सामूहिक पशुशाला

Submitted by Hindi on Mon, 04/15/2013 - 10:19
Source
गोरखपुर एनवायरन्मेंटल एक्शन ग्रुप, 2011
सूखे के दौरान पशुओं को खुला छोड़ देना बुंदेलखंड की आम प्रथा रही है जो विपरीत परिस्थितियों में थोड़ी बहुत खेती कर रहे लोगों के लिए काफी नुकसानप्रद हो रही है। ऐसे में सामूहिक पशुशाला का संचालन क्षेत्र के लिए एक बेहतर विकल्प बना और पशुओं का पलायन भी रुका।

संदर्भ


जनपद हमीरपुर के विकास खंड राठ के अंतर्गत आने वाले ग्राम कुसमा एवं उसके आस-पास बसे गाँवों के लोगों का मुख्य धंधा खेती एवं खेती से जुड़ी मजदूरी तथा पशुपालन है। विगत 7-8 वर्षों से लगातार पड़ रहे सूखा की वजह से यहां पर रहे लोगों का जीवनयापन कठिन हो गया। लोगों को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए पलायन करके बाहर जाने की नौबत आने लगी। ऐसे में जब लोगों के पास अपना पेट भरना मुश्किल हो गया था, लोगों ने अपने पशुओं को खुला छोड़ दिया, क्योंकि घर में पशुओं के चारा पानी की व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। ज्यादातर जानवरों के खुले घूमने से जो लोग अपनी थोड़ी-बहुत खेती करते थे, उनका भी नुकसान होने लगा और जो पशु खुले घूमते थे, उनके लिए जंगल में पीने के पानी की समस्या होने लगी। लोगों की चिंता बढ़ी और इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उपाय सोचने के क्रम में सामूहिक पशुशाला बनाने का विचार सामने आया, जिसे ग्राम कुसुमा के लोगों ने साकार रूप प्रदान किया।

रणनीति


सामूहिक पशुशाला के निर्माण के लिए संस्थान द्वारा निम्न रणनीति अपनाई गई-

सबसे पहले समिति का गठन किया गया।
आस-पास के गाँवों से चंदा एवं दान एकत्रित किया गया।
ग्राम कुसुमा में सामूहिक तालाब के पास सामूहिक पशुशाला के लिए ज़मीन तलाशना।
आस-पास के गाँवों में जागरुकता बैठक।

प्रक्रिया


विचार को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए सर्वप्रथम ग्राम कुसुमा के लोगों ने वर्ष 2007 को गांव में बैठक की, जिसमें सुमित्रा सामाजिक कल्याण संस्थान के प्रतिनिधि की भी उपस्थिति रही। समस्या की गंभीरता पर चर्चा के साथ ही उसके विकल्प के तौर पर सामूहिक पशुशाला निर्माण की बात भी गांव वालों ने उठाई जो एक सराहनीय कार्य था। परंतु मुख्य समस्या थी इसमें आने वाले खर्च की व्यवस्था करना, क्योंकि सामूहिक पशुशाला कम से कम 3 माह तक के लिए चलाई जानी आवश्यक होगी। तब लोगों ने चंदा एकत्र करने का विकल्प सुझाया। जगह के लिए लोगों ने ग्राम कुसुमा में अवस्थित तालाब एवं चेकडैम के पास वाली जगह का चयन सर्वसम्मति से किया जिससे जानवरों को पीने के लिए पानी की उपलब्धता हो सके। क्योंकि वहीं पर एक कुआं भी है।

संस्थान ने अपनी कार्यदायी समिति की एक बैठक बुलाकर उसमें भी इस समस्या एवं उसके समाधान के विकल्प को बताया। तब लोगों ने स्वयं सहित आस-पास से चंदा व दान एकत्र करने के लिए एक समिति बनाई। इस समिति में गांव से 10 तथा संस्था से तीन सदस्य थे। समिति ने आस-पास के गाँवों व लोगों से चंदा एकत्र कर सामूहिक पशुशाला का निर्माण कराया। इस पशुशाला की लम्बाई 30 मीटर तथा चौड़ाई 7.5 मीटर है, जिसमें एक साथ 100-150 पशु आसानी से रह सकते हैं। इसमें उपरोक्त संख्या में पशुओं के लिए चारा व पानी की व्यवस्था की गई।

इस पशुशाला में क्षेत्र के ऐसे लोगों के पशुओं को रखने की वरीयता दी गई, जिनके सामने सूखा के कारण अपने पशुओं को खुला छोड़ने की नौबत आ जाती है।

लाभ


पशुधन नुकसान होने से बच गया।
अन्य जानवरों द्वारा होने वाले नुकसान को भी बचाया जा सका है।
आस-पास के अन्य जगहों में इस तरीके के प्रक्रिया की शुरूआत हुई है।
इतने अधिक जानवरों को एक साथ रखने से गोबर की खाद तैयार करने की प्रक्रिया बड़े पैमाने पर शुरू की जा रही है।