फ़ेंकारिया गाँव के महावीर सिंह सुकरलाई एक कम पढ़े-लिखे किसान हैं और उन्होंने विज्ञान की कोई पढ़ाई नहीं की है, लेकिन वे इतने सक्षम हो चुके हैं कि 300 व्यक्तियों की भीड़ को सहज रूप से सम्बोधित करते हुए पानी में मौजूद आर्सेनिक और ज़िंक की जाँच के नतीजे बता सकते हैं। गहरे कुंए से निकले हुए पानी के नमूने की जाँच करके वे बता सकते हैं कि पानी मनुष्यों के पीने लायक है या नहीं। फ़ेंकारिया गाँव, राजस्थान के पाली जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर बाँदी नदी के किनारे बसा हुआ है। लगभग तीस सालों से यहाँ के किसान इलाके में स्थित कपड़ा फ़ैक्टरियों द्वारा फ़ैलाये जा रहे प्रदूषण के खिलाफ़ लड़ रहे हैं। किसान जानते थे कि इस इलाके का भूजल इन कपड़ा फ़ैक्टरियों द्वारा प्रदूषित किया जा रहा है, और इलाके की एकमात्र मौसमी नदी बाँदी इसके कारण बर्बादी की कगार पर तो पहुँच गई है लेकिन उनकी उपजाऊ ज़मीन भी इन कपड़ा फ़ैक्टरियों के कारण खराब हो रही है, लेकिन प्रदूषण वाली बात सिद्ध करने के लिये उनके पास कोई सबूत नहीं था, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा…
हाल ही में गाँव में आयोजित “जनसभा” में श्री सुकरलाई ने पास के एक कुँए का पानी लिया, उसे 60 मिली की एक परखनली में डालकर उसमें कुछ रसायन और यौगिक मिलाये, उसे हिलाया और रख दिया। बीस मिनट के बाद ही उन्होंने घोषणा कर दी कि इस पानी में आर्सेनिक का स्तर पेयजल के मानक स्तर से बहुत ज्यादा है और इसलिये यह पानी पीने योग्य नहीं है। पाली में स्थित दो “कॉमन एफ़्लुएंट ट्रीटमेंट प्लाण्ट” (CETP) से लाये गये पानी नमूनों को भी जाँच करके उन्होंने बताया कि इस पानी में अभी भी ज़िंक और आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है जो कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) द्वारा तय किये मानक से भी अधिक है। वहाँ उपस्थित भीड़ जिसमें किसान, जनप्रतिनिधि, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के अधिकारी, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अधिकारी तथा उद्योगों के प्रतिनिधि मौजूद थे, सभी भौंचक्के और आश्चर्यचकित हो गये। जिस पानी का शोधन और उपचार CETPs में किया जा चुका था और जिसकी शुद्धता के दावे किये गये थे, वह नमूना फ़ेल करके दिखा दिया गया था।
राजस्थान का पाली देश का पहला औद्योगिक शहर था जहाँ CETP की स्थापना की गई थी। आज की तारीख में इसी शहर में तीन-तीन CETP स्थापित किये जा चुके हैं, लेकिन फ़िर भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। कपड़ा उद्योग की तकनीक में कोई नया बदलाव आता है तो प्रदूषण निस्तारण की तकनीक में भी बदलाव आना ही चाहिये, लेकिन CETP ने बदलते ज़माने के साथ खुद को नहीं बदला और उसके विभिन्न प्लांट प्रदूषित पानी के बदलते स्वरूप को पहचानने में असमर्थ सिद्ध हो रहे थे। उसी समय श्री सुकरलाई ने अन्य किसानों के साथ मिलकर श्री किसान पर्यावरण संघर्ष समिति (SKPSS) नाम की संस्था बनाकर औद्योगिक प्रदूषण के कारण खराब होते भूजल के खिलाफ़ लड़ने की तैयारी की।
इसी वर्ष राजस्थान उच्च न्यायालय ने पाली के किसानों की एक याचिका पर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नदी की सफ़ाई करने और प्रदूषण हटाने सम्बन्धी निर्देश दिये, लेकिन जिला प्रशासन की नाकामी के पश्चात भड़के हुए किसानों ने सरकार से माँग की कि जल प्रदूषण पर निगरानी रखने वाली समिति में स्थानीय किसानों के एक समूह को भी जगह दी जाये ताकि जिला प्रशासन द्वारा चलाये जा रहे प्रदूषण नियंत्रण उपायों और उनके क्रियान्वयन के बारे में किसानों को भी जानकारी मिल सके। परन्तु उनकी यह माँग नहीं मानी गई।
