पर्यावरण किसी भी सरकार के लिये कभी भी बहुत अहम नहीं रहा है। हर सरकार के लिये विकास प्राथमिकता रहा है। वह चाहे पर्यावरण की कीमत पर हो या दूसरी कीमतों पर।
किसी निजी या सरकारी प्रोजेक्ट के लिये पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाना और तालाबों को पाटना तो खैर आम बात है।
पर्यावरण की इस तरह की अनदेखी का ही परिणाम है कि आज हम जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम झेल रहे हैं। समुद्र के किनारे बसे गाँव जलस्तर बढ़ने के कारण सागर में समा रहे हैं, तो समुद्र से दूर स्थित गाँवों में पानी की किल्लत दिनोंदिन बढ़ रही है। देश भर में बारिश का पैटर्न बदल रहा है। बुन्देलखण्ड और महाराष्ट्र के लातूर में पानी की किल्लत का भायवह रूप हम देख चुके हैं।
पर्यावरणीय अपराध को लेकर सरकार की अनदेखी की एक बानगी गृह मंत्रालय के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के वर्ष 2014 से पहले के आँकड़ों में भी देखी जा सकती है।
पर्यावरण और पानी जैसे संगीन मुद्दे को लेकर होने वाले अपराध के लिये वर्ष 2013 तक नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) अलग से कोई श्रेणी नहीं रखता था। इनसे जुड़े आपराधिक मामलों को ‘अन्य’ मामलों की श्रेणी में धकेल दिया जाता था।
ऐसा होने से इन मामलों पर न तो कभी पर्यावरणविदों कि नजर जाती थी और न ही इस विषय पर काम करने वाले संगठनों की। अन्य श्रेणी में रखे जाने के कारण यह भी पता नहीं चल पाता था कि एक वर्ष में पर्यावरण से जुड़े कितने आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। मसलन एनसीआरबी के मुताबिक, वर्ष 2013 में अन्य श्रेणी में भारत में कुल 10,67,024 मामले दर्ज किये गए थे। अब इसमें यह पता लगाना नामुमकिन है कि पर्यावरण से जुड़े कितने आपराधिक मामले वर्ष 2013 में दर्ज किये गए।
वर्ष 2014 से नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने वायु प्रदूषण, वन्यजीव के प्रति अपराध, पर्यावरण और पानी से जुड़े आपराधिक मामलों को एन्वायरनमेंटल ऑफेंस नाम की अलग श्रेणी में रखने का निर्णय लिया। अलग श्रेणी बनाए जाने से कम से कम सरकारी तौर पर यह पता चला है कि एक साल में पर्यावरण से जुड़े कितने आपराधिक मामले दर्ज हुए।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, वर्ष 2014 से पहले तक पर्यावरण से जुड़े आपराधिक मामलों को अन्य श्रेणी में रखा जाता था। हम लोग समय-समय पर नई-नई चीजें जोड़ते रहते हैं। इसी कड़ी में वर्ष 2014 से पर्यावरण से जुड़े अपराधों के लिये अलग श्रेणी बनाने का फैसला लिया गया।
अलग श्रेणी बनने से अब सीधे तौर पर पता चल पाता है कि पानी, हवा, वन व पर्यावरण से जुड़े अन्य मामलों में कितने आपराधिक केस हर साल दर्ज होते हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 में देश भर में पर्यावरणीय अपराध के कुल 5835 मामले दर्ज किये गए जिनमें से सबसे अधिक मामले राजस्थान में दर्ज किये गए। राजस्थान में कुल 2927 आपराधिक मामले दर्ज किये गए जो कुल मामलों का 50.2 प्रतिशत है। 1597 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे और 249 मामलों के साथ कर्नाटक तीसरे पायदान पर रहा।
पर्यावरणीय अपराध में फॉरेस्ट एक्ट, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, एन्वायरनमेंट प्रोटेक्शन प्रोटेक्शन एक्ट, एयर एक्ट अधिनियम और वाटर एक्ट के तहत दर्ज किये गए मामले शामिल किये गए हैं।
एक्ट के अन्तर्गत दर्ज किये गए मामलों को अलग-अलग कर देखा जाये, तो फॉरेस्ट एक्ट के तहत सबसे अधिक 4901 मामले दर्ज किये गए। वाटर एक्ट के तहत कुल 15 मामले दर्ज किये गए हैं। एनसीआरबी के आँकड़े बताते हैं कि 5835 मामलों में कुल 8684 लोगों को दबोचा गया जिनमें से पानी से जुड़े अपराधों में गिरफ्तार होने वालों की संख्या 88 है।
वर्ष 2014 के बाद से पर्यावरण से जुड़े आपराधिक मामलों में गिरावट आई है, जो राहत देने वाली खबर है।
एनसीआरबी के आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में पर्यावरणीय अपराध के कुल 5156 मामले दर्ज किये गए, जो वर्ष 2014 की तुलना में करीब 700 कम हैं। इन मामलों में कुल 8034 लोगों को सलाखों के पीछे डाला गया। आँकड़ों के अनुसार वन अधिनियम के तहत 3968 मामले दर्ज किये गए। वहीं, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत 829, एन्वायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट के अन्तर्गत 299, एयर पॉल्यूशन एक्ट में 50 और वाटर एक्ट में 10 मामले दर्ज हुए।
