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बता दें कि इस गाँव में जो भी नव-विवाहिता ब्याह करके आएगी उसका पहला पाला पानी से ही होता है। वह कई दिनों तक तनाव में रहती है कि उसे डेढ़ किमी दूर से पानी ढोना पड़ता है। कुछ समय बाद तो उसकी नियत ही बन जाती है कि उसे पानी की व्यवस्था ऐसे ही करनी होगी।
यह बात रामजीवाला गाँव में परस्पर स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं से बातचीत करने पर सामने आई। वे कहती हैं कि उनके लिये हिमकॉन संस्था एक वरदान है। जिस संस्था ने इस गाँव की महिलाओं की सबसे महत्त्वपूर्ण कठिनाई को समझा। जिस तरह वे संस्था के सहयोग से जल संरक्षण के लिये चाल-खाल को बढ़ावा दे रहे हैं उसी तरह उनके गाँव की सदियों पुरानी समस्या का समाधान भी संस्था नें ढूँढ निकाला।
महिलाओं और पुरुषों से हमने जानने की कोशिश की है कि बरसात के पानी को लेकर संग्रहण के बारे में वे क्या कहते हैं और उनके कष्ट जो पानी से जुड़े हैं उन पर लोग क्या सोचते हैं।
लक्ष्मी देवी 10 वर्ष पहले रामजीवाला गाँव में ब्याह कर आई थीं। उसे क्या मालूम था कि पानी की व्यवस्था करने के लिये रामजीवाला गाँव से लगभग डेढ़ किमी. पैदल की पगडंडी नापनी पड़े। वह भी सर पर 20 ली. पानी का बंठा ढोकर खड़ी चढ़ाई पार करते हुए वापस गाँव पहुँचती है।
कमला देवी अपने माईके का अनुभव बताती हैं कि वहाँ थोड़ी सी वर्षा होने पर भी गाँव मे जगह-जगह छोया (प्राकृतिक जलस्रोत) फूट पड़ते थे। ऐसा उसे रामजीवाला में पिछले 60 वर्षों में दिखाई नहीं दिया। वे आगे बताती हैं कि पहले-पहल सिर्फ बंठा ही एक मात्र साधन था जिससे पानी की सुविधा जुटाई जाती थी। कई चक्कर गाँव से जलस्रोत के लगते थे। मगर जब से प्लास्टिक के बर्तन आये तब से थोड़ा राहत मिली।
वे आगे बताती हैं कि यमकेश्वर से रामजीवाला 30 किमी. पर पानी लिफ्ट किया गया। जिस दिन पाइप लाइन का काम पूरा हुआ उसी दिन उक्त पाइप लाइन में पानी दिखा। इस पाइप लाइन को बने हुए 10 वर्ष हो गए। अब तो पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो गई। मगर उन्हें बिराई नामे तोक तक पानी के लिये जाना ही पड़ता है।

कहती हैं कि जब उनके पास वर्षाजल एकत्रित करने का कोई साधन नहीं था तो उन्हें अमूमन बिराई नामे तोक से दिन में चार बार पानी ढोना ही पड़ता था। अब सिर्फ एक बार ही पीने के पानी के लिये वहाँ जाना पड़ता है।
45 वर्षीय रोशनी देवी कहती हैं कि उन्हें गाँव से दूर डेढ़ किमी. चलकर दिन में चार बार पानी ढोना ही होता था। वर्तमान में नहीं, क्योंकि अब तो उनके ही घर पर पाँच हजार ली. का जो बरसात के पानी को एकत्रित करने का टैंक बन गया है।
26 वर्षीय साधना देवी के माईके के घर में पानी से सम्बन्धित कोई समस्या नहीं थी इसलिये साधना को यह पहला अनुभव हुआ कि पानी की भी खतरनाक समस्या होती है। वे ससुराल में यदि किसी समस्या से जूझी तो पानी की।
