पानी तेरे कितने रंग

Submitted by admin on Sun, 10/04/2009 - 10:16
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yahoo jagran

देश में कम बारिश होना जितनी बड़ी समस्या है उससे कहीं अधिक बड़ी समस्या है ज्यादा बारिश हो जाना। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल जुलाई तक देश के विभिन्न इलाकों में आई बाढ़ में करीब 992 लोगों की मौत हो चुकी है। हजारों बेघर हुए हैं। सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि बर्बाद हुई है।बाढ़ का प्रभाव सबसे ज्यादा बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम पर पड़ा है। पश्चिम बंगाल में इस महीने की शुरुआत से अब तक 21 हजार लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। यहां के पांच हजार 103 गांव और 10 हजार एकड़ कृषि भूमि इससे बर्बाद हो गई।

देश को आजाद हुए 62 साल हो चुके हैं। इस दौरान उसने सूचना, प्रौद्योगिकी और औद्योगिक उत्पादन जैसे कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व सफलता हासिल की। लेकिन पानी के प्रबंधन के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए।

यही कारण है कि हमारे किसान आज भी मानसून पर निर्भर हैं। भारत इस समस्या का हल नहीं खोज सका। पानी नहीं बरसता तो हाहाकार मच जाता है, और बरसे तो भी। यह जल के कुप्रबंधन का ही नतीजा है कि हर दो तीन वर्षो में मानसून सरकार के छक्के छुड़ा देता है। लेकिन किसी सरकार ने इससे सबक लेने की जरूरत नहीं समझी।

देश में करीब चार करोड़ 50 लाख किसान ऐसे हैं, जो मानसून पर निर्भर हैं। इस साल जून-सितंबर के मानसून सीजन में इतनी कम बारिश हुई, जितनी पिछले कई दशक से नहीं हुई। देश के करीब 604 जिले यानी करीब आधा भारत सूखे से प्रभावित है।

देश के सबसे गरीब प्रदेशों में एक बिहार ने 38 जिलों में 26 में सूखा को घोषित किया है। एक करोड़ 80 लाख की आबादी वाले उत्तर प्रदेश ने धान की फसल के अनुमान में 60 फीसदी कटौती की है। रबी की फसल के भी खराब रहने के अनुमान है। इसका कारण ये है कि ज्यादातर पानी के स्रोतों में कम पानी है।मानूसन सत्र के अंत में हुई बारिश से कुछ राहत जरूर मिलेगी। लेकिन इससे किसानों कोई विशेष फायदा नहीं होगा। किसानों के आत्महत्या करने की खबरें फिर आने लगी हैं।

पिछले महीने आंध्र प्रदेश में 20 किसानों ने आत्महत्या कर ली। यह संख्या बढ़ भी सकती है।

हैदराबाद के पुनिया राव ने 16 एकड़ में कपास बोया है। उन्होंने कहा कि यदि फसल खराब होती है तो मेरे ऊपर दो लाख का कर्ज चढ़ जाएगा। मैं मजदूरी करके भी इसे नहीं चुका पाऊंगा। अब मुझे मरने के बाद ही मुक्ति मिलेगी।

देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान 18 फीसदी है। 1990 में यह 30 फीसदी था। इतना महत्वपूर्ण क्षेत्र होने के बावजूद देश का दुर्भाग्य देखिए कि यह महज 15 दिन की बढि़या बारिश पर निर्भर करता है।

लेकिन देश में कम बारिश होना जितनी बड़ी समस्या है उससे कहीं अधिक बड़ी समस्या है ज्यादा बारिश हो जाना। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल जुलाई तक देश के विभिन्न इलाकों में आई बाढ़ में करीब 992 लोगों की मौत हो चुकी है। हजारों बेघर हुए हैं। सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि बर्बाद हुई है।

बाढ़ का प्रभाव सबसे ज्यादा बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम पर पड़ा है। पश्चिम बंगाल में इस महीने की शुरुआत से अब तक 21 हजार लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। यहां के पांच हजार 103 गांव और 10 हजार एकड़ कृषि भूमि इससे बर्बाद हो गई। बिहार में बाढ़ ने तीन लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया है।

विडंबना देखिए कि गया और नालंदा जैसे क्षेत्र जो जून जुलाई तक गंभीर सूखा महसूस कर रहे थे, वहां बाढ़ ने सबसे ज्यादा कहर बरपाया।

 

 

जरूरत प्रबंधन की


देश की आबादी 2050 तक करीब 17 अरब पहुंचने के आसार हैं। पानी के कुप्रबंधन की समस्या से अगर भारत जल्द न निपटा तो भविष्य में स्थितियां विकराल हो सकती हैं। पानी के प्रबंधन में भारत की जनसंख्या और गरीबी बड़ी चुनौतियां हैं।

पानी को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के बीच विवाद इस समस्या को और गहरा सकती है। सरकार को निश्चित ही इस दिशा में गंभीरता पूर्वक कदम उठाने होंगे।

Tags- Water Resources, water conflicts, flood, drought, water resources management