लेखक
यह जगजाहिर है कि गाँव की अपेक्षा शहर गन्दगी से पटे रहते हैं जबकि स्वच्छता एवं कूड़े के निस्तारण के लिये सरकारी बजट की व्यवस्था होती है। इसके अलावा शहरों में पेयजल की समस्या भी बनी रहती है। अहम यह है कि प्रदेश में हो रहे नगरपालिकाओं और नगर पंचायतों के चुनाव के लिये खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वच्छता और पेयजल आपूर्ति को मुद्दा बनाने की घोषणा की है। इस चुनावी समर में किसकी नैया पार लगेगी यह तो समय ही बताएगा।
उत्तराखण्ड के 23 लाख मतदाता 07 नगर निगम, 39 नगर पालिकाओं, 38 नगर पंचायतों के 1144 जनप्रतनिधियों का चुनाव करने जा रहे हैं। परन्तु देखना होगा कि जो जनप्रतिनिधि चुनकर आएँगे वे इन चुनावी मुद्दों पर कितने खरे उतर पाएँगे?
उत्तराखण्ड के गठन के बाद प्रदेश के शहरों और कस्बों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। परन्तु मूलभूत सुविधाओं जैसे पेयजल आपूर्ति, कचरा निस्तारण आदि की व्यवस्था में विकास की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि के दृष्टिकोण से काफी धीमी है। यही वजह है कि शहरों और नगरीय कस्बों में रहने वाले लोगों को रोज इन मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ता है। वह भी तब जब सरकार इन मदों में हर वर्ष भारी-भरकम बजट का प्रावधान करती है।
लोग भी इन चुनावी जुमलों से तंग आ गए हैं। लोगों का कहना है कि केवल चुनाव के दौरान ही राजनीतिक पार्टियों को जन समस्या की याद आती है। देहरादून नगर निगम के वार्ड नम्बर 36 के निवासी देवेन्द्र सिंह का कहना है कि उनके वार्ड में एक साल से सीवर लाइन का निर्माण हो रहा है जो अब तक पूरा नहीं हुआ। देवेन्द्र सिंह ने कहा, “स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि हमें हर दिन सीवर से निकले पानी में ही चलने को मजबूर होना पड़ रहा है। मैंने कई बार इसकी शिकायत वार्ड के पार्षद से भी की पर किसी के कान में जू तक नहीं रेंगता।” इन्दिरा कालोनी, ऋषिनगर, पटेलनगर, माजरा बस्ती के लोग पिछले 18 वर्षों से पेयजल की समस्या से जूझते आ रहे हैं।
इतना ही नहीं विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम के मुख्य पड़ाव में प्रवेश करते ही सीवर की बदबू आगन्तुकों का स्वागत करती है। उत्तरकाशी के जिला मुख्यालय के आस-पास भी गन्दगी का अम्बार लगा होता है। नगरपालिका परिषद के कर्मी भी यहाँ पड़े कूड़े को मनमुताबिका ही उठाते हैं। कूड़े के निस्तारण के लिये सभी प्रकार के आधुनिक संयंत्र उपलब्ध हैं परन्तु वे नगरपालिका के स्टोर में ही धूल चाट रहे हैं।
उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़, उधमसिंहनगर, हरिद्वार व देहरादून जनपदों के सभी नगर निकायों में स्वच्छता और पेयजल की समस्या एक जैसी है। इसीलिये यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मुख्यमंत्री का ऐलान कितना सार्थक होगा वह चुनावी नतीजों से ही स्पष्ट होगा। पर यह सुखद है कि राज्य के पिछले नौ मुख्यमंत्रियों में रावत पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लोगों की मूलभूत समस्या को अपने चुनावी ऐजेंडे में प्रमुखता से जगह दी है।
