नदियों के सूखने का कारण

Submitted by Shivendra on Sat, 04/04/2020 - 08:58

कृष्ण गोपाल 'व्यास’


बीसवीं सदी के पहले कालखंड तक भारत की अधिकांश नदियाँ बारहमासी थीं। उस दौरान यदि कोई नदी सूखती थी तो वह सूखना अपवाद स्वरूप था। पिछले 50-60 सालों से भारत की सभी नदियों के गैर-मानसूनी प्रवाह में गंभीर कमी आ रही है। यह कमी भारतीय प्रायद्वीप की नदियों में अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट है। हिमालयी नदियों में यह कमी अपेक्षाकृत कम स्पष्ट है। प्रवाह की कमी के कारण भारत की अनेक नदियाँ लगभग मौसमी बनकर रह गईं हैं। बरसात के दिनों में नदी में मुख्यतः बरसात का पानी बहता है। वहीं, बरसात के बाद, नदी में प्रवाहित पानी मुख्यतः भूजल होता है। बरसात के बाद नदी के सूखने का कारण, भूजल के स्तर का नदी तल के नीचे उतर जाना और सहायक नदियों का योगदान खत्म हो जाना होता है। भूजल स्तर का नदी तल के नीचे उतरना अनेक कारणों से हो सकता है। उन कारणों को निम्न दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है -

  1. प्राकृतिक कारणों से प्रवाह में कमी  
  2. कृत्रिम कारणों से प्रवाह में कमी  

कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार हैं-

1. प्रवाह में कमी के प्राकृतिक कारण 

किसी भी नदी या नदी तंत्र में प्रवाह की कमी का मुख्य प्राकृतिक कारण, प्राकृतिक तरीके से होने वाली आपूर्ति में कमी है। यह कमी भूजल भंडारों के खाली होने या उनके जल के नदी या झरनों में डिस्चार्ज होने के कारण होती है। अगले पैराग्राफों में वस्तुस्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है - 

सभी जानते हैं कि बरसात के मौसम में एक्वीफर रीचार्ज होते हैं और बरसात के बाद वे धीरे-धीरे डिस्चार्ज होते हैं। बरसात में एक्वीफर के रीचार्ज होने के कारण, भूजल का स्तर ऊपर उठता है। जब भूजल का स्तर, ऊपर उठकर, नदी तल के ऊपर आ जाता है, तो वह नदी में डिस्चार्ज होने लगता है। उसके नदी में डिस्चार्ज होने के कारण नदी प्रवाहित होने लगती है। उस डिस्चार्ज के नदी को मिलने तक नदी प्रवाहमान रहती है और उसके घटने से प्रवाह कम होने लगता है। आम व्यक्ति भी जानता है कि मौसम के असर से नदी का प्रवाह प्रभावित होता है। बरसात के दिनों में नदी का प्रवाह अपने चरम पर होता है। बरसात के बाद नदी का प्रवाह धीरे-धीरे घटने लगता है। यह प्रक्रिया प्राकृतिक है। वह मानसूनी रीचार्ज के समाप्त होने और नदी को पानी उपलब्ध कराने वाले एक्वीफरों के धीरे-धीरे खाली होने के कारण होती है। उस कमी के असर को अगले मानसून तक देखा जा सकता है। उसके असर से छोटी नदियों में प्रवाह समाप्त हो जाता है, पर बरसात प्रारंभ होते ही उनका प्रवाह पुनः लौट आता है। उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि प्रवाह की घट-बढ़ मौसमी प्राकृतिक प्रक्रिया है। 

प्रवाह की कमी को स्थानीय ढाल भी प्रभावित करता है। यदि कछार का ढाल अधिक है तो एक्वीफर तेजी से खाली होंगे। इसके अलावा, सहायक नदियों का योगदान भी, प्रवाह की घट-बढ़ को प्रभावित करता है। कछार की टोपोग्राफी के विषम होने के कारण भी छोटी नदियों का प्रवाह जल्दी खत्म जाता है। इसी प्रकार रीचार्ज सम्बन्धी विपरीत गुणों वाले कठोर चट्टानी इलाके नदियों के प्रवाह को अधिक समय तक योगदान नहीं दे पाते। इस कारण उन इलाकों में छोटी-छोटी नदियों का प्रवाह जल्दी सूख जाता हैं। प्रवाह घटाने में अपर्याप्त बरसात या आधे-अधूरे रीचार्ज की भी अच्छी-खासी भूमिका होती है। 

नदियों के प्रवाह की कमी का एक अन्य कारण भूजल भंडारों की परतों की घटती मोटाई है। यह मिट्टी के कटाव से जुड़ा मामला है। मिट्टी के कटाव का प्रमुख कारण है जंगलों और कैचमेंट के वानस्पतिक आवरण में लगातार हो रही कमी। मिट्टी की परतों की मोटाई के कम होने के कारण उनकी भूजल संचय क्षमता घट रही है। भूजल संचय क्षमता घटने के कारण, उनका प्रवाह को मिलने वाला कुदरती योगदान, घट रहा है। इस कारण, नदी का प्रवाह कम हो रहा है और अवधि घट रही है। 

