इन दिनों पूरे देश में नदियों और तालाबों के पुनरोद्धार की चर्चा है। चर्चा के असर से उनके पुनरोद्धार के अभियान शुरू हो रहे हैं। वे, धीरे धीरे देश के सभी इलाकों में पहुंच रहे हैं। अभियानों के विस्तार के साथ-साथ, आने वाले दिनों में इस काम से राज्य सरकारें, जन प्रतिनिधि, नगरीय निकाय, सरकारी विभाग, अकादमिक संस्थान, कारपोरेट हाउस, स्वयं सेवी संस्थाएं, कंपनियां, ठेकेदार एवं नागरिक जुड़ेंगे। सुझावों, परिस्थितियों तथा विचारधाराओं की विविधता के कारण, देश को, तालाबों पुनरोद्धार के अनेक मॉडल देखने को मिलेंगे। यह विविधता लाजिमी भी है।
कुछ मॉडल अधूरी सोच और सीमित लक्ष्य पर आधारित होंगे तो कुछ तालाब की अस्मिता की समग्र बहाली को अभियान का अंग बनाएंगे। इसी कारण कुछ मॉडल तात्कालिक तो कुछ दीर्घकालिक लाभ देने वाले होंगे। अभियान में कहीं-कहीं समाज भागीदारी करेगा तो कहीं-कहीं वह केवल मूक दर्शक की भूमिका निबाहेगा।
कुछ लोग, कहीं-कहीं, समाज की पृज्ञा तथा अनुभव का लाभ उठाएंगे तो कहीं-कहीं कुछ संस्थान पिछले गंगा एक्शन प्लान की तर्ज पर, गोपनीयता के इस्पाती ढांचे के अंदर बैठकर काम करेंगे। तालाबों के पुनरोद्धार से जुड़ा मामला पूरी तरह संस्थान के दृष्टिबोध अर्थात उनकी समझ पर निर्भर होगा और तालाब की पूरी, आधी अधूरी या दिशाहीन बहाली, उनकी समझ का प्रमाणपत्र होगा।
तालाबों के पुनरोद्धार के परिणाम, कहीं-कहीं संस्थाओं और उनके कन्सलटेंटों को आईना दिखाएंगे तो कहीं उनकी सफलता दिलाने वाली शानदार समझ की इबारत लिखेंगे। पुराने अनुभवों की रोशनी में सुझाव है कि मौजूदा अभियानों को पारदर्शी बनाया जाए। उनके क्रियान्वयन में समाज तथा हितग्राहियों की साधिकार भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
तालाबों के समग्र तथा टिकाऊ पुनरोद्धार के सामने तीन मुख्य चुनौतीयां हैं। पहली चुनौती तालाबों पर बढ़ते अतिक्रमण की अनदेखी की है। इस अनदेखी के कारण बरसात में उनसे बाहर निकला पानी बाढ़ पैदा कर रहा है। सितम्बर 2014 में कश्मीर में आई बाढ़, इस तथ्य का सबसे अधिक ताजातरीन तथा आंखें खोलने वाला उदाहरण है। दूसरी चुनौती तालाबों में हो रहे प्रदूषण की अनदेखी और गुड गवर्नेन्स की कमी की है।
इस अनदेखी के कारण पर्यावरणी बिगाड़ के साथ-साथ अनेक घातक बीमारियां फैल रही हैं और तालाबों पर निर्भर समाज को रोजी-रोटी का संकट भोगना पड़ रहा है। रोजी-रोटी का जरिया खत्म होने तथा रोजगार के विकल्पों की अपर्याप्तता के कारण गांवों में बेरोजगारी बढ़ रही है। तालाबों के दूषित होते पानी में पनपने वाली मछलियों और अन्य भोज्य पदार्थों में विषैले रसायनों की मात्रा निरापद सीमा लांघ रही है। वे नष्ट हो रही हैं।
तीसरी चुनौती परिणाम देने वाली व्यवस्था की कमी की है। इसका उदाहरण पुराने गंगा एक्शन प्लानों की असफलता है। इसके लिए, धनाभाव या राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी कतई जिम्मेदार नहीं है। यह असफलता सही मायनों में गलत हाथों में पुनरोद्धार की कमान सौंपने तथा सीमित लक्ष्यों पर काम करने के कारण हुई है।
तालाबों के पुनरोद्धार की मंजिल है तालाब की सेहत और प्राकृतिक भूमिका की सौ प्रतिशत बहाली। सेहत और प्राकृतिक भूमिका की बहाली का मतलब उसके पानी को जीव-जंतुओं के योग-क्षेम के लिए पूरे समय निरापद बनाए रखना। उसकी सेहत को खराब करने वाले रसायनों, मलबे तथा अवांछित पदार्थों को आने से रोकने; तालाब में प्रवेश के पहले उनका सौ प्रतिशत उपचार करने और तालाब में जमा अवांछित रसायनों को बाहर निकालने की टिकाऊ व्यवस्था करना।
तालाबों की उम्र को कम करने वाली गाद को कैचमेंट में रोकना तथा प्राकृतिक व्यवस्था की मदद से बाहर का रास्ता दिखाना। उपर्युक्त व्यवस्था की सुनिचिश्तता के साथ साथ तालाबों के पुनरोद्धार का सामाजिक पक्ष भी बेहद महत्वपूण है। इसके अंतर्गत, तालाब, समाज और सरकार के अंतरंग संबं की परस्पर हितैषी व्यवस्था कायम करना। यही समावेशी सोच है। यही समाज की अपेक्षाएं हैं।