बता दें कि दुनिया में न्यूजीलैंड एक ऐसा देश है जहाँ पानी, पर्यावरण के मुद्दे पर चुनाव जीते और हारे जाते हैं। इस देश में इन विषयों को लेकर ग्रीन पार्टी नामक राजनीतिक समूह का भी गठन किया गया है। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का फार्मूला भी इसी तर्ज पर मौजूदा समय के नगर निकाय चुनाव में सामने आया है।
शहरों, कस्बों, बाजारों में कूड़े के निस्तारण के लिये कोई डम्पिंग यार्ड नहीं है। जहाँ-जहाँ डम्पिंग यार्ड बनाए गए हैं वे पूर्ण रूप से काम नहीं कर रहे हैं इसीलिये कूड़े का ढेर हर जगह नजर आता है। इसी तरह शौचालय की समस्या भी है। उदाहरण स्वरूप राजधानी देहरादून से मात्र 40 किलोमीटर के फासले पर विकासनगर नगरपालिका है जहाँ सार्वजनिक शौचालय व मूत्रालय मात्र एक ही जगह पर है। यह शहर सम्पूर्ण यमुनाघाटी के लोगों का मुख्य व्यावसायिक बाजार है। इस बाजार में प्रतिदिन लगभग 50 हजार लोगों का आना-जाना होता है। मगर शौचालय के अभाव और पेयजल की कमी के कारण स्वस्थ लोग भी बीमार हो जाते हैं। यह समस्या विकासनगर की ही नहीं अलबत्ता सभी नगर निकायों की है।
लोगों का मानना है कि गाँव की अपेक्षा शहरों में पेयजल व स्वच्छता के लिये विशेष बजट आता है फिर भी यहाँ गन्दगी का आलम पसरा रहता है। वे पूछते हैं अगर लोग मुख्यमंत्री श्री रावत के फार्मूले पर वोट दें तो क्या ये शहर व कस्बे सचमुच में स्वच्छ हो जाएँगे।
मौजूदा समय में शहर पूर्ण रूप अप्राकृतिक ढंग से विकसित हो रहे हैं। इनमें स्वच्छता और पेयजल की सुविधा भी सरकारी बजट के भरोसे ही रहती है। तात्पर्य यह है कि जब तक सरकारी स्तर पर पेयजल व स्वच्छता के लिये कदम नहीं उठाए जाएँगे तब तक इन नगर निकायों में ये समस्याएँ बनी रहेंगी।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा है कि नगर निकायों में शौचालय और पेयजल की समस्या वर्तमान और भविष्य का मुद्दा है जिसे ठीक करना हमारी प्राथमिकता है।
उत्तराखण्ड के 23 लाख मतदाता 07 नगर निगम, 39 नगर पालिकाओं, 38 नगर पंचायतों के 1144 जनप्रतनिधियों का चुनाव करने जा रहे हैं। परन्तु देखना होगा कि जो जनप्रतिनिधि चुनकर आएँगे वे इन चुनावी मुद्दों पर कितने खरे उतर पाएँगे?
उत्तराखण्ड के गठन के बाद प्रदेश के शहरों और कस्बों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। परन्तु मूलभूत सुविधाओं जैसे पेयजल आपूर्ति, कचरा निस्तारण आदि की व्यवस्था में विकास की रफ्तार जनसंख्या वृद्धि के दृष्टिकोण से काफी धीमी है। यही वजह है कि शहरों और नगरीय कस्बों में रहने वाले लोगों को रोज इन मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ता है। वह भी तब जब सरकार इन मदों में हर वर्ष भारी-भरकम बजट का प्रावधान करती है।
लोग भी इन चुनावी जुमलों से तंग आ गए हैं। लोगों का कहना है कि केवल चुनाव के दौरान ही राजनीतिक पार्टियों को जन समस्या की याद आती है। देहरादून नगर निगम के वार्ड नम्बर 36 के निवासी देवेन्द्र सिंह का कहना है कि उनके वार्ड में एक साल से सीवर लाइन का निर्माण हो रहा है जो अब तक पूरा नहीं हुआ। देवेन्द्र सिंह ने कहा, “स्थिति इतनी बदतर हो गई है कि हमें हर दिन सीवर से निकले पानी में ही चलने को मजबूर होना पड़ रहा है। मैंने कई बार इसकी शिकायत वार्ड के पार्षद से भी की पर किसी के कान में जू तक नहीं रेंगता।” इन्दिरा कालोनी, ऋषिनगर, पटेलनगर, माजरा बस्ती के लोग पिछले 18 वर्षों से पेयजल की समस्या से जूझते आ रहे हैं।