नदियों के प्रवाह के कम होने का अन्य संभावित प्राकृतिक कारण ग्लोबल वार्मिंग है। उसके कारण बरसात के वितरण, मात्रा तथा वर्षा दिवसों में बदलाव हो रहा है। कुछ इलाकों में औसत वर्षा दिवस कम हो रहे हैं, तो कहीं उनकी संख्या बढ़ रही है। यही स्थिति बरसात की मात्रा की है। औसत वर्षा के दिवस कम होने के कारण रन-आफ बढ़ रहा है और भूजल की प्राकृतिक बहाली के लिए अपर्याप्त समय मिल रहा है। इस कारण अनेक छोटी-छोटी नदियों के प्रवाह और अवधि में कमी आ रही है। उसका असर बड़ी नदियों के प्रवाह पर परिलक्षित हो रहा है।

2. प्रवाह में कमी के कृत्रिम कारण  

मानवीय हस्तक्षेप के कारण नदी के प्रवाह की कमी आ रही है। प्रमुख कृत्रिम कारण निम्नानुसार हैं- 

  1. भूजल का अतिदोहन 
  2. नदी जल की सीधी पम्पिंग 
  3. बाँधों के कारण प्रवाह में व्यवधान

भूजल दोहन का प्रभाव

प्रमुख कृत्रिम कारणों का संक्षिप्त विवरण आगे दिया गया है- 

2.1. भूजल का अतिदोहन 

नदियों के प्रवाह के कम होने का सबसे अधिक महत्वपूर्ण कारण नदी कछार में हो रहा भूजल का अतिदोहन है। उस अतिदोहन के प्रभाव से एक्वीफर समय के पहले रीतते हैं। नीचे दिए चित्र में भूजल दोहन की तीन अलग अलग परिस्थितियों के प्रभाव को दर्शाया गया है।                    

पहला चित्र (अ) दर्शाता है कि नदी कछार में भूजल दोहन शून्य है। कछार के भूजल का प्रवाह नदी की ओर है। चूँकि नदी को कछार से पानी की प्राप्ति हो रही है अतः नदी प्रवाहमान है।  

दूसरे चित्र (ब) में पम्पित नलकूप की कोन-आफ-डिप्रेशन (cone of dipression) को दिखाया गया है। यह चित्र, जल-विभाजक तल (नदी तथा नलकूप के बीच स्थित तल) को भी दर्शाता है। चूँकि जल-विभाजक तल नदी से सुरक्षित दूरी पर है, इस कारण नलकूप की पम्पिंग (01) का नदी के प्रवाह पर कोई पभाव नहीं दिख रहा है। इस स्थिति में भी भूजल दोहन के कारण क्षेत्रीय भूजल स्तर में गिरावट आती है। उस गिरावट के कारण सहायक नदियों का प्रवाह घटता है। कुछ छोटी नदियाँ सूखती हैं। संक्षेप में, भूजल दोहन के कारण कछार की नदियों का सकल प्रवाह कम होता है। यह स्थिति मुख्य नदी के सकल प्रवाह को कम करती है। 

भूजल दोहन का प्रभाव

तीसरा चित्र (स) दर्शाता है कि नदी के निकट नलकूप स्थित है। नलकूप द्वारा पानी की पम्पिंग (01) हो रही है। उसकी कोन आफ डिप्रेशन का दाहिना हिस्सा नदी के जल के सम्पर्क में है। इस स्थिति में, पम्पित पानी की आंशिक पूर्ति, नदी के प्रवाह से होगी। यह पम्पन नदी के प्रवाह को सीधे-सीधे कम करेगा। अनेक नदी कछारों में, यह स्थिति बेहद आम है।  

2.2. नदी जल की सीधी पम्पिंग 

देश की अनेक नदियों से, नदी के पानी की सीधी पम्पिंग की जाती है। कई बार उनसे नहरें निकाली जाती हैं। दोनों ही कारणों से नदियों के प्रवाह में कमी आती है। नदियों से उठाए पानी की मात्रा की गणना कर प्रवाह पर उसके असर को ज्ञात किया जा सकता है। 

2.3. बाँधों के कारण प्रवाह में व्यवधान 

बाँधों के निर्माण के कारण नदी के प्रवाह में व्यवधान आता है। जलाशय से मिलकर मूल प्रवाह की पहचान समाप्त हो जाती है और नदी जलाशय या बड़ी झील में बदल जाती है। बांध के नीचे से नदी का नया प्रवाह प्रारंभ होता है। यह व्यवस्था प्रवाह और बायोडायवर्सिटी को हानि पहुँचाती है। स्टाप डैमों द्वारा भी प्रवाह को समान प्रकार की हानि पहुँचाई जाती है। 

विशेष टीप - बरसात के बाद अनेक नदियों का प्रवाह समाप्त हो जाता है। प्रवाह के खत्म होने का अर्थ यह नहीं है कि भूजल खत्म हो गया है। उसका अर्थ है कि भूजल का स्तर नदी तल के नीचे उतर गया है। इस स्थिति में भी नदी-तल के नीचे-नीचे भूजल का प्रवाह बना रहता है। यह अस्थायी स्थिति है। मानसून सीजन में यह स्थिति पलट जाती है और नदी फिर से बहने लगती है। 

 

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