उत्तराखण्ड स्थित पर्यटकों के लिये दुनिया में अपनी पहचान रखने वाली सरोवर नगरी की नैनी झील इस वक्त अपने अस्तित्व के लिये संघर्ष कर रही है। झील के चारों तरफ डेल्टा उभर आये हैं। इस वर्ष के आरम्भ में बारिश और बर्फबारी में भारी कमी आई है। इस झील को तरोताजा रखने वाले जंगलों में मौजूद प्राकृतिक तालाब सूख चुके हैं।
स्थानीय लोग बता रहे हैं कि नैनी झील के जलस्तर का गिरना मौसम परिवर्तन का सन्देश है। स्थानीय व्यापारी मायूस हैं कि यदि झील का रवैया इसी तरह बढ़ता जाये तो उनके व्यवसाय पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। झील के पानी का लगातार गिरना पर्यावरण के लिये चिन्ता का विषय बन गया है।
गौरतलब हो कि प्राकृतिक संसाधनों का सीमित होना और जनसंख्या का बढ़ना वर्तमान में एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है। सन 1991 की जनगणना के अनुसार नैनीताल नगर की जनसंख्या जहाँ 29837 थी वही 20 वर्ष के अन्तराल में यानि सन 2011 की जनगणना के अनुसार 41377 हो चुकी है। मौजूदा समय में नैनीताल नगर की यह जनसंख्या लगभग 50 हजार पार कर चुकी है।
यह वह जनसंख्या है जो नैनीताल शहर में रहना ही अपना स्टेटस समझते हैं। उन्हें क्या मालूम की जल का संरक्षण करना हो आदि आदि। क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण वही कर सकते हैं जो जंगलों के नजदीक रहते हैं, अथवा पशुपालन से जुड़े है वगैरह। मगर जो नैनीताल जैसे शहर में आ चुके हैं उन्हें तो पाइपलाइन से पानी चाहिए, उन्हें क्या मतलब की जंगल में चाल-खाल बचे हैं कि नहीं, जंगल कम-ज्यादा हो रहे हैं कि नहीं। यह बात आमतौर पर पर्यावरणविद कहते फिरते हैं। जनाब यह बात सुनने को इसलिये मिल रही है कि नैनीताल की झील के सूखने का कारण कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता तरुण जोशी कहते हैं कि नैनीताल के आस-पास बसे गाँव खाली हो रहे हैं। गाँव खाली हो गए तो पशुपालन स्वतः ही समाप्त हो रहा है। इस कारण जंगलों में परम्परागत चाल-खाल जो जल संरक्षण का लोक विज्ञान था वह बिखरता जा रहा है। चाल-खाल गाद से भर चुकी है। जंगलों में हो रही बरसात सीधे तेजी से बहकर मैदानों की तरफ बिखर कर जा रही है। जबकि बरसात का पानी अमूमन जंगलों में परम्परागत रूप से बनी चाल-खाल में रुकता था। सो अब नहीं रुक रहा है ऐसे में नैनीताल झील का सूखना लाजमी है क्योंकि जंगलों में जो तत्काल चाल-खाल बनी थी वे ही नीचे के स्तर पर जलस्रोतों को रिचार्ज रखते थे।
उदाहरणस्वरूप नैनीताल चिड़ियाघर में जितने भी जानवर हैं उनके शरीर पर पानी की कमी स्पष्ट दिखाई दे रही है। वहाँ भी परम्परागत चाल-खाल सूख चुके हैं। जानकार कहते हैं कि जल संरक्षण की एकमात्र विधी चाल-खाल ही है। जिससे पानी का रिचार्ज निचले स्तर पर होता रहता है। पत्रकार राजीव लोचन साह कहते हैं कि सरकार पर्यटन के नाम पर खूब हो हल्ला मचाती है। परन्तु पर्यटकों को रिझाने के लिये प्राकृतिक सौन्दर्य कैसे सुरक्षित रहे इस पर सरकारें जवाब देने के लिये कतराती हैं। वे कहते हैं कि अब समय आ गया है कि लोगों को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण बाबत खुद ही आगे आना होगा। कहते हैं कि नैनीझील का जलागम स्तर कैसा है उस पर सरकार में बैठे लोग बात करने के लिये राजी नहीं है। नैनीझील में पानी में रहे इसके लिये जलागम क्षेत्रों को सुरक्षित करना होगा।
हालात इस कदर हैं कि इस बार बारिश की मार नैनीताल की इस झील पर भी पड़ी है। बर्फबारी और बारिश नहीं होने से झील का पानी लगातार घट रहा है तो झील के चारों ओर बड़े-बड़े डेल्टा उभर आये हैं। नैनीझील में उभरे इन डेल्टाओं से झील की खूबसूरती पर भी ग्रहण लगा रहा है। बोट स्टैंड हो चाहे माल रोड के पास सभी जगहों पर पानी सूखने से पैदल रास्ते बनने लगे हैं।
झील में पानी के कम होने से इस बार जिला प्रशासन इस झील से मिट्टी को हटाने की कवायद शुरू कर रहा है। सिर्फ नैनीताल ही नहीं बल्कि सात तालों का हाल भी कुछ ऐसा ही है। कई छोटी झीलें तो पूरी तरह सूखने की कगार पर पहुँच गई हैं।
इस वर्ष नैनीझील पिछले कई सालों के न्यूनतम स्तर पर है। इसके अलावा भीमताल का भी बुरा हाल है। भीमताल झील का पानी पिछले साल के मुकाबले 4 फीट गिरा है तो सातताल 2 मीटर नीचे गिर गया है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इन झीलों को रिचार्ज करने वाले यानी जलागम क्षेत्रों के सभी जलस्रोत भी सूख गए हैं।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में बारिश में आई कमी से यह सूखा पड़ रहा है साथ ही जो झीलों को रिचार्ज करने वाले स्रोत हैं वह भी सूख गए हैं। इसके अलावा पेड़ों के लगातार हो रहे कटान भी इसका कारण बनता जा रहा है। माना जा रहा है कि अगर झीलों के पानी में लगातार कमी आएगी तो इससे नैनीताल ही नहीं बल्कि तराई वाले इलाके भी प्रभावित होंगे।
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