लेखक
छत्तीसगढ़ में फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से विकलांग हो रहे लोग
तमड़ी शंकर (35 वर्ष) का पैर खराब हो गया है। खेती-बाड़ी का काम करने वाले शंकर अब कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है। उसके शरीर में दर्द बना रहता है। कुछ ऐसा ही हाल कोरसे मुतैया, पेंदरल बायको और तमड़ी लक्ष्मैया का है। इन सभी की उम्र करीब-करीब एक जैसी ही है और यह सभी आदिवासी बहुल इलाके भोपालपटनम से तीन किमी दूर गुल्लापेटा पंचायत के गेर्रागुड़ा गाँव में रहते हैं।
इस गाँव में पाँच नलकूप और चार कुएँ हैं। इनमें से सभी नलकूपों और कुओं में फ्लोराइडयुक्त पानी निकलता है। यही कारण है गेर्रागुड़ा गाँव में बच्चों के दाँत खराब हो गए हैं। जवानों के चेहरे पर झुर्रियाँ और पीठ पर कूबड़ निकल आये हैं। सरकारी तंत्र की उपेक्षा ने इन ग्रामीणों का जीवन नरक से बदतर बना दिया है।
जानकारों का कहना है कि डेढ़ पीपीएम से अधिक फ्लोराइड की मौजूदगी को खतरनाक माना गया है। गेर्रागुड़ा में डेढ़ से दो पीपीएम तक इसकी मौजूदगी का पता चला है और लोगों में इसका खतरनाक असर साफ दिख रहा है।
गेर्रागुड़ा के भाजपा नेता नीलम गणपत बताते हैं कि उनके जोड़ों में भी एक साल से दर्द की शिकायत है। वे रोज भोपालपटनम जाकर 20 लीटर पानी पीने के लिये लाते हैं, लेकिन गाँव के सम्पन्न लोग ही ऐसा कर सकते हैं। गरीब लोगों को तो गाँव में मौजूद जलस्रोंतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। सरकारी तंत्र हमारी दशा सुधारने के लिये कोई प्रयास नहीं कर रहा है। नीलम जिस पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, पिछले 13 वर्षों से छत्तीसगढ़ में उसी की सरकार है।
कुछ ऐसी ही स्थिति छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के रामानुजनगर विकासखण्ड के हनुमानगढ़ इलाके की भी है। लगभग 1000 की आबादी वाला यह एक ऐसा गाँव है जहाँ के हरिजन मोहल्ले की आधी आबादी विकलांग है। यह विकलांगता न तो पोलियो के कारण हुआ है और न ही कुपोषण इसका जिम्मेदार है।
दरअसल हनुमानगढ़ के पानी में फ्लोराइड, सल्फर, फास्फोरस और अन्य रासायनिक तत्वों की मात्रा अधिक है। जो यहाँ के लोगों के लिये जहर का काम कर रहा है। बच्चों पर तो फ्लोरोसिस का प्रभाव 8 से 14 साल की उम्र में ही दिखने लगा है। शायद आपको यह जानकर हैरानी हो कि इस गाँव के लोग फ्लोराइड युक्त पानी एक दो वर्षों से नहीं बल्कि विगत 20 वर्षों से उपयोग कर रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता सुनील अग्रवाल कहते हैं कि पीएचई विभाग की गैर ज़िम्मेदाराना हरकत के कारण लोगों का जीवन बर्बाद हो गया हैं क्योंकि विभाग ने वहाँ बिना जाँच परख के हैण्डपम्प लगवाया था। इस सम्बन्ध में कई बार प्रशासन को अवगत भी कराया गया लेकिन नतीजा सिफर रहा है।
यूनीसेफ की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर नजर डाले तो इस समय पूरे भारत के 20 राज्यों के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लाखों लोग फ्लोराइड युक्त पानी के सेवन से फ्लोरोसिस के शिकार हैं। हालांकि केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के तहत नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एडं कंट्रोल ऑफ फ्लोरोसिस के तहत देश के 17 राज्यों के 100 जिलों में एक विशेष योजना चलाई है।
