Source
काव्य संचय- (कविता नदी)
उस पार से
आ रही है नाव
इस ओर
गलही पर बैठा
उस ओर मुँह किए
डाँड़ खेता
आ रहा है नाविक
इस तरफ उसकी पीठ है
एक साँवली खुली मल्लाह पीठ
उस पीठ में भी मछलियाँ फड़कती हैं
गोया एक टुकड़ा नदी हो वह
वह है बीरू मल्लाह
बड़कों में लड़का, लड़कों में बड़का
कौन कहेगा, सातवीं बार सातवीं फेल
हो रहा सहज ही
आज के वक्त का चरित-प्रतिनिधि
इस पल
समकालीन मनुष्य की मति-गति का प्रत्यक्ष रूप
उस पार की ओर मुँह किए इस पार आता :
उसका मुँह, धीरे-धीरे दूर होते हरी कोर वाले नीरव क्षितिज की ओर
जबकि धीरे-धीरे निकट आती जा रही है उसकी पीठ जनरव से गुंजान नगर के
नगर का आकर्षण-
नाव के लिए भी खिंचाव खास
इस पार आने की दफा कुछ तेज बही आती नाव जिसे
तन पर महसूस करती है।
आ रही है नाव
इस ओर
गलही पर बैठा
उस ओर मुँह किए
डाँड़ खेता
आ रहा है नाविक
इस तरफ उसकी पीठ है
एक साँवली खुली मल्लाह पीठ
उस पीठ में भी मछलियाँ फड़कती हैं
गोया एक टुकड़ा नदी हो वह
वह है बीरू मल्लाह
बड़कों में लड़का, लड़कों में बड़का
कौन कहेगा, सातवीं बार सातवीं फेल
हो रहा सहज ही
आज के वक्त का चरित-प्रतिनिधि
इस पल
समकालीन मनुष्य की मति-गति का प्रत्यक्ष रूप
उस पार की ओर मुँह किए इस पार आता :
उसका मुँह, धीरे-धीरे दूर होते हरी कोर वाले नीरव क्षितिज की ओर
जबकि धीरे-धीरे निकट आती जा रही है उसकी पीठ जनरव से गुंजान नगर के
नगर का आकर्षण-
नाव के लिए भी खिंचाव खास
इस पार आने की दफा कुछ तेज बही आती नाव जिसे
तन पर महसूस करती है।