प्राकृतिक जलधाराओं से ही नदियों का स्वरूप बनता है। नदियों के संरक्षण की बात राज्यों से लेकर केन्द्र तक हो रही है। मगर सूख रही जल धाराओं के प्रति हमारी चिन्ता दिखाई नहीं दे रही है। यही नहीं हमारे पास जलधाराओं का कोई आँकड़ा भी नहीं है।
एक गैर सरकारी अध्ययन बताता है कि उत्तराखण्ड में 60 हजार प्राकृतिक जलधाराएँ हैं जिनमें 50 फीसदी जलधाराएँ सूखने की कगाार पर आ चुकी हैं। जबकि उत्तराखण्ड के गंगा बेसिन क्षेत्र में 37 फीसदी प्राकृतिक जल धाराएँ सूख चुकी हैं। देशभर में 63 फीसदी जनसंख्या स्वच्छ जल/पेयजल की भयंकर समस्या से जूझ रही है। यह बातें ‘उत्तराखण्ड में जल धाराओं का पुनर्जीवन’ के लिये हुई दो दिवसीय कार्यशाला में प्रखर रूप से सामने आई है।
अर्घ्यम, लोक विज्ञान संस्थान, हिमालय सेवा संघ, चिराग, एक्वाडैम के संयुक्त तत्वावधान में हुई ‘उत्तराखण्ड में जलधाराओं का पुनर्जीवन’ को लेकर दो दिवसीय कार्यशाला में आये प्रतिभागियों ने सूखती जलधाराओं पर एक तरफ सवाल खड़े किये तो दूसरी तरफ जलधाराओं के पुनर्जीवन के लिये भी एक कार्य योजना बनाई है। वक्ताओं ने कहा कि इण्डो-नेपाल क्षेत्र में कुल जनसंख्या में से 50 फीसदी जनसंख्या की दिनचर्या प्राकृतिक जलधाराओं पर ही निर्भर है। यहाँ भी जलधाराएँ तेजी से सूख रही है।
अकेले उत्तराखण्ड में 12 हजार प्राकृतिक जलधाराएँ सूख चुकी हैं। इनके सूखने के कारण कुछ भी हो परन्तु जब से राज्य में जल विद्युत परियोजना जैसे बड़े-बड़े विकास के कार्य हुए हैं तब से राज्य में ये जलधाराएँ सूखने की कगार पर आई हैं। दूसरी ओर राज्य में जल संरक्षण की जो परम्परागत विधि थी वह मौजूदा विकास के कामों ने ध्वस्त कर दिया है।
सवाल इस बात पर खड़ा हो रहा है कि गंगा-यमुना के संरक्षण की खूब बात और कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं परन्तु जिन जलधाराओं से मिलकर इन नदियों का स्वरूप बना, उनकी चिन्ता अब तक सामने नहीं आ पा रही है।
इस दौरान कार्यशाला में जलधाराओं के विकास के लिये हुए कार्यों को भी उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है। बताया गया कि केरल में बरसात के पानी का भरपूर उपयोग हो रहा है तो वहाँ पर भूजल की मात्रा बढ़ी है। इसी तरह नागालैण्ड, सिक्किम व मेघालय की सरकारों ने धारा विकास कार्यक्रम चलाया तो वहाँ की जलधाराएँ पुनर्जीवित हो उठीं।
कार्यशाला की शुरुआत में पहुँचे प्रमुख सचिव उत्तराखण्ड शत्रुघन सिंह ने कहा कि राज्य सरकार भी जल संरक्षण के लिये जोर दे रही हैं जिनमें मुख्य रूप से चाल-खाल के पुनर्जीवन के लिये राज्य सरकार के पास विशेष कार्ययोजना है और आर्थिक संसाधन भी है। उन्होंने कहा कि जो कार्यकर्ता या संस्था अथवा कोई भी विभाग/संस्थान जल संरक्षण के लिये कार्य करने के इच्छुक हो उन्हें सरकार प्रोत्साहन राशि मुहैया कराएगी। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण के लिये एकीकृत कार्ययोजना बनानी होगी ताकि पेयजल की समस्या, सिंचाई की समस्या, प्राकृतिक जल स्रोत सूखने की समस्या से निजात मिल सके। कहा कि राज्य सरकार जल संरक्षण के काम को इस वक्त एक अभियान के रूप में ले रही है जिसमें जन सहभागिता की आवश्यकता है। सरकार एक तरफ चाल-खालों का नव-निर्माण करेगी वहीं दूसरी तरफ चाल-खाल व जलधाराओं के प्रबन्धन के लिये भी कार्य करेगी।
