राष्ट्रपति ने ‘इंडिया वाटर फोरम’ का शुभारंभ किया

Submitted by admin on Sat, 11/30/2013 - 11:17
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आधुनिक इंडिया, 1-15 नवंबर 2013
राष्ट्रपति ने इंडिया वाटर फोरम का शुभारंभ कियानई दिल्ली (आधुनिक इंडिया संवाददाता) गत दिनों विज्ञान भवन में राष्ट्रपति ने इंडिया वाटर फॉरम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर कहा, “जल के संसाधनों के संकुचित एवं नष्ट होने और पानी की मांग बढ़ने के मद्देनज़र जल का दक्षतापूर्ण इस्तेमाल किया जाना जरूरी हो गया है। मौजूदा परिदृश्य में यह कथन बिल्कुल सही साबित हो रहा है कि - ‘जल की बचत करना, जल उत्पन्न करने के बराबर है।’ जल का दक्षतापूर्ण इस्तेमाल किए जाने पर केंद्रित इस सम्मेलन से इस महत्वपूर्ण विषय को नीतिगत मोर्चे पर कारगर बनाने में मदद मिलेगी। राष्ट्रीय जल नीति 2012 में जल संसाधनों के इस्तेमाल में दक्षता को बढ़ाने की जरूरत की पहचान की गई थी। पानी के दक्षतापूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिए जल के कुशल इस्तेमाल को बढ़ावा देने हेतु खोजपरक पहलों एवं उपकरणों की जरूरत है। जल सेक्टर में टीईआरआइ द्वारा किए जा रहे कार्यों से मैं अवगत हूं और मुझे खुशी है कि इसने इस कार्यक्रम के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुझे पूरी उम्मीद है कि इंडिया वॉटर फोरम को दक्षतापूर्ण जन उपयोग के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक और निष्पक्ष विचार-विमर्श प्राप्त होगा।”

इस मौके पर केंद्रीय जल संसाधन मंत्री, हरीश रावत, ने कहा, “भारत सरकार इस समस्या का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है। राष्ट्रीय जल नीति 2012 और राष्ट्रीय जल मिशन में जल पर देश के फोकस की प्रति-पुष्टि की गई है। इसके साथ ही इसमें महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार की नीति और जल संरक्षण एवं प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने के लिए सरकार के प्रस्तावित उपयोग के बारे में बताया गया है। राष्ट्रीय जल नीति 2012 में पर्याप्त जल आपूर्ति और स्वच्छता, कृषि एवं उद्योग में जल के दक्षतापूर्ण उपयोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संबंधित मुद्दों इत्यादि की परिकल्पना की गई है।”

इस अवसर पर डॉ. शशि थरूर, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री ने कहा, “प्रभावी जल प्रबंधन हमारे समाज का उद्देश्य होना चाहिए और हमारी शिक्षा प्रणाली को हमारे बच्चों में जल समस्याओं की जागरुकता जल्द ही शुरू करनी चाहिए। जल, कई मायने में हमारे समाज का आकार गढ़ता है।”

डॉ. आर. के पचौरी, महानिदेशक, टीईआरआइ ने कहा, “भारत में जल की उपलब्धता के संदर्भ में विभिन्न अनुमान इस बात का संकेत देते हैं कि प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता तेजी से घट रही है, जिसका सामना लोगों को भविष्य में करना पड़ेगा। इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) के अनुमान के मुताबिक शताब्दी के मध्य तक भारत में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता वर्तमान स्तर के तकरीबन दो-तिहाई रह जाएगी। इसलिए, भारत के एक बड़े हिस्से और बड़ी आबादी को जल की कमी का सामना करना पड़ेगा। इस व्यापक परिवर्तन के प्रमुख कारणों में जनसंख्या वृद्धि, आमदनी एवं संपत्ति में बढ़ोतरी के कारण उच्च मांग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव शामिल हैं। इस समस्या से निपटने के लिए तत्काल प्रभाव से संस्थानिक उपाय और नीति में परिवर्तन किए जाने की जरूरत है, ताकि मौजूदा परिस्थिति का सामना किया जा सके, जो कि बेहद असंतोषजनक है और अनुमानित जल उपलब्धता के नजरिए से भविष्य में स्थिति के अधिक विकट होने की आशंका है।”