कभी देश की इकलौती कछुआ सेंचुरी उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी में स्थित थी। लेकिन मार्च 2020 में उसे डिनोटिफाई कर गंगा नदी में ही प्रयागराज के कोठारी गांव में मिर्जापुर और भदोही के 30 किलोमीटर के दायरे में शिफ्ट किया गया है। यानी गंगा एक्शन प्लान के तहत 1989 में चिन्हित की गई सेंचुरी का वाराणसी में कोई वजूद नही है
वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस सेंचुरी का एक मैनेजमेंट प्लान बनाया गया है जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना, देख रेख की व्यवस्था करना, अलग-अलग प्रजातियों के कछुओं को छोड़ने जैसी बातें शामिल है। वन बिभाग के SDO रणवीर मिश्रा ने बताया कि यहाँ करीब 460 कछुए लखनऊ कुकरेल लैब से लाये गए है
कछुओं पर काम करने वाली उत्तरप्रदेश की विश्व स्तरीय संस्था टर्टल सर्वाइवल अलायंस के उप निदेशक भास्कर दीक्षित ने बताया कि उनकी संस्था की एक बड़ी उपलब्धि ये रही कि विश्व की सबसे प्रसिद्ध कछुए की प्रजाति सबसे अधिक सरायू नदी में मिली है। भास्कर दीक्षित ने आगे कहते है कि कछुओ के लिए इस समय जो जगह चिन्हित की गई है अगर वहाँ पर उनकी संस्था को कछुओं को संरक्षित करने के लिए बुलाया जाता तो वह जरूर कछुओ को संरक्षण देने के लिये आगे आएंगे
कोठरी(kotari) गांव के घाट पर एक मंदिर बना हुआ है। मंदिर के पास ही पुजारी का घर है। यहां हमारी मुलाकात मंदिर के पुजारी से हुई जिन्होंने बताया कि वन विभाग अब तक यहाँ कई कछुओ को ला चुका है जो एक अच्छा निर्णय है जिससे गंगा का पानी साफ होगा साथ ही मंदिर भी सुरक्षित रहेगा|
वही कोठरी गाँव के एक ग्रामीण नागेश्वर बताते है कि यहां कछुआ संरक्षित क्षेत्र घोषित होने के बावजूद कई संख्या में मछवारे यहाँ मछली पकड़े आते है जिसके के कारण यहाँ संरक्षित किये जा रहे कछुओं के लिए खतरा पैदा हो गया हैवाराणसी में कछुआ सेंचुरी की जगह अब केंद्र सरकार 1620 किलोमीटर वाटरवेज योजना तैयार कर रही है जिसमें एक लंबी कैनाल खोदी जा रही जिससे गंगा का पानी दो हिस्सों में बंट जाएगा। अगर कछुआ सेंचुरी रहती तो यह वाटरवेज योजना कभी नही बन पाती। ऐसे में प्रशासन को कछुओं को नए क्षेत्र में वैसे ही संरक्षित करके रखना होगा जैसे वाराणसी कछुआ सेंचुरी में किया जाता था।