इतना ही नहीं विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम के मुख्य पड़ाव में प्रवेश करते ही सीवर की बदबू आगन्तुकों का स्वागत करती है। उत्तरकाशी के जिला मुख्यालय के आस-पास भी गन्दगी का अम्बार लगा होता है। नगरपालिका परिषद के कर्मी भी यहाँ पड़े कूड़े को मनमुताबिका ही उठाते हैं। कूड़े के निस्तारण के लिये सभी प्रकार के आधुनिक संयंत्र उपलब्ध हैं परन्तु वे नगरपालिका के स्टोर में ही धूल चाट रहे हैं।
उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़, उधमसिंहनगर, हरिद्वार व देहरादून जनपदों के सभी नगर निकायों में स्वच्छता और पेयजल की समस्या एक जैसी है। इसीलिये यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मुख्यमंत्री का ऐलान कितना सार्थक होगा वह चुनावी नतीजों से ही स्पष्ट होगा। पर यह सुखद है कि राज्य के पिछले नौ मुख्यमंत्रियों में रावत पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लोगों की मूलभूत समस्या को अपने चुनावी ऐजेंडे में प्रमुखता से जगह दी है।
बता दें कि दुनिया में न्यूजीलैंड एक ऐसा देश है जहाँ पानी, पर्यावरण के मुद्दे पर चुनाव जीते और हारे जाते हैं। इस देश में इन विषयों को लेकर ग्रीन पार्टी नामक राजनीतिक समूह का भी गठन किया गया है। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का फार्मूला भी इसी तर्ज पर मौजूदा समय के नगर निकाय चुनाव में सामने आया है।
शहरों, कस्बों, बाजारों में कूड़े के निस्तारण के लिये कोई डम्पिंग यार्ड नहीं है। जहाँ-जहाँ डम्पिंग यार्ड बनाए गए हैं वे पूर्ण रूप से काम नहीं कर रहे हैं इसीलिये कूड़े का ढेर हर जगह नजर आता है। इसी तरह शौचालय की समस्या भी है। उदाहरण स्वरूप राजधानी देहरादून से मात्र 40 किलोमीटर के फासले पर विकासनगर नगरपालिका है जहाँ सार्वजनिक शौचालय व मूत्रालय मात्र एक ही जगह पर है। यह शहर सम्पूर्ण यमुनाघाटी के लोगों का मुख्य व्यावसायिक बाजार है। इस बाजार में प्रतिदिन लगभग 50 हजार लोगों का आना-जाना होता है। मगर शौचालय के अभाव और पेयजल की कमी के कारण स्वस्थ लोग भी बीमार हो जाते हैं। यह समस्या विकासनगर की ही नहीं अलबत्ता सभी नगर निकायों की है।
लोगों का मानना है कि गाँव की अपेक्षा शहरों में पेयजल व स्वच्छता के लिये विशेष बजट आता है फिर भी यहाँ गन्दगी का आलम पसरा रहता है। वे पूछते हैं अगर लोग मुख्यमंत्री श्री रावत के फार्मूले पर वोट दें तो क्या ये शहर व कस्बे सचमुच में स्वच्छ हो जाएँगे।
मौजूदा समय में शहर पूर्ण रूप अप्राकृतिक ढंग से विकसित हो रहे हैं। इनमें स्वच्छता और पेयजल की सुविधा भी सरकारी बजट के भरोसे ही रहती है। तात्पर्य यह है कि जब तक सरकारी स्तर पर पेयजल व स्वच्छता के लिये कदम नहीं उठाए जाएँगे तब तक इन नगर निकायों में ये समस्याएँ बनी रहेंगी।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा है कि नगर निकायों में शौचालय और पेयजल की समस्या वर्तमान और भविष्य का मुद्दा है जिसे ठीक करना हमारी प्राथमिकता है।
TAGS |
local bodies elections in uttarakhand, main issues water crunch and swacchata, garbage disposal, door to door collection, huge budget, open defecation free state, chief minister trivendra singh rawat. |