साबित किया है कि वे बेहतरीन अदाकार हैं। ‘सेनिटरी पैड’ जैसे विषय पर बनी फिल्म में अपने स्टारडम से नीचे आकर इस ईमानदारी के साथ एक्टिंग करना उनके लिये ही सम्भव है। आर. बाल्की ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘पैडमैन का मुख्य किरदार अक्षय कुमार से बेहतर कोई नहीं निभा सकता था।’
पैड पहनकर खुद टेस्ट करना समेत कई दृश्यों में अक्षय कुमार कमाल कर देते हैं। फिल्म के आखिर में एक कार्यक्रम में उनका टूटी-फूटी अंग्रेजी में अपनी बात रखने का सहज अन्दाज आपको मुरुगनाथम के उन भाषणों की याद दिलाएँगे, जो उन्होंने अलग-अलग कार्यक्रमो में दिये हैं। ये भाषण यूट्यूब पर मौजूद हैं और खूब देखे जा रहे हैं।
फिल्म के कथावाचक अमिताभ बच्चन हैं। मुख्य किरदार के अलावा राधिका आप्टे व सोनम कपूर ने भी जबरदस्त एक्टिंग की है।
बात सेनिटरी पैड की हो रही है, तो आपको यह भी बता दें कि देश की महज 12 प्रतिशत महिलाएँ ही सेनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। बाकी 88 प्रतिशत महिलाएँ इसके लिये गन्दे कपड़े, राख, भूसा आदि का प्रयोग करती हैं।
इन आँकड़ों का खुलासा वर्ष 2011 में नेल्सन कम्पनी व प्लान इण्डिया नाम के एनजीओ द्वारा संयुक्त रूप से किये गए एक सर्वेक्षण में हुआ है। सर्वे में बताया कि गन्दे कपड़े, राख व भूसा का इस्तेमाल करने से रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इनफेक्शन होने का खतरा रहता है।
हालांकि, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की 2015-2016 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में 48.5 प्रतिशत और शहरों में 77.5 प्रतिशत महिलाए सेनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। वहीं पूरे भारत में सेनिटरी पैड के इस्तेमाल की बात करें तो यह आँकड़ा 57.6 प्रतिशत है।
पैडमैन फिल्म के रिलीज होने के एक हफ्ते के भीतर ही यह खबर आई है कि छात्राओं को महाराष्ट्र सरकार सस्ती कीमत पर सेनिटरी पैड उपलब्ध कराएगी। इसके लिये सरकार ने अस्मिता योजना शुरू करने का निर्णय लिया है। यह योजना 8 मार्च को शुरू होगी।
यही नहीं, पैडमैन फिल्म के आने के बाद सेनिटरी पैड व माहवारी पर खुलकर चर्चा भी होने लगी है, जो अच्छी बात है।
फिल्म के ट्रेलर में अमिताभ बच्चन का वायस ओवर आता है जिसमें वह कहते हैं –
“अमेरिका के पास सुपर मैन है, बैटमैन है, स्पाइडर मैन है, लेकिन इण्डिया के पास पैडमैन है।”
सचमुच, जिस देश में आज भी महिलाएँ सेनिटरी पैड की जगह गन्दे कपड़े व राख का इस्तेमाल करती हों। दवाई दुकानों में बहुत धीरे से बोलकर सेनिटरी पैड माँगा जाता हो व उसे काली पॉलिथीन में छिपाकर घर लाया जाता हो, उस देश को वास्तव में सुपर मैन नहीं पैडमैन की ही जरूरत है।
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