पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवाहरत धाराओं का निम्नलिखित उद्देश्यों हेतु सफल प्रयोग किया जा सकता है –
निचले क्षेत्रों में छोटी-छोटी आवरित नालियों (गूल) द्वारा सिंचाई की जा सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों में यह व्यवस्था लागू है, परन्तु वर्तमान परिस्थितियों मे इन जल-धाराओं के प्रवाह में कमी तथा इनके रख-रखाव में कमी के कारण वर्षा ऋतु के पूर्व एवं बाद में सिंचाई के साधन की कमी से गम्भीर समस्या पैदा होती है। इसके समाधान हेतु जल-धाराओं को गहरा करके इनमें आंशिक रूप से जल-संचयन करके निचले क्षेत्रों में सिंचाई की जा सकती है।
उचित स्थानों पर पनचक्की का विकास व कार्यान्वयन भी किया जा सकता है। जल धाराओं के प्रवाह में कमी एवं रूकावट के कारण इन मशीनों के चलने में भी गम्भीर समस्या पैदा हो गयी है। ऊचें पर्वतीय क्षेत्रों में जहॉं पर पर्याप्त मात्रा में लगातार पानी उपलब्ध है, वहॉं पर सूक्ष्म विद्युत शक्ति का विकास किया जा सकता है, जिससे विद्युत की कुछ समस्या का निराकरण हो सकता है। ऐसे नये संयत्रों का विकास करने के लिए स्रोत की क्षमता एवं उपभोक्ता की मांग की दृष्टि से गहन सर्वेक्षण करना आवश्यक होगा। इन संयत्रों को लगाने तथा उत्पन्न जल-विद्युत के वितरण में अधिक धन की आवश्यकता होगी तथा इसी कारण इसके कार्यान्वयन में गम्भीर योजना की आवश्यकता होगी।