गांव में पानी की वजह से कई कुंवारे रह गए नौजवान

Submitted by Shivendra on Tue, 06/28/2022 - 13:20

जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है, जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है क्या पानी की कहानी मात्र कहानी रह जाएगी।  जो सिर्फ लोगो की ज़ुबानी होगी या फिर कभी आने वाली पीढ़ी भी इस पानी की समस्या को भुला पाएगी। देखिए इसी पर हमारी यह खास रिपोर्ट।  

आज भी कई गाँव ऐसे हैं जहाँ विकास और विकास के रास्ते तो हैं लेकिन इन्ही रास्तों के किनारे बसे दर्जनों गांवों में पानी नहीं है गर्मी का पारा 48 डिग्री के पार होने के बावजूद भी पानी पाना मतलब कुरूक्षेत्र में जंग लड़ने के बराबर है।मानिकपुर ब्लाक के आधा सैकड़ा गांव में गर्मी आते ही पानी की समस्या खड़ी हो जाती है।  करोड़ों की लागत से बनाई गई पीने के पानी की टंकी महज ग्रामीणों के लिए मजाक है।  

पाठा में रहने वाले लगभग एक लाख आदिवासी परिवार गर्मी के दिनो मे पानी के लिए त्राहिमाम-त्राहिमाम करते हैं। आलम यह है इस तपन भरी 48 डिग्री तापमान की गर्मी में यहां के छोटे बच्चे, बूढ़े, दिव्यांग सभी पानी भरने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर  हैं।  पाठा मे पत्थरों और जंगलों के किनारे बने चोहड़ों से अशुद्ध पानी भर कर पीने को मजबूर हैं लोग इतना ही नहीं सुबह पानी भरने की चिंता मे ग्रामीण देर रात को ही पानी की तलाश में बैलगाड़ी से निकल पड़ते है।  

बता दें कि तहसील मानिकपुर के अंतर्गत आने वाले जमुनिहाई, गोपीपुर, खिचड़ी, बेलहा, एलाहा, उचाडीह गांव, अमचूर नेरुआ, कैलहा बहिलपुरवा जैसे दर्जनों गांवों के हजारों ग्रामीणों को पेयजल संकट की त्रासदी का सामना करना पड़ रहा है। शायद इसीलिए गांव के दर्जनों लड़के कुवांरे हैं और कोई अपनी बेटियों की शादी इन गांव में नही करना चाहता है। वहीं गांव की  लीलावती कहती हैं कि यहां ना बोरिंग है और ना ही नल। टैंकर आता है तो पानी लेने के लिए लोग लड़ते हैं।लाठी-डंडा भी चलता है।  उम्र बढ़ने के साथ ही हालत भी खराब है।  लड़के की शादी हो जाए तो बहूरिया के आने से आराम मिले।  लेकिन जिसके घर में पानी नहीं है उसके घर में कोई अपनी लड़की क्यों देगा।  

दरअसल,पानी भरने के लिए पाठा की इन महिलाओं और बच्चियों को 2 किलोमीटर आना और जाना पड़ता है मानिकपुर एसडीम प्रमेश श्रीवास्तव के आंकड़ों के मुताबिक पूरे ब्लाक में सरकारी पानी के तालाब 302 और सरकारी हैंडपंप 3796 हैं जहां कागजों में हैंडपंप चलने के घोड़े दौड़ाए जा रहे है।वहां तो कई सालों से हैंडपंप ना तो बना है और ना ही लगा है खास बात तो यह है कि इस गांव में एक ही प्रधान 15 साल से प्रधानी कर रहा है। और पूरे ग्राम पंचायत में 19 सरकारी हैंडपंप लगे हैं।   दरअसल कैलहा गांव मे 300 घर जिनके बीच 10 हैंडपंप लगे है।  जिनमे से 8 ही चल रहे  कोलान में 22 परिवार है जहां पर वास्तविकता में एक नल है  और वह भी 10 सालों से खराब पड़ा है. भीमपुर कालोनी में 25 परिवार है जहाँ 5 नल लगे है जिनमे 3 चल रहे।  टीका पुरवा मे 16 परिवार के बीच 2 नल हैं और दोनों चल रहे।  

अब जब 4 मज़रे वाले इस गांव में सरकारी घोड़ो का आंकड़ा ऐसा होगा तो फिर ऐसे लापरवाह प्रधान जो सरकारी खजाने को खाली कर रहे हैं और जनता को गुमराह कर रहे।  उन पर कड़ी कार्यवाही भी होनी चाहिए। अब सवाल ये उठता है कि जहाँ एक तरफ यूपी की योगी सरकार दावे पे दावे किये जा रही है वहीं दूसरी ओर लोग पीने के पानी के लिए तरस रहें हैं और दूर दराज से कड़कती धूप मे न जाने कितने किलोमीटर पैदल चलकर पानी ढो रहें हैं।