साधना को भी अन्य ग्रामीणों की तरह डेढ़ किमी दूर पानी के लिये जाना पड़ा। वह भी सिर के ऊपर 20ली. का बंठा और खड़ी चढ़ाई पार करते हुए गाँव पहुँचना होता है। इस तरह पानी का प्रबन्धन रोज साधना को करना पड़ता था। कहती हैं कि नहाने के लिये भी सोचना पड़ता था कि कब नहाएँ।
पद्मा देवी का अनुभव भी निराला है। उनके घर-पर हाल ही में हिमकॉन संस्था द्वारा टैंक निर्माण करवाया जा रहा है। उन्हें इस वक्त पाणीसार से गाँव तक और गाँव से पाणीसार तक नौ-नौ चक्कर पानी ढोने के लगाने पड़ते हैं।
इस दौरान जो पानी एकत्रित करते हैं वह सिर्फ टंकी निर्माण के काम में आता है। यानि की पद्मादेवी को इस दौरान पानी ढोने के कुल 15-15 चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। लेकिन वे बेहद खुश हैं कि जब इस टंकी में बरसात का पानी एकत्रित हो जाएगा तो कम-से-कम पीने का पानी ही दिन में एक बार लेकर आना है।
52 वर्षीय मंजू देवी का अनुभव अपने समूह की महिलाओं से जुदा है। कहती हैं कि हाल ही में सम्पूर्ण गाँव में बरसात के पानी को एकत्रिकरण के लिये टैंक का निर्माण हो चुका है। शेष निर्माणाधीन है। कहती हैं कि वे पानी बचत का भी यत्न करती हैं।
बरसात के पानी को इस टैंक में संग्रहित करके कैसे उपयोग करें ऐसी चर्चा उनके समूह से जुड़ी महिलाएँ करती हैं। पहले उन्हें पानी डेढ़ किमी दूर से ढोना होता था वह भी एक दिन में कम-से-कम चार बार। अब तो सिर्फ दिन में एक ही बार पीने के पानी के लिये डेढ़ किमी दूर जलस्रोत पर जाती हैं।
आगे कहती हैं कि इस कारण नहीं कि पानी की सुविधा हुई बल्कि उनकी शारीरिक, मानसिक चिन्ता का हल भी इस टैंक के बनने के कारण हुआ है। 33 वर्षीय कुसुम तो इस टैंक के बनने से अतिउत्साहित हैं। पानी की सुविधा जुटानी जितनी उनके लिये शारीरिक थकान थी उससे अधिक पानी नाम ही उन्हें मानसिक तनाव देता था।

वह जब कहानियाँ सुनती थीं कि फलाँ गाँव में पाइप लाइन से पानी के साथ कीड़े निकल रहे हैं या फलाँ गाँव के जलस्रोत सूखने के कगार पर हैं और गाँव के लोगों को पानी के लिये दूर जाना पड़ सकता था। उसे लगता था कि शायद यह कहानियाँ हैं। जबकि यह हकीक़त है।
रेशमी देवी को अब आभास हुआ कि जलस्रोत ही नहीं बरसात के पानी का भी उपयोग किया जा सकता है। 61 वर्षीय बचुली देवी कहती हैं कि खुद के लिये और पशुओं के लिये पानी की व्यवस्था करना रामजीवाला गाँव में किसी युद्ध को जीतने से कम नहीं था। वे सालों से इस समस्या का सामना कर रही हैं। उसकी ढलती उम्र के दौरान हिमकॉन संस्था ने जो पानी की सुविधा की है उस खुशी में उनकी आँखे छलक आती हैं।
नहाएँगे-धोएँगे, साफ-सफाई करेंगे। जल संरक्षण की ओर बढ़ेंगे