जहाँ इन मामलों पर बारीकियों से नजर रखी जा सके। मंत्रालय के अनुसार इस वक्त देश के 19 राज्यों के करीब 230 जिले इससे प्रभावित हैं जो चिन्ता की बात है।
छत्तीसगढ़ की बात करें तो राज्य में सर्वाधिक प्रभावित ज़िलों मे बीजापुर है जहाँ 31 कस्बों के हज़ारों ग्रामीण फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग में 7 ग्राम, रायगढ़ में 6 ग्राम कोरबा में 6 ग्राम और बिलासपुर का एक ग्राम इसकी चपेट में है।
वर्ष 2013 में छत्तीसगढ़ विधानसभा में कांग्रेस विधायक प्रेमसाय सिंह टेकाम को तत्कालीन पीएचई मंत्री केदार कश्यप ने यह जानकारी देते हुए बताया था कि प्रदेश के राजनांदगाँव जिले की 21 बस्तियों में पेयजल में आर्सेनिक की मात्रा मानक से अधिक मिलने की शिकायतें मिली हैं। इसके अलावा 523 बस्तियों में भूजल में फ्लोराइड की मात्रा मानक से अधिक पाई गई है। इन स्थानों पर जल शोधन संयंत्रों, हैण्डपम्प, नल-जल या जल प्रदाय योजनाओं से पेयजल की व्यवस्था की जा रही है।
इसके साथ ही गरियाबंद जिले के 8, धमतरी जिले की 29, दुर्ग जिले की 7 और बालोद जिले में 29 बस्तियों का पेयजल प्रदूषित पाया गया है। बेमेतरा में 1, बस्तर में 92, कोंडागाँव में 40, कांकेर में 57, बीजापुर में 06, कोरबा में 43 , रायगढ़ में 07, सरगुजा में 81, कोरिया में 10, सूरजपुर में 46 और बलरामपुर जिले में 65 जगहों पर फ्लोराइडयुक्त पानी पाया गया है।
रायगढ़ ज़िले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी एच.एस. उरांव की मानें तो ज़िले के तमनार विकासखण्ड के पाँच ग्रामों के कुल 43 लोग फ्लोरोसिस बीमारी से पीड़ित पाये गए हैं। उरांव बताते हैं कि दूषित हैण्डपम्पों को बन्द कर दिया गया है और नए हैण्डपम्प लगाए गए हैं।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन अभियन्ता वी के उर्मलिया बताते हैं बीजापुर ज़िले के 5 ग्राम भोपालपट्टनम, रालापल्ली, गोल्लागुडा, गुलापेंटा एवं गोटाईगुडा क्षेत्र में 3 से 3.5 मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोरोसिस की मात्रा पाई गई है, जिससे आंशिक रूप से ग्रामीण प्रभावित हैं। अब 6 किमी दूर स्थित इंद्रावती नदी से पाइप लाइन बिछाकर प्रभावित ग्रामों में जल आपूर्ति किये जाने की कार्य योजना तैयार की जा रही है। यहाँ याद रखना जरूरी है कि भारत सरकार ने 1 मिली ग्राम से अधिक मात्रा को शरीर के लिये हानिकारक माना है।
राज्य के अंबिकापुर में भी हैण्डपम्पों से निकल रहे पानी में फ्लोराइड पाया गया है। शहर के वार्ड क्रमांक 40 में दो हैण्डपम्पों में फ्लोराइड की पुष्टि होने के बाद भी लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। अंबिकापुर के लखनपुर और उदयपुर विकासखण्ड में भी दर्जनों हैण्डपम्पों में फ्लोराइड पाये जाने के बाद लोकस्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाए हैं। जहाँ प्लांट नहीं लग पाये हैं, वहाँ हैण्डपम्प का हैण्डल निकाल लिया गया है।
जिले के पीएचई विभाग के चीफ केमिस्ट के.के.सिन्हा बताते हैं कि शिविर के दौरान हैण्डपम्पों के पानी की जाँच की गई थी, तब जल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा पाई गई। जिन पम्पों में फ्लोराइड पाया गया है, उन्हें दो वर्ष पूर्व ही लगाया गया था, इसलिये लोगों के स्वास्थ्य पर विशेष कुप्रभाव नहीं पड़ा है।
