तटिनी के प्रति

Submitted by admin on Fri, 07/19/2013 - 11:37
Source
काव्य संचय- (कविता नदी)
अरी ओ तटिनी, अस्थिर प्राण
कहाँ तू करती है प्रस्थान?
कंठ में है अविरल कल-कल
अमल जल आँखों में छल-छल
नहीं चल-चल में पल भी कल
चपल-पल-पल चंचल-अंचल
रुदन है या यह तेरा गान?

चरण में तन में कुछ कंपन
निरंतर नुपूर का निक्वण
नयन में व्याकुल-सी चितवन
भ्रमरियों का यह आवर्तन
विवर्तन परिवर्तन, नर्तन
कभी मुख पर नव अवगुंठन
कभी अधरों पर मृदु मुस्कान।