पीएम मोदी ने क्यों कहा साल में एक बार 'नदी उत्सव' मनाएं

Submitted by Shivendra on Mon, 09/27/2021 - 11:37
Source
नरेंद्र मोदी यूट्यूब

पीएम मोदी ने आज मन की बात पर नदियों को लेकर बड़ी बात की उन्होंने कहा  26 सितंबर को जब मन की बात होगा उस दिन एक और महत्वपूर्ण दिन होता है। वैसे तो हमें बहुत दिन याद रहते हैं और कुछ दिन तो तरह-तरह के त्यौहार भी मनाते हैं अगर आपके घर में नौजवान बेटा बेटी है तो उनसे पूछेंगे कि साल भर में कितने दिन आते है । तो वह आपको पूरी सूची दे देंगे। लेकिन एक दिन ऐसा भी आता है जिसे हम सबको याद रखना होगा। यह डे ऐसा है जो भारत की परंपराओं से बहुत  सुसंगत है सदियों से जिस परंपराओं से हम जुड़े हैं उस से जोड़ने वाला है 'ये है वर्ल्ड रिवर डे'। यानी विश्व नदी दिवस हमारे यहां कहा गया है "पिबन्ति नाद्ध स्वयमेय नाम्भ:" अर्थात नदियां अपना पानी खुद नहीं पीती बल्कि परोपकार के लिए देती है हमारे लिए नदियां एक भौतिक वस्तु नहीं है। हमारे लिए नदी एक जीवंत इकाई है ।और तभी तो हम नदियों को मां कहते हैं हमारे कितनी भी पर्व हो त्योहार हो , उत्सव हो, उमंग हो यह सभी  हमारी इन  माताओं के गोद में ही तो होते हैं। 

आप सब जानते ही हैं  माह का  जब महीना आता है। तो हमारे देश में बहुत लोग पूरे 1 महीने मां गंगा या किसी और नदी के किनारे कल्पवास करते हैं। अब तो यह परंपरा नहीं रही लेकिन पहले जमाने में यह परंपरा रही थी घर में स्नान करने से पहले नदियों की स्मरण करने की परंपरा  भले लुप्त हो गई हो या कहीं बहुत अल्प मात्रा में बची हो लेकिन एक बहुत बड़ी परंपरा थी जो प्रातः में ही स्नान करते समय ही विशाल भारत की  यात्रा करा देती थी। मानसिक यात्रा देश को कोने कोने से जोड़ने की प्रेरणा बन जाती थी। वो क्या था भारत मे स्नान करते समय एक श्लोक बोलने की पंरपरा रही है।

" गंगे!च यमुने!चैव गोदावरी!सरस्वती!नर्मदे सिंधु !कावेरी जलेअस्मिन! सन्निधि कुरू"।

पहले जमाने में हमारे बड़े इन श्लोकों बच्चों को याद कराते थे। इससे हमारे देश मे नदियों के प्रति आस्था पैदा होती थी और विशाल भारत का मानचित्र मन में अंकित हो जाता था नदियों के प्रति जुड़ाव बनता था जिस नदी को हम मां के रूप में जानते हैं और देखते हैं जीते हैं उस नदी के प्रति एक आस्था का भाव पैदा होता था। एकसंस्कार प्रक्रिया थी। उन्होंने कहा जब हमारे देश में  नदियों की महिमा पर बात कर रहे हैं तो सौभाविक रूप से हर कोई यह प्रश्न उठाएगा। और प्रश्नन उठाने का हक भी है।इसका जवाब देना हमारी जिम्मेवारी भी है कोई भी सवाल पूछेगा कि आप नदी के गीत गा रहे हो नदी को माँ कह रहे हो तो नदी प्रदूषित क्यों हो जाती है।