कार्यशाला में पहुँचे जल संस्थान के एचपी उनियाल ने कहा कि जल संस्थान ने पिछले चार वर्षों में 3000 चाल-खाल को पुनर्जीवित किया है। वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि वन विभाग ने पिछले चार वर्षों में 123 जलधाराओं के रिर्चाज के लिये काम किया है। अर्घ्यम संस्था से आईं रोहिणी निलेकणी ने कहा कि उन्होंने पिछले छः वर्षों में देश भर में 2000 जलधाराओं के सुधारीकरण के लिये विशेष कार्यक्रम चलाया है। जिसे भविष्य में वे और विस्तारित करने की योजना बना रहे हैं।
इस दौरान अर्घ्यम, लोक विज्ञान संस्थान, हिमालय सेवा संघ, चिराग, एक्वाडैम ने अपने-अपने क्षेत्रों में जलधाराओं के विकास के लिये हुए कार्यों की एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुतिकरण में इन संगठनों ने जल संरक्षण के कार्यों को क्रियान्वित करने का प्रयास किया तो वही सूखती जलधाराओं के बारे में लोगों से जानने का भी प्रयास किया, जो उन्होंने अपने-अपने प्रस्तुतिकरण में बताया। इस प्रस्तुतिकरण का लब्बोलुआब यही था कि जलधाराओं के सूखने की समस्या मौजूदा समय में मौसम परिवर्तन, भूमि उपयोग, भूकम्प व भूस्खलन ही बताया जा रहा है। इस दौरान डॉ. रवि चोपड़ा, डॉ. हिमांशु कुलकर्णी, मनोज पाण्डे, विश्वदीप कोठारी, उज्ज्वल, मलविका, अनिता शर्मा, अनिल गौतम, पूरण वर्तवाल, देवाशीष सेन, अरण्य रंजन, डॉ॰ दिनेश मिश्रा, आदि वक्ताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये।
भविष्य की कार्ययोजना
आगामी छः-आठ वर्षों के अन्तराल में 12000 प्राकृतिक जलधाराओं के पुनर्जीवन के लिये विशेष कार्ययोजना बनाई जाएगी। जिसमें प्रथम फेज में 500 जलधाराओं के पुनर्जीवन के विशेष कार्य होगे। जलधाराएँ क्यों सूख रही हैं इसके लिये अध्ययन, पद यात्राएँ, शिक्षण-प्रशिक्षण एवं नीतिगत पैरवी करनी होगी। बताया गया कि वैसे तो चार लाख प्राकृतिक जलधाराओं को पुनर्जीवन के लिये कार्य करना होगा, परन्तु प्रथम चरण में कम-से-कम 12000 जलधाराओं के पुनर्जीवन के लिये कार्य करना होगा।
कार्यशाला में वक्ताओं ने एक अनुमान के तौर पर बताया कि राज्य में सिर्फ जलधाराओं के संरक्षण के लिये 500 करोड़ की आवश्यकता है जो सरकार के बिना सम्भव नहीं है। यह भी तय हुआ कि जलधाराओं के संरक्षण के लिये नीति आयोग और जाईका जैसी महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की मदद समय-समय पर ली जाएगी। इससे पहले सरकार के जितने जल से सम्बधित विभाग हैं उन्हें भी जलधाराओं के पुनर्जीवन के कामों में सहयोगी बनाया जाएगा। इस बाबत प्रमुख सचिव शत्रुघन सिंह ने स्वीकार किया कि जलधाराओं के विकास के लिये जो भी कार्ययोजना इस कार्यशाला में बनेगी सरकार उस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेगी। बशर्ते उन्हें कार्यशाला की संस्तुतियाँ प्राप्त हो जाये।