लेखक
नदियों को मारो मत,
निर्मल ही रहने दो।
अविरल तो बहने दो
जीयो और जीने दो।
हिमधर को रेती से,
विषधर को खेती से,
जोड़ो मत नदियों को,
सरगम को तोड़ो मत।
सरगम गर टूटी तो,
टूटेंगे छंद कई,
रुठेंगे रंग कई,
उभरेंगे द्वंद्व कई।
नदियों को मारो मत...
तरुवर की छांव तले।
पालों की सीलेंगे,
बाढ़ों को पीलेंगे,
जोहड़ को कहने दो।
गंगा से सीखें हम,
नदियां हैं माता क्यों,
रीती क्यों,जी ली ज्योंअरवरी को कहने दो।।
नदियों को मारो मत....