नियंत्रण हाथ में रखना चाहते हैं नौकरशाह

Submitted by admin on Sat, 01/23/2010 - 16:54
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दैनिक हिन्दुस्तान
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का लेखा-जोखा के तहत हम नरेगा की केंद्रीय समिति के सदस्य प्रो. ज्यां द्रेज से बातचीत यहां प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका ई-मेल इंटरव्यू किया है वाई.एन.झा ने.

जमीनी हालत

प्रो. ज्यां द्रेज नरेगा शुरु होने के समय से ही झारखंड में सदल बल डेरा डाले हुए हैं। झारखंड ऐसा प्रदेश है जहां नरेगा बदतर स्तर तक असफल है। इसे लेकर यहां कई हत्याएं भी हो चुकी हैं। जिसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर पर सुनाई दी। नरेगा को लेकर न यहां कोई सोच और समझ है और न ही इसे जमीनी स्तर पर लागू करनेवाली संस्था पंचायत कार्यरत है। लेकिन प्रो. द्रेज इससे निराश नजर नहीं आते। वे हालत में सुधार के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं।

देश में नरेगा की वर्तमान स्थिति क्या है? क्या हम इसे सफल कह सकते हैं?

आज नरेगा को सफल कहा जा रहा है क्योंकि यह सार्वजनिक धन खर्च करने के वर्तमान मनोभावों के अनुकूल है जिसे आर्थिक मंदी से निपटने के जरूरी उपायों में से एक कहा जाता है। इसे हाल में संपन्न लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की अप्रत्याशित सफलता के लिए सुविधापूर्ण तर्क के रुप में भी देखा जाता है। लेकिन नरेगा की इस गुलाबी तस्वीर में कोई ठोस तत्व नहीं है। कार्यक्रम आज भी कदम-दर-कदम संघर्ष कर रहा है। इसके सफल होने की अच्छी संभावना है लेकिन इसे अभी से ही सफल कहना जल्दबाजी होगी।

नरेगा को लेकर राज्यों की रैकिंग आप किस तरह करेंगे?

इस तरह की रैकिंग करने के लिए कोई तरीका बनाना असंभव है क्योंकि सरकारी आंकड़े अविश्वसनीय हैं। अपने सीमित अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि राजस्थान अन्य राज्यों से काफी आगे हैं। हालांकि कुछ अन्य प्रदेश, जैसे दक्षिणी राज्य भी नरेगा में अच्छी प्रगति कर रहे हैं। बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे राज्यों में इस पर स्वार्थी तत्व कब्जा कर लेते हैं या रुकावटें डालते हैं।

इस रैकिंग में सबसे नीचे कौन से राज्य हैं?

झारखंड में स्थिति सचमुच काफी खराब है और मुझे उम्मीद है कि कोई अन्य राज्य इससे अधिक खराब नहीं कर रहा होगा। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि झारखंड में भी परिवर्तन के कुछ सकारात्मक संकेत मिले हैं। उदाहरण के लिए न्यूनतम मजदूरी का भुगतान हो रहा है और अब काम की गुणवत्ता भी पहले से सुधरी है।

क्या आम चुनाव में नरेगा की सफलता वोट में तब्दील हुई? यदि हां तो किस हद तक?

इसका संक्षिप्त उत्तर है, मैं नहीं जानता और मै नहीं सोचता कि कोई भी जानता होगा। मेरी सोच है कि नरेगा ने यूपीए सरकार के लिए कुछ गुडविल अर्जित किया। हालांकि मतदाताओं के पास इसकी गड़बड़ियों से नाराज होने के भी बहुत से कारण थे। इसलिए कहना कठिन है कि उनके मतों को इसने प्रभावित किया।

नरेगा के कार्यान्वयन से आप संतुष्ट हैं? यदि नहीं, तो सुधार के क्या उपाय किए जाने चाहिए?

पहली प्राथमिकता तो एक मजबूत शिकायत निवारण मशीनरी की स्थापना है। केंद्र और राज्य सरकारों ने कानून में शामिल जवाबदेही संबंधी प्रावधानों को या तो नजरअंदाज किया है या महत्व नहीं दिया है। उदाहरण के लिए धारा 25 के अनुसार कानून के तहत अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करने वाले किसी भी व्यक्ति पर जुर्माना किया जा सकता है। लेकिन दो मामलों को छोड़ कर इसका कभी उपयोग नहीं किया गया। इसी तरह धारा 30 को भी नजरअंदाज किया गया, जिसके अनुसार नरेगा मजदूरों को मजदूरी भुगतान में देरी होने पर मुआवजा देने का प्रावधान है। राज्य सरकारों ने धारा 19 का भी उल्लंघन किया जिसके तहत शिकायत निवारण नियम बनाए जाने थे।

जवाबदेही से पीछे हटने के सरकारी रवैये का एक और उदाहरण केंद्रीय नियोजन गारंटी परिषद का लकवाग्रस्त होना है। नौकरशाह नरेगा को एक मासूम योजना बनाना चाहते हैं और इसके नियंत्रण की चाबी अपने हाथ में रखना चाहते हैं।