शुद्ध जल उपलब्धता - मध्यप्रदेश के बढ़ते सधे कदम 

Submitted by Shivendra on Fri, 02/21/2020 - 10:10

लेखक - कृष्ण गोपाल 'व्यास’ 

मध्यप्रदेश में पिछले कुछ दिनों से लोगों को पीने के साफ पानी को उपलब्ध कराने की दिशा में सरकार के स्तर पर लगातार चिन्तन चल रहा है। कार्यशालाएं हो रही हैं। देश भर से जल विशेषज्ञों को आमंत्रित कर उनकी राय ली जा रही है। अनुभव बटोरे जा रहे हैं। इस चिन्तन में पीएचई मंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री, अपनी-अपनी टीम को लेकर एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। सूत्रधार हैं - मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री। इस पूरी प्रक्रिया में एक बात साफ नजर आ रही है, वह है - उस चिन्तन के दो मुख्य सन्देश। पहला संदेश है - पेयजल जल संकट से स्थायी तौर पर निपटना और दूसरा सन्देश है - समाज को पानी पर अधिकार प्रदान करना। इन मुद्दों पर सरकार की संजीदगी को देखकर कहा जा सकता है कि सरकार का इरादा पेयजल की सुनिश्चित उपलब्धता के साथ-साथ हर नागरिक को पानी का अधिकार देना है। अर्थात दोनों बातों को सुनिश्चित करना है। 

विदित है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रत्येक नागरिक को प्रदूषणमुक्त पानी उपलब्ध कराने का उल्लेख है। राष्ट्रीय जल नीति 2012 के पेरा 2.2 के अनुसार राज्यों द्वारा पानी के प्रबन्ध को सार्वजनिक धरोहर के सिद्धान्त के आधार पर करने की आवश्यकता पर बल दिया है। स्ंायुक्त राष्ट्रसंघ और मानवाधिकार काउंसिल ने भी पेयजल को मानवाधिकार के रूप में मान्यता देने पैरवी की है। इन सारे प्रावधानों का एक ही सन्देश है। वह है बिना भेदभाव के हर नागरिक को उसकी दैनिक जरूरत का शुद्ध पानी, उपलब्ध कराना। मध्यप्रदेश की सरकार का इरादा है - अपने नागरिकों को उनके घर पर ही प्रतिदिन 55 लीटर पानी उपलब्ध कराना। सारा चिन्तन इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए है। अतः वह सराहनीय तथा स्वागत के योग्य है। 

प्रदेश के जल संकट का जायजा लेने से, मौटे तौर पर पता चलता है कि गर्मी आते-आते अनेक इलाकों में पेयजल संकट गहरा जाता है। वह आपाधापी का दौर होता है। उस दौर में सरकार और समाज पानी की किल्लत से जूझते हैं। वैसे तो सभी जगह पानी की कमी का एहसास होता है, पर बुन्देलखंड, मालवा, ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र तथा दक्षिण मध्यप्रदेश के अनेक स्थानों में पानी की किल्लत सबसे अधिक त्रासद होती है। यह तकलीफ गहरी खदानों वाले इलाकों में भी देखी जाती है। सरकार को एहसास हो गया है कि जल संकट का सम्बन्ध सूखे दिनों से है। सूखे दिनों की जल संकट की यह हकीकत, राज्य सरकार के मौजूदा चिन्तन में नजर आती है। उसे अच्छी तरह समझ में आ रहा है कि प्रदेश का जल संकट, पूरी तरह से, बरसात की कमीवेषी के कारण नहीं है। हकीकत में जल संकट की शुुरुआत बरसात के बाद होती है। अगली बरसात तक चलती है। अर्थात जल संकट की अवधि दो बरसात के बीच के सूखे आठ महीनों की है। इन्हीं आठ महीनों में नदियों, जलाशयों, कुओं, नलकूपों से पानी खींचा जाता है। अर्थात भूजल दोहन प्रारंभ होता है, भूजल स्तर नीचे गिरने लगता है। भूजल स्तर के नीचे गिरने के कारण नदी-नाले, कुएं, तालाब और नलकूप सूखने लगते हैं। इन हालातों का सन्देश है- सूखे दिनों के लिए अपनाई मौजूदा रणनीति कारगर नहीं है। उसपर संकट के बादल गहराने लगे हैं। उससे भी बड़ा सन्देश है, उस स्थिति को हासिल किया जाए जिसको हासिल करने के बाद जलसंकट को पनपने का अवसर ही न मिले। यही कारण है, प्रदेश के दो बडे विभाग एक मंच पर आकर उस रोडमेप को क्रियान्वित करना चाहते हैं जिस पर चल कर जलस्रोतों के संकट का स्थायी समाधान मिल सकता है। इसके लिए पीएचई के संकल्प और ग्रामीण विकास विभाग की मौजूदा योजनाओं को देखना और समझना होगा। 