घटनाक्रम के इस मोड़ पर पाली में “सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एन्वायर्न्मेंट” (CSE) का पदार्पण हुआ। CSE द्वारा स्थापित प्रदूषण मापक लेबोरेटरी में भूजल और इलाके में पाये जाने वाले विभिन्न औद्योगिक प्रदूषकों की जाँच की गई, जिसमें क्रोमियम, लेड, निकल, ज़िंक और आर्सेनिक की भारी मात्रा पाई गई। यह घातक प्रदूषण जितने स्तर का पाया गया उसके कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्यायें जैसे त्वचा कैंसर, दिमागी और दिल सम्बन्धी बीमारियाँ तथा फ़ेफ़ड़ों के संक्रमण आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। गत अगस्त में CSE और SKPSS ने मिलकर किसानों के लिये जल प्रदूषण नियंत्रण का एक कार्यक्रम शुरु किया। इसमें आसपास के गाँवों के 60 किसानों को जल प्रदूषण की जाँच करने के लिये “किट” प्रदान की गई जिसमें सतही जल तथा भूजल दोनों की जाँच के लिये सभी रसायन और उपकरण मौजूद हैं।
पाली में 22 अगस्त 2008 को सम्पन्न हुए पहले ही “टेस्ट” के नतीजे बेहद नाटकीय रहे, जिसमें एक बायपास में CETP द्वारा शोधित किये गये पानी में आर्सेनिक और ज़िंक की मात्रा मानक स्तर से बहुत ज़्यादा पाई गई। जिला कलेक्टर के साथ प्रदूषण बोर्ड और CETP के अधिकारियों के दल ने मौके पर जाकर तत्काल उस बायपास को बन्द किया। जिलाधिकारी ने किसानों को आश्वासन दिया कि वे पानी में “हेवी मेटल” के प्रदूषण को गम्भीरता से लेंगे।
सितम्बर माह के मध्य में श्री किसान पर्यावरण संघर्ष समिति ने अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने का निश्चय किया और अपनी गतिविधियों को पाली से सौ किमी दूर बालोतरा में केन्द्रित किया, बालोतरा भी एक प्रमुख कपड़ा उद्योग केन्द्र है और यहाँ भी CETP और SPCB के साथ यही समस्या पाई गई। पानी के जिन नमूनों को CETP के अधिकारियों के सामने एकत्रित किया गया उसमें आर्सेनिक और ज़िंक की मात्रा पाई गई। बालोतरा के किसान दयाराम चरण कहते हैं कि “हमारे विभिन्न टेस्ट और जाँचों ने यह सिद्ध कर दिया कि CETP पानी का शोधन और उसमें से “हेवी मेटल” का प्रदूषण नियंत्रित करने में नाकाबिल है, यह सारा प्रदूषण आसपास स्थित कारखानों द्वारा ज़मीन में छोड़ा जाता है”। दयाराम आगे बताते हैं कि अब हमारे पास विभिन्न शोधित जल, नदी और अन्य सतह जल के नमूनों की जाँच के मजबूत आँकड़े एकत्रित हो चुके हैं, और अब हम यह मुद्दा जिला प्रशासन के सामने समय-समय पर उठाते रहेंगे, जब तक कि समस्या का निदान नहीं हो जाता।
हालांकि किसान अब खुश हैं, लेकिन अब वे प्रदूषण के प्रति अधिक सावधान भी हो गये हैं, साथ ही CETP तथा कपड़ा उद्योग की गतिविधियों पर भी वे पैनी नज़र रखे हुए हैं।
Tags - Arsenic in Rajasthan, polluntion in water in hindi, Centre for environment and science,
अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर
हाल ही में गाँव में आयोजित “जनसभा” में श्री सुकरलाई ने पास के एक कुँए का पानी लिया, उसे 60 मिली की एक परखनली में डालकर उसमें कुछ रसायन और यौगिक मिलाये, उसे हिलाया और रख दिया। बीस मिनट के बाद ही उन्होंने घोषणा कर दी कि इस पानी में आर्सेनिक का स्तर पेयजल के मानक स्तर से बहुत ज्यादा है और इसलिये यह पानी पीने योग्य नहीं है। पाली में स्थित दो “कॉमन एफ़्लुएंट ट्रीटमेंट प्लाण्ट” (CETP) से लाये गये पानी नमूनों को भी जाँच करके उन्होंने बताया कि इस पानी में अभी भी ज़िंक और आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा है जो कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) द्वारा तय किये मानक से भी अधिक है। वहाँ उपस्थित भीड़ जिसमें किसान, जनप्रतिनिधि, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के अधिकारी, प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अधिकारी तथा उद्योगों के प्रतिनिधि मौजूद थे, सभी भौंचक्के और आश्चर्यचकित हो गये। जिस पानी का शोधन और उपचार CETPs में किया जा चुका था और जिसकी शुद्धता के दावे किये गये थे, वह नमूना फ़ेल करके दिखा दिया गया था।