पर्यावरणीय अपराध के मामले में वर्ष 2015 में भी राजस्थान अव्वल रहा। राजस्थान में कुल 20174 दर्ज किये गए। 1779 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे और 233 मामलों के साथ झारखण्ड तीसरे स्थान पर रहा। कर्नाटक में पर्यावरणीय अपराध के 211 और आन्ध्र प्रदेश में 181 मामले दर्ज किये गए।
वर्ष 2016 के आँकड़ों पर गौर करें, तो इस साल भी पर्यावरण से जुड़े अपराधों में कमी आई है लेकिन लम्बित मामले चिन्ता का सबब है। एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2016 में पर्यावरण से जुड़े कुल 4710 मामले दर्ज किये गए, जो पिछले वर्ष यानी वर्ष 2015 की तुलना में करीब 400 कम हैं, लेकिन वन्यजीवों के खिलाफ होने वाले अपराधों में बढ़ोत्तरी हुई है। वन्यजीवों पर अपराध को लेकर वर्ष 2015 में 829 मामले दर्ज किये गए थे। वर्ष 2016 में बढ़कर 852 पर पहुँच गए। हालांकि, अन्य मामलों मसलन वन सुरक्षा, पर्यावरण सुरक्षा और वायु प्रदूषण से जुड़े मामलों में कमी आई है।
पर्यावरण से जुड़े अपराधों में कमी निश्चित तौर पर राहत देने वाली खबर है लेकिन इन मामलों में अपराध साबित होने और सजा दिलाने के जो आँकड़े मिले हैं, वे चिन्ता में डालने वाले हैं। एनसीआरबी के ही आँकड़े बता रहे हैं कि इन अपराधों (सभी मिलाकर) से जुड़े 85.2 फीसद मामले लम्बित हैं। वायु प्रदूषण से जुड़े सबसे अधिक 98.6 मामले अब भी लम्बित हैं, जबकि पानी से जुड़े सबसे कम 79 फीसद मामले लम्बित बताए जा रहे हैं।
आँकड़े बताते हैं कि कुल दर्ज 4710 मामलों में गिरफ्तार 8387 लोगों में से 7289 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई। इनमें से 1138 लोग बरी हो गए।
गौरतलब है कि ये सभी मामले फॉरेस्ट एक्ट 1927, वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972, एन्वायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986, एयर एक्ट 1981 और वाटर एक्ट 1974 के तहत दर्ज किये गए हैं।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज होने पर अपराधी को 5 साल की सजा व जुर्माना का प्रावधान है। वहीं, भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत अपराध साबित होने पर अपराधी को महज 6 महीने की सजा व 500 रुपए जुर्माना लगाया जाता है। वन्यजीवों के खिलाफ अपराध के मामलों में आरोप साबित होने पर अपराधी को 25 हजार रुपए जुर्माना और 3 साल की सजा हो सकती है। जल प्रदूषण के दोषियों को महज तीन महीने की कैद व मामूली जुर्माना का प्रावधान है। इस तरह हम देख सकते हैं कि पर्यावरणीय अपराधों की सजा कितनी हल्की-फुल्की है। हल्की सजा व जुर्माने का प्रावधान होने के कारण ही पर्यावरणीय अपराध करने वालों को भय नहीं रहता है।
पिछले साल यमुना डूब क्षेत्र में श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा अन्तरराष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजित किया जाना एक उदाहरण है। इस कार्यक्रम के कारण यमुना को भारी नुकसान होने की आंशका के बावजूद वहाँ भव्य आयोजन किया गया था। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा था कि कार्यक्रम से यमुना को भारी नुकसान हुआ है और श्री श्री रविशंकर की संस्था पर 5 करोड़ रुपए जुर्माना लगाया था।
पर्यावरणीय अपराधों को लेकर एक बड़ी दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोगों को नहीं पता कि किस तरह के अपराध इस श्रेणी में आते हैं। इस वजह से पर्यावरण के साथ खिलवाड़ होता रहता है और किसी को पता भी नहीं चलता है। मिसाल के तौर पर बिहार के गया के तालाबों को लिया जा सकता है। यहाँ के आधा दर्जन से अधिक तालाब पाट दिये गए हैं, लेकिन अब तक किसी ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई। सीवेज वेस्ट को प्राकृतिक तरीके से ट्रीट करने वाले ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स को अवैध तरीके से पाटकर वहाँ इमारतें बनाई जा रही हैं, लेकिन कहीं कोई हलचल नहीं हुई। ऐसे एक-दो नहीं दर्जनों मामले हैं।
यहाँ भी बता दें कि पर्यावरण संरक्षण व वन सुरक्षा से सम्बन्धित मामलों को सुलझाने के लिये सात साल पहले यानी 2010 में 18 अक्टूबर को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का गठन किया गया था। पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि इस साल जून तक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में 3500 मामले विचाराधीन थे। इनमें प्राधिकरण के प्रधान बेंच में 1600, पुणे बेंच में 543, भोपाल बेंच में 256, चेन्नई बेंच में 799 और कोलकाता बेंच में 407 मामले विचाराधीन थे।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल रूल्स 2011 की अनुच्छेद 18 के अनुसार प्राधिकरण में केस दायर होने के 6 महीने के भीतर मामले का निबटारा कर दिया जाना चाहिए।