इन दिनों ग्रामीण विकास विभाग प्रदेश की लगभग 100 किलोमीटर लम्बी 40 नदियों पर काम कर रहा है। इस काम का लक्ष्य है सूखे महीनों में इन 40 नदियों के प्रवाह को बढ़ाना। उनके पुराने बारहमासी चरित्र को बहाल करना। इसे हासिल करने के लिए जिस गाइडलाइन पर काम किया जा रहा है, उस गाइडलाइन का सीधा-सीधा निर्देश है - नदी कछार की सीमा से लेकर मुख्य नदी के पास तक, परम्परागत तालाबों की तर्ज पर गहरे और बड़े आकार के तालाबों का निर्माण। ऐसे तालाबों को बनाने का उद्देश्य है अधिक से अधिक बरसाती पानी का संचय और गहराई के कारण भूजल का अधिक से अधिक रीचार्ज। उद्देश्य है भूजल दोहन के कारण नीचे उतरने वाली वाटर टेबिल की गिरावट को यथासंभव कम करना। जाहिर है, वाटरटेबिल की गिरावट की रोकथाम का लाभ जलस्रोतों को मिलेगा। प्रदूषण अपने आप कम होगा। पानी के साफ होने का रास्ता साफ होगा।

ग्रामीण विकास विभाग की दूसरी पहल तालाब निर्माण को लेकर है। दिनांक 11 फरवरी 2020 को ग्रामीण विकास मंत्री ने भोपाल के मिन्टो हाल में आयोजित जल का अधिकार तथा नदी पुनर्जीवन के लिए आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में इसकी जानकारी प्रदान की। इस जानकारी के अनुसार ग्रामीण विकास विभाग द्वारा जल्दी ही ग्राम सरोवर विकास प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। यह स्वतंत्र निकाय होगा। इसका अपना बजट होगा। इस प्राधिकरण के गठन का उद्देश्य प्रदेश भर में तालाबों और जल स्रोतों को संरक्षित करना है। इस प्राधिकरण के गठन के बाद अगले 5 साल में हर गांव के पास अपना तालाब होगा। इसके साथ-साथ गांव के प्राचीन तालाबों का भी गहरीकरण किया जाएगा। जिन गांवों में तालाब नहीं हैं, उन गांवों में नए तालाब खोदे जाएंगे। धन की व्यवस्था सरकार करेगी। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में प्राचीन तालाबों की हीं संख्या लाखों में है। इन कामों की बदौलत लाखों हेक्टेयर मीटर पानी धरती के पेट में और तालाबों में जमा होगा। यह काम जल स्वराज की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होगा। 

 

अन्त में, मध्यप्रदेश के नवाचारी प्रयासों को देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि प्रदेश प्रिसक्रिपटिव तथा अवैज्ञानिक विकल्पों के मोहजाल से बाहर आ रहा है। सही डिजाइनों और विकल्पों को अपनाने पर जोर दे रहा है। लम्बी आयु वाली स्थायी संरचनाओं को अपना रहा है। पानी बचाओ अभियान तथा रीसाइकिल प्रयासों के साथ-साथ जमीन के नीचे का पानी बढ़ाओं अभियान को संचालित करने जा रहा है। भूजल के दोहन की हर साल होने वाली वृद्धि के मुकाबले दो-तीन गुना अधिक रीचार्ज करने की रणनीति को अपनाने की दिशा में अग्रसर है। संकट को उसके स्रोत पर ही समाप्त करने की रणनीति पर काम करने के लिए तैयार हो रहा है। जल संकट से मुक्ति और शुद्ध पानी मुहैया कराने के लिए उठाए यही सही सधे कदम हैं। 
  

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