तालाबों के पुनरोद्धार की मंजिल है तालाब की सेहत और प्राकृतिक भूमिका की सौ प्रतिशत बहाली। सेहत और प्राकृतिक भूमिका की बहाली का मतलब उसके पानी को जीव-जंतुओं के योग-क्षेम के लिए पूरे समय निरापद बनाए रखना। उसकी सेहत को खराब करने वाले रसायनों, मलबे तथा अवांछित पदार्थों को आने से रोकने; तालाब में प्रवेश के पहले उनका सौ प्रतिशत उपचार करने और तालाब में जमा अवांछित रसायनों को बाहर निकालने की टिकाऊ व्यवस्था करना। तालाबों की उम्र को कम करने वाली गाद को कैचमेंट में रोकना तथा प्राकृतिक व्यवस्था की मदद से बाहर का रास्ता दिखाना।यही तालाबों का समग्र पुनरोद्धार है। यही तकनीकी कामों का सही परिणाम है। यही उन कामों का सामाजिक चेहरा है। यही टिकाऊ रोडमैप है। इस रोडमैप के अनुसार तालाबों के पुनरोद्धार को समग्रता में करने के लिए निम्न कदम उठाए जाना चाहिए-
तालाब की समस्याओं का अध्ययन कर सूचीबद्ध करना
यह पहला कदम है। इस कदम का उद्देश्य तालाब की सेहत पर बुरा असर डालने वाले छोटे-बड़े सभी कारणों को ज्ञात कर उनकी सूची बनाना। इस काम में अलग-अलग विशेषज्ञता के लोग लगेंगे। इन विशेषज्ञों के अलावा समाज की राय तथा कारणों को भी जानना आवश्यक होगा।
जाहिर है, अलग-अलग तालाबों में बिगाड़ के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इसलिए हर तालाब की सूची अलग होगी। कहीं कुछ विशिष्ट कारण भी तालाब की सेहत बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। इसलिए उन कारणों को भी उपचार सूची में सम्मिलित किया जाएगा।
सामान्यतः पाए जाने वाले मुख्य कारणों में जलकुम्भी; सीवर, उद्योगों, नालों, बसाहटों, खुले शौच, धार्मिक सामग्रियों का विसर्जन, माईनिंग के हानिकारक रसायन इत्यादि तथा तालाब की जमीन पर खेती में उपयोग में लाए कीटनाशकों, उर्वरकों तथा खरपतवारनाशकों के अंश इत्यादि हो सकते हैं।
तालाब पुनरोद्धार कार्ययोजना
यह दूसरा कदम है। इसके अंतर्गत तालाब की सेहत और प्राकृतिक भूमिका पर बुरा असर डालने वाले प्रत्येक छोटे-बड़े एवं विशिष्ट कारण के निराकरण, उपचार या उसे हटाने के लिए प्रस्ताव तैयार किया जाना चाहिए। प्रस्ताव पर तालाब के प्रभाव क्षेत्र में निवास करने वाले हितग्रहियों तथा ग्रामीणों से चर्चा की जाना चाहिए। उसे तरजीह दी जाना चाहिए।
ग्रामीणों के सुझावों पर कार्ययोजना में सुधार या तदानुरूप अतिरिक्त गतिविधि जोड़ी जानी चाहिए। हितग्रहियों तथा ग्रामीणों की सहमति/मंजूरी के बाद ही कार्ययोजना को स्वीकार किया जाना चाहिए। तालाब पुनरोद्धार की अधूरी कार्ययोजना मंजूर नहीं की जाना चाहिए।
समस्याओं का निराकरण
यह तीसरा कदम है। कार्ययोजना के मंजूर होने के बाद, प्रत्येक समस्या का निराकरण किया जाना चाहिए। समस्या के अनुसार क्रियान्वयन दल होगा। क्रियान्वयन दल और हितग्राही दल मिलकर समस्या निराकरण गतिविधि को पूरा करेंगे। प्रत्येक गतिविधि के पूरा होने पर, क्रियान्वयन दल और हितग्राही दल मिलकर उसके परिणाम का भौतिक सत्यापन करेंगे और उसके परिणाम को सार्वजनिक किया जाएगा। यह गतिविधि का रिपोर्ट कार्ड होगा। काम पूरा होने के बाद तालाब की सेहत का रिपोर्टकार्ड सार्वजनिक किया जाएगा।
उसके पानी की गुणवत्ता रिपोर्ट, जो उसके उपयोग के क्षेत्रों (पेयजल, खेती, मछली पालन इत्यादि) को दर्शावेगी, सार्वजनिक की जाएगी। ग्रामीणों द्वारा उपयोग के क्षेत्रों के बदलावों की मानीटरिंग की जाएगी। स्वतंत्र मानीटरिंग, मीडिया रिपोर्टिंग, सामाजिक समीक्षा जैसे उपाय अपनाए जाएंगे। मानीटरिंग के आधार पर, यदि आवश्यक होगा तो, अधूरे कामों को पूरा किया जाएगा।
उपर्युक्त रोडमैप पर काम करने से बेहतर परिणाम आएंगे। नई इबारत लिखी जाएगी। गलत कामों पर रोक लगेगी। समाज के अनुभव का लाभ मिलेगा और काम करते समय समझ परिमार्जित होगी तथा बेहतर करने के नये-नये अवसर उपलब्ध होंगे।