पर्यावरणीय अपराधों की सुनवाई और सजा की रफ्तार में सुस्ती का ही परिणाम था कि कोलकाता के पर्यावरणविद सुभाष दत्ता को लगातार कई जनहित याचिकाएँ दायर करनी पड़ीं। इस वजह से कलकत्ता हाईकोर्ट को पृथक ग्रीन बेंच का गठन करना पड़ा। पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर सुभाष दत्ता अब तक करीब दो दर्जन जनहित याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट में दायर कर चुके हैं।
सुभाष दत्ता का कहना है कि पर्यावरण से जुड़े अपराधों को लेकर पुलिस कभी भी गम्भीर नहीं रहती है। वह कहते हैं कि पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर जो भी कानून हैं, उनमें सजा के प्रावधान बेहद कमजोर हैं, इसलिये अपराधियों में किसी तरह का भय नहीं रहता है।
सुभाष दत्ता की बातों का समर्थन पर्यावरणविद सौमेंद्र मोहन घोष भी करते हैं। उन्होंने कहा, ‘पर्यावरण से जुड़े अपराधों को लेकर पुलिस महकमे में एक एंटी पॉल्यूशन सेल भी है, लेकिन यह सेल निष्क्रिय रहता है। यह केवल तभी सक्रिय होता है जब प्रदूषण नियंत्रण सप्ताह मनाया जाता है।’
उन्होंने कोलकाता में प्रदूषण से जुड़े मामलों में पुलिस के रवैए को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब भी पुलिस के पास पर्यावरण से जुड़े अपराधों की शिकायत की जाती है, तो पुलिस का कहना होता है कि ऐसे मामले स्टेट पॉल्यूशन नियंत्रण बोर्ड के संज्ञान में लाये जाने चाहिए। वहीं दूसरे देशों में ऐसा नहीं होता है। वहाँ पुलिस पर्यावरणीय अपराधों को लेकर त्वरित कार्रवाई करती है।
घोष आगे कहते हैं, ‘अपने देश की पुलिस पर्यावरणीय अपराधों की संगीनता से बेखबर है और यही वजह है कि इस तरह के मामलों में पुलिस की कार्रवाई बेहद निराशाजनक होती है।’
विशेषज्ञों का कहना है कि केवल मामले दर्ज कर लेने और आरोपितों को गिरफ्तार किये जाने से कोई फायदा नहीं होने वाला है, इसके लिये कानून में भी आमुलचूल परिवर्तन की जरूरत है। कानून में सजा के सख्त प्रावधान लाये जाएँ, ताकि इस तरह के अपराध करने वालों को सीख मिले।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि मौजूदा कानून में सजा के जो भी प्रावधान हैं, अगर उनका भी कायदे से पालन किया जाये, तो फायदा पहुँचेगा।
सैंड्रप (साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रीवर्स एंड पीपल्स) के हिमांशु ठक्कर ने कहा, ‘हमारे देश में जो भी कानून हैं, अगर उनका भी पालन ईमानदारी से किया जाये, तो चीजें बदलेंगी। इस तरह के अपराधों में कमी आएगी और लोगों में जागरुकता भी फैलेगी।’
बहरहाल, पर्यावरण को लेकर होने वाले अपराधों को लेकर आम लोगों में जागरुकता की तो जरूरत है ही, साथ ही यह भी जरूरी है कि सरकार व पुलिस इसकी गम्भीरता को समझें। अन्य अपराधों की तरह ही पर्यावरणीय अपराधों को भी प्राथमिकता दी जाये और इससे जुड़े कानून में कठोर सजा के प्रावधान रखे जाएँ, ताकि पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। क्योंकि, पर्यावरण के नुकसान का असर मौजूदा पीढ़ी को जितना हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा आने वाली पीढ़ी को होगा और इस तरह के नुकसान की भरपाई मुमकिन भी नहीं है।
TAGS |
wildlife protection act 1972 in hindi, wildlife protection act 1972 salient features in hindi, wildlife protection act 1972 ppt in hindi, wildlife protection act 1972 summary in hindi, importance of wildlife protection act 1972 in hindi, wildlife protection act 1972 pdf in hindi, wildlife protection act 1972 in hindi, wildlife protection act ppt in hindi, objectives of wildlife protection act 1972 in hindi, forest act 1927 in hindi, indian forest act 1927 summary in hindi, indian forest act 1927 ppt in hindi, indian forest act 1927 in hindi, indian forest act 1927 in marathi, indian forest act 2006 in hindi, indian forest act 1980 in hindi, indian forest act 1972 in hindi, indian forest act 1865 in hindi, environment