काफी लम्बे समय तक अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के सेवन से व्यक्ति में तमाम प्रकार की शारीरिक व्याधियाँ होती हैं। शरीर की हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। पैरों की हड्डियाँ धनुषाकार की होने लगती हैं। कमर झुक जाती है। दाँतो का रंग पहले पीला फिर काला होने लगता है। उनके टूटकर गिरने का खतरा बढ़ जाता है। सूरजपुर जिले के रामानुजनगर के हनुमानगढ़ में इस कहर को देखा जा सकता है, जहाँ लोगों के हाथ पैरों की हड्डियाँ टेढ़ी हो गई हैं और लोग कष्ट भरा जीवन जीने को मजबूर हो गए हैं।बस्तर जिले में भी बाकेल गाँव के कुंगारगुड़ा मोहल्ला, अमलीगुड़ा, डोंगरकोड़ में स्थित हैण्डपम्पों का पानी पीने से ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ा है। अब जब लोगों के शरीर में विकृति आनी शुरू हो गई, तब स्थानीय प्रशासन ने कुंगारगुड़ा में चार, अमलीगुड़ा में पाँच और डोंगरकोड़ में एक हैण्डपम्प को सील कर दिया है।
बस्तर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अब्दुल रशीद बताते हैं कि इलाके के बच्चों और ग्रामीणों को देखकर लग रहा है कि वे लम्बे समय से फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन कर रहे हैं। पीएचई के कार्यपालन अभियन्ता एसके चंद्रा ने बताया कि बाकेल गाँव के 10 हैण्डपम्पों में एक पीपीएम से अधिक मात्रा में फ्लोराइड पाया गया है। हमने कलर मैंचिंग पद्धति से परीक्षण किया है। इसकी पुष्टि के लिये हमने जल का सैम्पल दुर्ग स्थित विभागीय प्रयोगशाला और नागपुर स्थित नेशनल एंवायरमेंट इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट (नीरी) में भेजा है।
डॉ. अब्दुल रशीद के अनुसार यदि एक लीटर पानी में एक मिलीग्राम से अधिक फ्लोराइड होने पर यह शरीर को प्रभावित करने लगता है। काफी लम्बे समय तक अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पानी के सेवन से व्यक्ति में तमाम प्रकार की शारीरिक व्याधियाँ होती हैं।
शरीर की हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। पैरों की हड्डियाँ धनुषाकार की होने लगती हैं। कमर झुक जाती है। दाँतो का रंग पहले पीला फिर काला होने लगता है। उनके टूटकर गिरने का खतरा बढ़ जाता है। सूरजपुर जिले के रामानुजनगर के हनुमानगढ़ में इस कहर को देखा जा सकता है, जहाँ लोगों के हाथ पैरों की हड्डियाँ टेढ़ी हो गई हैं और लोग कष्ट भरा जीवन जीने को मजबूर हो गए हैं।
कोरबा जिले में भी आमाटिकरा, फुलसर, कोरबी, कौआताल जैसे इलाकों में पानी में फ्लोराइड पाया गया है। यहाँ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने डकवेल के जरिए समस्या का समाधान करने की कोशिश की है। पीएचई के कार्यपालन अभियन्ता एमके मिश्रा बताते हैं कि हमने फ्लोराइड प्रभावित इलाकों में उन कुओं का चयन किया, जो उथले थे और वहाँ पर्याप्त पानी भी था। उन कुओं पर डकवेल की स्थापना की गई है। हमारे पास यही सबसे सुरक्षित व आसान तरीका था, लोगों को स्वच्छ पीने योग्य पानी उपलब्ध करवाने का।
यह तो प्रदेश की वो तस्वीर है, जो सरकारी आँकड़ों के जरिए खींची गई है। लेकिन हकीकत ज्यादा भयावह हो सकती है। सूबे के सुदूर अंचलों में पीने के लिये स्वच्छ व मानक जल की अनुपलब्धता यही बताती है कि ज़मीनी सच्चाई दिल दहलाने वाली हो सकती है।
इसका सबसे बड़ा कारण यह भी है कि सरकार अभी तक पीने के पानी जैसे अहम मुद्दे पर कोई ठोस योजना नहीं बना पाई है। बस्तर जैसे इलाकों में तो नक्सलवाद का बहाना बनाकर एक हद तक बचा सकता है, लेकिन कोरबा, अंबिकापुर, बिलासपुर जैसे इलाकों को लेकर क्या सरकार के पास कोई जबाव है?