हमारे शास्त्रों में तो नदियों को जरा-सा भी प्रदूषित करने पर गलत बताया गया है और हमारी परंपराएं भी ऐसे नहीं है आप जानते हैं कि हमारे हिंदुस्तान का जब पश्चिमी हिस्सा है आजकल के राजस्थान गुजरात पानी की बहुत कमी है कई बार अकाल पड़ता है इसलिए अब वहां के समाज जीवन में एक नई परंपरा डिवेलप हुई है जैसे गुजरात में बारिश की शुरुआत होती है तो गुजरात में जल जिलानी एकादशी मनाते हैं मतलब कि आज के युग में हम जैसे कहते हैं 'कैच द रेन'। यह वही बात है जल के एक-एक बिंदु को अपने में समेटना जल जीलनी।

इसी प्रकार से बारिश के बहाव बिहार और पूर्व के हिस्सों में छठ पूजा का महापर्व बनाया जाता है मुझे उम्मीद है छठ पूजा को देखते हुए नदियों के किनारे घाटों की सफाई मरम्मत की तैयारी शुरू की गई है और नदियों को साफ रखने और उन को प्रदूषित करने का काम सबके प्रयास के सहयोग से कर ही सकते हैं नमामि गंगे मिशन भी आज आगे बढ़ रहा है इसमें सभी लोगों के प्रयास एक प्रकार से जल्द जागृति जन आंदोलन उसकी बहुत बड़ी भूमिका है साथियों जब नदी की बात हो रही है माँ गंगा की बात हो रही है। तो और एक बात पर भी आपका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहा हूं ।

जब बात नमामि गंगे की हो रही है तो जरूर इस पर आपका ध्यान गया होगा  हमारे नौजवानों को पक्का गया होगा आजकल एक विशेष ई ऑक्शन ई नीलामी चल रही है यह इलेक्ट्रॉनिक नीलामी उन उपहारों की हो रही है। जो मुझे समय-समय पर लोगों ने दिए इस नीलामी से जो पैसा आएगा वह नमामि गंगे अभियान के लिए ही समर्पित किया जाता है आप जिस आत्मीय भावना के साथ मुझे उपहार देते हैं उसी भावना को यह अभियान और मजबूत करता है ।पीएम मोदी ने  आगे कहा देश भर में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए पानी की स्वच्छता के लिए सरकार और समाज सेवी संगठन निरंतर कुछ न कुछ करते रहते हैं  आज से नहीं दशकों से चलता रहता कुछ लोग ऐसे  कामों के लिए अपने आप को समर्पित कर चुके और यही परंपरा यही आस्था हमारी  नदियों को बचाए हुए हैं और हिंदुस्तान के किसी भी कोने से जब ऐसी खबरें मेरे कान पर आती हैं ऐसे काम करने वालों के प्रति बड़ा आदर का भाव मेरे मन में चलता है और मेरा भी मन करता है वो बाते आपको बताऊँ देखिए।

तमिलनाडु के वेल्लोर और तिरूवन्नामलाई  जिले का एक उदाहरण देना चाहता हूं यहां एक नदी बहती है। उन्होंने कहा  नागा नदी ये नागा नदी बहुत पहले सुख चुकी थी। इसकी वजह से यहां का जल स्तर भी काफी नीचे चला गया था लेकिन वहां की महिलाओं ने बीड़ा उठाया वह अपनी नदियों को पुनर्जीवित करेंगे फिर क्या था उन्होंने लोगों को जोड़ा जनभागीदारी से नेहरे खोदी चेक डैम बनाएं रिचार्ज कुएं बनाये। आपको भी जानकार खुशी होगी साथियों कि वह नदी आज पानी से भर गई है और जब नदी पानी से भर जाती है और मन को इतना सुकून मिलता है कि मैंने भी इसका प्रत्यक्ष रूप से महसूस किया है आप में से बहुत से लोग जानते होंगे जिस साबरमती के तट पर महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम बनाया था पिछले कि दशकों में या साबरमती नदी सूख गई थी साल में 6 से 8 महीने पानी नजर ही नहीं आता था। लेकिन नर्मदा नदी और साबरमती नदी को जोड़ दिया  तो आप जब भी अहमदाबाद  जाओगे साबरमती नदी का पानी ऐसा मन को प्रफुल्लित करता है इसी तरह बहुत सारे काम  जैसे तमिलनाडु की महिलाएं कर रही है देश के अलग -अलग कोने में चल रहा है।