लक्ष्मी देवी इस वक्त खुश हैं कि उनके घर पर पाँच हजार लीटर की टंकी बन गई है। इस टंकी को बनाने पर एक हजार लीटर पानी लग चुका है। यह पानी भी उसी स्रोत से ढोया गया जो गाँव से डेढ़ किमी दूर है। इस टंकी के पानी से वह कपड़े धोना, बर्तन धोना, पशुओं को पानी पिलाना इत्यादि कि सुविधा को भरपूर उपयोग करेंगी। बस सिर्फ वह पीने का पानी उसी स्रोत से एक बार जाकर के लेकर आएँगी। आगे बताती हैं कि यदि हर दो माह में बरसात हो जाये तो उनकी यह पानी की टंकी बराबर पानी की व्यवस्था करती रहेगी। कमला देवी कहती हैं कि उनके घर में जब से पाँच हजार ली. का टैंक बना तब से वे कपड़े धुलने, बर्तन धुलना, हाथ-पाँव धुलना, छोटे-मोटे कपड़े धुलना, शौच आदि के लिये इसी टंकी के पानी का उपयोग करती हैं। मैना देवी कहती हैं कि रामजीवाला गाँव में पाइप लाइन भी आई तो उन्हें पेयजल की समस्या से निजात नहीं मिली। यहाँ तो बरसात के पानी को एकत्रित करना ही सबसे बड़ी चुनौती है। वे वर्तमान में बेहद खुश है कि संस्था के कारण उनके घर में पाँच हजार ली. की टंकी बन चुकी है। 45 वर्षीय रोशनी देवी कहती हैं कि हिमकॉन संस्था का वे आभार करना चाहती हैं परन्तु किस रूप में।
कहती हैं कि पहले उन्हें गाँव से दूर डेढ़ किमी चलकर दिन में चार बार पानी ढोना ही होता था। संस्था ने उन्हें इतनी सुविधा उपलब्ध करवाई कि अब तो उन्हें मात्र एक ही बार पानी के लिये जाना होता है। 26 वर्षीय साधना देवी कहती है कि नहाने के लिये भी सोचना पड़ता था कि कब नहाएँ। जब से पानी की टंकी बनाई गई तब से वे निश्चिंत हैं कि कम-से-कम टंकी में तो पानी है। पद्मादेवी बेहद खुश हैं कि जब इस टंकी में बरसात का पानी एकत्रित हो जाएगा तो कम-से-कम पीने का पानी ही दिन में एक बार लेकर आना है। 52 वर्षीय मंजू देवी कहती हैं कि हाल ही में सम्पूर्ण गाँव में बरसात के पानी को एकत्रिकरण के लिये टैंक का निर्माण हो चुका है। शेष निर्माणाधीन है। कहती हैं कि वे पानी बचत का भी यत्न करती हैं।
बरसात के पानी को इस टैंक में संग्रहित करके कैसे उपयोग करें ऐसी चर्चा उनके समूह से जुड़ी महिलाएँ करती हैं। 33 वर्षीय कुसुम तो इस टैंक के बनने से अतिउत्साहित हैं। पानी की सुविधा जुटानी जितनी उनके लिये शारीरिक थकान थी उससे अधिक पानी नाम ही उन्हें मानसिक तनाव देता था। खैर अब तो वे सिर्फ पीने के पानी का ही इन्तजाम करती हैं। 40 वर्षीय रेशमा देवी कहती हैं कि उन्हें अब आभास हुआ कि जलस्रोत ही नही बरसात के पानी का भी उपयोग किया जा सकता है जो रेशमा देवी ने हिमकॉन संस्था से जुड़कर सीखा। कहती है कि जब उन्हें मालूम हुआ कि उनके प्रत्येक समूह की सदस्यों के घर वर्षाजल संग्रहण के लिये टैंक बनने वाले हैं तो वे उत्साहित हुईं कि शायद उनकी पानी की समस्या समाप्त होने वाली है। हुआ ऐसा ही कि अब वे नाहना, धोना, शौचालय, कपड़े धोना इत्यादि की सुविधा उन्हें घर पर ही टैंक निर्माण से हो गई है। 61 वर्षीय बचुली देवी कहती हैं कि अब तो उन्हें पानी के लिये 10 चक्कर के बजाय दिन में एक ही चक्कर जाना पड़ता है।