किसान भाई ऊसर भूमि को उपजाऊ बना कर फसल लें इसके लिए ऊसर सुधार की जैविक विधि अपनायें इसमें धान का पुवाल गोबर की खाद वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करें इससे ऊसर भूमि में उर्वरा शक्ति पैदा होती है और फसल की बुआई कर कृषक उत्पादन कालाभ ले सकते हैं। ऊसर भूमि वह भूमि होती है, जिसका पी.एच. 8.5 से अधिक होता है। विनिमयशील सोडियम की मात्रा 15 प्रतिशत से ज्यादा होती है। परन्तु कभी-कभी ई.सी. भी 4. डेसी सायमन/ मीटर से अधिक होती है। ऐसी भूमियों में गर्मियों के दिनों में ऊपरी सतह पर सफेद पर्त बन जाती है, जो मुख्यत: सोडियमके कार्बोनेट तथा बाईकार्बोनेट लवण होते है। इनके कारण भूमि की भौतिक दशा खराब हो जाती है। जिससे पूरे क्षेत्र अनुपात बिगड़ जाता है। जिससे भूमि में सूक्ष्म जीवों के लिए उपयुक्त वातावरण नहीं मिलता है। ऊसर संरचना के निर्माण में व पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने में होता है। ऊसर सुधार वर्षा आने से पहले शुरू करें ऊसर सुधार हेतु निम्नलिखित प्रक्रियायें इस प्रकार हैं:-
मेड़बंदी: ऊसर सुधार हेतु सर्वप्रथम हमें अपनी भूमि को मेड़बंदी करके छोटे-२ टुकड़ों में विभाजित करतें हैं। इन क्षेत्रों की आकृति अधिकतम २५ वर्ग मीटर होनी चाहिए अन्यथा ज्यादाबड़ा क्षेत्र होने पर ऊसर सुधार पूर्णतया नहीं हो पाता है । समतलीकरण: मेड़बंदी के उपरान्त भूमि को समतल करना अति आवश्यक है। क्योंकि यदि ऊसर हों जायेगा अत: यह आवश्यक है कि ऊसर सुधार से पूर्व भूमि का समतलीकरण किया जाय। सावधानी: सर्दी के दिनों में कोशिकीय क्रिया द्वारा हानिकारक लवण भूमि की निचली सतह से पुन: ऊपर आ जाते है। अत: इन दिनों कृषक ऊसर सुधार कार्यक्रम अपना कर भूमि का सुधार शीघ्र कर सकते है। ऊसर भूमियों को उपचारित करने की प्रक्रिया हालांकि कृषक गर्मियों के दिनों से ही प्रारंभ करते है। जिसमें भूमि सुधारकों से खेत को उपचारित कर हरी खाद देने के बाद खरीफ की फसल में धान की सहनशील प्रजातियों रोपाई करते है, परंतु जिन क्षेत्रों में किसी कारण वशकृषक धान की रोपाई नहीं कर सके उन क्षेत्रों में रबी के दिनों में ऊसर भूमि को उपचारित किया जा सकता है।
मिट्टी की जाँच: समतलीकरण उपरान्त ऊसर मिट्टी का नमूना लेकर नजदीक के मृदा जाँच करायें जिससे स्कूनोवर विधि द्वारा आवश्यक जिप्सम की मात्रा का पता लगेगा |
जिप्सम की मात्रा: जिप्सम की मात्रा का ज्ञान होने के उपरान्त आवश्यक मात्रा की आधी मात्रा का प्रयोग करें यदि किन्हीं कारणों से जिप्सम की मात्रा का ज्ञान न हों सके तों ६ से ८ टन ६ से ८ कु प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का प्रयोग करें।
जिप्सम प्रयोग से पूर्व भूमि की तैयारी: जिप्सम प्रयोग से पूर्व भूमि के समतलीकरण के उपरान्त ऊसर भूमि की गहरीपलटाई करें जिससे ऊपर की मिट्टी नीचे हो जाये तथा नीचे की मिट्टी ऊपरी सतह पर आ जाय इसके उपरान्त भूमि में पानी भरकर लगातर ७ दिनों तक छोड़ दें ७ दिन के बाद पानी को बाहर निकाल दे जिससे कुछ घुलनशील लवण पानी के साथ बाहर निकल जायेंगे |
जिप्सम प्रयोग की विधि:
उपरोक्त प्रकिया के उपरान्त जब भूमि में नमी हो उसी समय जिप्सम की आवश्यक मात्रा को जमीन पर बिखेर कर भूमि में डिस्क हैरो से भलीभांति मिला दें। भूमि में जिप्सम मिलाने के पश्चात पानी भर देते हैं। १५दिनों तक १ सेमी पानी भर कर रखते है। ८वें दिन पानी को निकाल देते हैं |
जीवांश का प्रयोग: जब भूमि सूख जाय तो जीवांश खादों का प्रयोग २ टन प्रति हे के हिसाब से करते हैं। यदि प्रेशमड या मुर्गी की खाद मिल जाय तो अति उत्तम रहेगा जीवांश के प्रयोग के १५ दिन बाद भूमि में पहली फसल धान की लेते हैं। क्योंकि धान क्षारीयता की सर्वाधिक सहनशील फसल है |
धान की प्रजातियाँ: ऊसर भूमि हेतु भिन्न- भिन्न शोध संस्थानों से निम्न प्रजातियाँ निकाली गयी हैं। जैसे सी.एस.आर.-१३, सी.एस.आर.-१, ऊसर धान-१, ऊसर धान-२,ऊसर धान-३ व नरेन्द्रधान-३५९ ये प्रजातियाँ ऊसर भूमि में भी ४५-५ कु प्रति हेक्टेयर उपज प्रदान करती हैं |
धान की रोपाई: ऊसर भूमि हेतु धान की पौध ४५ से ५ दिन की होनी चाहिए तथा एक स्थान पर ४ से ५ पौध लगाने चाहिए बचे हुए पौध को उसी भूमि में किनारे गाड़ देना चाहिए जिससे यदि कुछ पौधे मर जाये तो गैप फिलिंग कर देनाचाहिए। धान के पौध की रोपाई १५ १ से मी पर करना चाहिए जिससे प्रति वर्ग मी ५५ से ६ हिल हों यदि लाइन से रोपाई न कर सकें तो घनी रापाई करना चाहिए तथा रोपाई का कार्य १५ जुलाई तक सम्पन्न कर लेना चाहिए |
जिंक प्रयोग: धान की रोपाई के एक माह के उपरान्त जिंक की कमी दिखाई देती है। अत: ऊसर भूमियों में धान की रोपाई के एक माह के पश्चात ५ किग्रा जिंक सल्फेट तथा २ किग्रा यूरिया १ ली पानी में घोलकर छिड़काव करते हैं। यदि इसके बाद भी रोकथाम न हो तो ७ दिन बाद पुन: उक्त छिड़काव करते है |पैच को उपचारित करें: यदि सुधार के उपरान्त भी भूमि में पैच हो तो उसकी मेड़बंदी करके ४ किग्रा जिप्सम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाकर पुआल से ढक कर पानी भर दें |
सिंचाई तथा जल निकास: धान की कटाई भूमि की सतह से१५-२ से मी ऊपर से की जाय तथा ठूठों को सड़ाने हेतु पलेवा के बाद २ किग्रा नत्रजन प्रति हे के हिसाब से प्रयोग करें |
धान के उपरान्त की फसल: धान के बाद जौ, बरसीम या पालक की बुवाई करें गर्मी के दिनों में ढेंचा की बुवाई अवश्य करें ।