मैं तो जानता हूं कहीं  हमारे धार्मिक परंपरा से जुड़े कई संत गुरुजन हैं वे भी अपने आध्यात्मिक यात्रा के साथ साथ पानी के लिए नदी के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं कई नदियों के किनारे पेड़ लगाने का अभियान चला रहे हैं तो कहीं नदियों में बह रहे गंदे पानी को  रोका जा रहा है साथियों वर्ल्ड रिवर डे आज जब बना रहे हैं तो इस काम से समर्पित सब की सराहना करता हूं लेकिन  हर नदी के पास में रहने वाले लोगों को देशवासियों को मैं आग्रह करूंगा । देश के कोने कोने में  साल में एक बार  नदी उत्सव मनाना ही चाहिए मेरे प्यारे देशवासियों कभी भी  छोटी बात को छोटी चीज को छोटी मानने की गलती नहीं करनी चाहिए छोटे-छोटे प्रयासों से कभी-कभी तो बहुत बड़े बड़े परिवर्तन आते हैं  महात्मा गांधी के जीवन की तरफ हम देखेंगे हम हर पल में दूर करेंगे छोटी-छोटी बातों की उनके जीवन में कितनी बड़ी अहमियत थी और छोटी-छोटी बातों को लेकर के बड़े-बड़े संकल्पों को कैसे साकार किया था।

हमारे नौजवानों को यह जरूर  जानना जानना चाहिए। साफ सफाई के अभियान ने कैसे आजादी के आंदोलन को एक निरंतर ऊर्जा दी थी।यह महात्मा गांधी ही थे जिन्होंने स्वच्छता को जन आंदोलन बनाया था महात्मा गांधी ने स्वच्छता को स्वाधीनता के साथ जोड़ दिया था आज इतनी दशकों बाद स्वछता आंदोलन ने एक बार फिर  देश को एक बार फिर नए भारत के सपने के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। यह हमारी आदतों को बदलने का भी अभियान बन रहा है। और हम यह ना भूले स्वच्छता ना सिर्फ एक कार्यक्रम है स्वच्छता पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कार संक्रमण की एक जिम्मेवारी है और पीढ़ी दर पीढ़ी जब स्वच्छता का अभियान चलता है तब संपूर्ण समाज जीवन में स्वच्छता का स्वभाव बनता है और इसलिए यह 1 साल 2 साल एक सरकार दूसरी सरकार का विषय नहीं है।

पीढ़ी दर पीढ़ी हमें स्वच्छता के संबंध में सजगता से बिना रुके बिना थके बड़ी श्रद्धा के साथ जुड़े रहना है और स्वच्छता के अभियान पर चलाए रखना और मैंने पहले भी कहा था की स्वच्छता यह पूज्य बापू को यह देश की बहुत बड़ी श्रद्धांजलि है और यह सरदांजलि हमें हर बार देते रहना है लगातारदेते रहना है  साथियों  लोग जानते  हैं स्वच्छता के संबंध में कोई मैं कोई मौका छोड़ता  ही नहीं हूं और शायद इसीलिए हमारे मन की बात के श्रोता रमेश पटेल ने लिखा है हमें बापू से सीखते हुए इस आजादी के अमृत महोत्सव में आर्थिक स्वच्छता का संकल्प लेना चाहिए जिस जिस तरह शौचालय के निर्माण ने गरीबों की गरिमा बढ़ाई वैसे ही आर्थिक स्वच्छता गरीबों के अधिकार को सुनिश्चित करती है तथा उनका जीवन आसान बनाती है