protection act 1986 in hindi, environment protection act 1986 ppt in hindi, environment protection act 1986 objectives in hindi, environment protection act 1986 summary in hindi, environment protection rules in hindi, environment protection act 1986 wikipedia in hindi, environment protection act 1986 pdf in hindi, environment protection act 1986 essay in hindi, salient features of environmental protection act 1986 in hindi, air act 1981 in hindi, air prevention and control of pollution act 1981 ppt in hindi, short note on air act 1981 in hindi, air prevention and control of pollution act 1981 rules in hindi, water prevention and control of pollution act 1981 in hindi, air prevention and control of pollution act 1981 wikipedia in hindi, air prevention and control of pollution act 1981 pdf in hindi, salient features of air pollution act 1981 in hindi, air prevention and control of pollution rules in hindi, water act 1974 in hindi, water act 1974 india in hindi, water act 1974 summary in hindi, water prevention and control of pollution act 1974 wikipedia in hindi, water act 1974 pdf in hindi, water prevention and control of pollution act 1974 ppt in hindi, salient features of water prevention and control of pollution act 1974 in hindi, air act 1981 in hindi, water act 1974 wiki in hindi, national green tribunal act 2010 in hindi, national green tribunal act 2010 ppt in hindi, salient features of national green tribunal act 2010 in hindi, national green tribunal act summary in hindi, national green tribunal cause list in hindi, national green tribunal daily orders in hindi, national green tribunal in hindi, ngt act 2017 in hindi, functions of national green tribunal in hindi, national green tribunal rules 2011 in hindi, ngt rules 2010 in hindi, national green tribunal act in hindi, national green tribunal chairman in hindi, national green tribunal cause list in hindi, national green tribunal judgements in hindi, functions of national green tribunal in hindi, national green tribunal in hindi, national green tribunal daily orders in hindi, national crime records bureau report 2017 in hindi, ncrb report 2016 pdf in hindi, national crime records bureau state wise in hindi, national crime records bureau 2017 in hindi, ncrb report 2017 pdf in hindi, ncrb recruitment 2016 in hindi, crime in india 2016 in hindi, crime in india statistics 2016 in hindi, causes of environmental crime in hindi, environmental crime definition in hindi, environmental crime pdf in hindi, environmental crime cases in hindi, environmental crimes in india, environmental crime articles in hindi, environmental crime statistics in hindi, environmental crime theories in hindi, What is meant by environmental criminology?, What is a green crime?, What is an example of state corporate crime?, What is environmental crime prevention?, What is Interactionism in criminology?, What is the Marxist criminology?, What is an environmental crime?, What is a green collar crime?, What are some corporate crimes?, What crimes are state crimes?, What is an example of situational crime prevention?, What is the meaning of defensible space?, How does symbolic Interactionism apply to family?, What is an Interactionist theory?, What is postmodernism in criminology?, what is instrumental Marxist?, What is the definition of environmental crime?, Who enforces the EPA?, What is a red collar crime?, What is pink collar crime?, What is a blue collar crime?, What is considered organized crime?, What are the five main types of crime?, What are the three different types of crime?, What are target hardening techniques?, What is situational choice theory?, What is the definition of natural surveillance?, What is the defensible space theory?. |