राजस्थान का पाली देश का पहला औद्योगिक शहर था जहाँ CETP की स्थापना की गई थी। आज की तारीख में इसी शहर में तीन-तीन CETP स्थापित किये जा चुके हैं, लेकिन फ़िर भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। कपड़ा उद्योग की तकनीक में कोई नया बदलाव आता है तो प्रदूषण निस्तारण की तकनीक में भी बदलाव आना ही चाहिये, लेकिन CETP ने बदलते ज़माने के साथ खुद को नहीं बदला और उसके विभिन्न प्लांट प्रदूषित पानी के बदलते स्वरूप को पहचानने में असमर्थ सिद्ध हो रहे थे। उसी समय श्री सुकरलाई ने अन्य किसानों के साथ मिलकर श्री किसान पर्यावरण संघर्ष समिति (SKPSS) नाम की संस्था बनाकर औद्योगिक प्रदूषण के कारण खराब होते भूजल के खिलाफ़ लड़ने की तैयारी की।
इसी वर्ष राजस्थान उच्च न्यायालय ने पाली के किसानों की एक याचिका पर प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नदी की सफ़ाई करने और प्रदूषण हटाने सम्बन्धी निर्देश दिये, लेकिन जिला प्रशासन की नाकामी के पश्चात भड़के हुए किसानों ने सरकार से माँग की कि जल प्रदूषण पर निगरानी रखने वाली समिति में स्थानीय किसानों के एक समूह को भी जगह दी जाये ताकि जिला प्रशासन द्वारा चलाये जा रहे प्रदूषण नियंत्रण उपायों और उनके क्रियान्वयन के बारे में किसानों को भी जानकारी मिल सके। परन्तु उनकी यह माँग नहीं मानी गई।
घटनाक्रम के इस मोड़ पर पाली में “सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एन्वायर्न्मेंट” (CSE) का पदार्पण हुआ। CSE द्वारा स्थापित प्रदूषण मापक लेबोरेटरी में भूजल और इलाके में पाये जाने वाले विभिन्न औद्योगिक प्रदूषकों की जाँच की गई, जिसमें क्रोमियम, लेड, निकल, ज़िंक और आर्सेनिक की भारी मात्रा पाई गई। यह घातक प्रदूषण जितने स्तर का पाया गया उसके कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्यायें जैसे त्वचा कैंसर, दिमागी और दिल सम्बन्धी बीमारियाँ तथा फ़ेफ़ड़ों के संक्रमण आदि की सम्भावना बढ़ जाती है। गत अगस्त में CSE और SKPSS ने मिलकर किसानों के लिये जल प्रदूषण नियंत्रण का एक कार्यक्रम शुरु किया। इसमें आसपास के गाँवों के 60 किसानों को जल प्रदूषण की जाँच करने के लिये “किट” प्रदान की गई जिसमें सतही जल तथा भूजल दोनों की जाँच के लिये सभी रसायन और उपकरण मौजूद हैं।
पाली में 22 अगस्त 2008 को सम्पन्न हुए पहले ही “टेस्ट” के नतीजे बेहद नाटकीय रहे, जिसमें एक बायपास में CETP द्वारा शोधित किये गये पानी में आर्सेनिक और ज़िंक की मात्रा मानक स्तर से बहुत ज़्यादा पाई गई। जिला कलेक्टर के साथ प्रदूषण बोर्ड और CETP के अधिकारियों के दल ने मौके पर जाकर तत्काल उस बायपास को बन्द किया। जिलाधिकारी ने किसानों को आश्वासन दिया कि वे पानी में “हेवी मेटल” के प्रदूषण को गम्भीरता से लेंगे।
सितम्बर माह के मध्य में श्री किसान पर्यावरण संघर्ष समिति ने अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार करने का निश्चय किया और अपनी गतिविधियों को पाली से सौ किमी दूर बालोतरा में केन्द्रित किया, बालोतरा भी एक प्रमुख कपड़ा उद्योग केन्द्र है और यहाँ भी CETP और SPCB के साथ यही समस्या पाई गई। पानी के जिन नमूनों को CETP के अधिकारियों के सामने एकत्रित किया गया उसमें आर्सेनिक और ज़िंक की मात्रा पाई गई। बालोतरा के किसान दयाराम चरण कहते हैं कि “हमारे विभिन्न टेस्ट और जाँचों ने यह सिद्ध कर दिया कि CETP पानी का शोधन और उसमें से “हेवी मेटल” का प्रदूषण नियंत्रित करने में नाकाबिल है, यह सारा प्रदूषण आसपास स्थित कारखानों द्वारा ज़मीन में छोड़ा जाता है”। दयाराम आगे बताते हैं कि अब हमारे पास विभिन्न शोधित जल, नदी और अन्य सतह जल के नमूनों की जाँच के मजबूत आँकड़े एकत्रित हो चुके हैं, और अब हम यह मुद्दा जिला प्रशासन के सामने समय-समय पर उठाते रहेंगे, जब तक कि समस्या का निदान नहीं हो जाता।
हालांकि किसान अब खुश हैं, लेकिन अब वे प्रदूषण के प्रति अधिक सावधान भी हो गये हैं, साथ ही CETP तथा कपड़ा उद्योग की गतिविधियों पर भी वे पैनी नज़र रखे हुए हैं।
Tags - Arsenic in Rajasthan, polluntion in water in hindi, Centre for environment and science,
अनुवाद – सुरेश चिपलूनकर