विपाशा

Submitted by admin on Tue, 10/01/2013 - 16:08
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काव्य संचय- (कविता नदी)
विपाशा किसी नदी या नारी का नाम नहीं
बल्कि किसी पुराने स्मृति-कोष्ठ से निकलकर आए
एक सूख गए जल-संसार का धुँधला-सा बिंब है
जिसे...
मैं सोचता हूँ,
शायद ही मेरी कोई कविता सहेज पाए।

यह बिंब मैंने पहली बार
बचपन में कहीं बरीमाम के मेले में
पीर के मजार पर नाचतीं
तवायफों के पवित्र चेहरों पर
धुँधले चिरागों की रोशनी में देखा था
या लुधियाना के बूढ़े दरिया की झुर्रियों में बहती

एक बरसाती नदी से उछलकर
मेरी किशोर चेतना में अटका था
औ’ जिसे अपनी आँखों में सँजोकर
मैं रात-रात-भर
उस शहर की सजल सड़कों पर भटका था।
बरीमाम बहुत पीछे रह गया है
बूढ़ा दरिया अब मर चुका है
बरसाती नदी एक गंदी नाली बनकर बह रही है
और पूरा शहर एक रेगिस्तान बनता जा रहा है
लेकिन सफेद कपड़ों वाला
एक उच्छृंखल-सा छोकरा

शहर में दनदनाता चिल्ला रहा है-
‘विपाशा किसी कवि के स्मृति-कोष्ठ से निकला मात्र एक
काव्य-बिंब नहीं’
बल्कि बीस धाराओं वाली
एक गहरी और शांत नदी का
पुराना नाम है

आओ! नदी के परिवर्तित मार्ग का स्वागत करें
और इसे एक नया नाम दें
इसकी बीस धाराओं के जल से
रेगिस्तानों को सींचें
इसके किनारों पर अपने घर बनाएँ
और उस सिरफिरे शायर की बकवास बातें भूल जाएँ
जो विपाशा को एक सूख गए जल-संसार का धुँधला-सा बिंब
कहता है।’

हाँ मैं भी यह अनुरोध करता हूँ
कि यदि आप भूल सकते हैं
तो यह सब भूल जाएँ-
कि केवल उथली नदी हो रास्ता बदलती है
और नदी जब रास्ता बदलती है
तो भीषण प्रलय मचाती है
किनारों पर बने कच्चे घरों को तोड़ जाती है
और शहर की हर चीज को बरबाद करके
अंत में उथली नदी
अपने ही अंध वेग से थक हारकर
मर चुके बूढ़े दरिया की कब्र पर
अपने टूटे दर्प का
आखिरी दीया जलाने पहुँच जाती है
इतिहास ऐसे दर्प को क्या नाम देगा
सिरफिरे शायर का उत्तर भूल जाएँ
और अपने होंठ बिलकुल मत हिलाएँ।